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Showing posts from July, 2023

अपनों की महफ़िल

महफिल हो अपनों की  तो अपनत्व का नरम एहसास  मन को खूब गुदगुदाता है .....। कुछ खट्टी - मीठी यादों का कारवां  जब निकल पङता है ..पुरानी नयी  यात्राओं पर ....  रंगत जज़्बातों के  उफ विचित्र सतरंगी इंद्रधनुष दुनियां बनाते है.. हर रंग मन को भाता है  लहरें उछल -उछल कर अपनी.बात   कहने को छलांगें लगाती हैं ... चेहरे की मीठी मुस्कान   मानों कहती हो .... हां- हां मुझे भी याद आया है  कोई सुनहरा पल मेरे दिल में भी है कुछ  .. कहने को मीठी बातें रौनक ही बढ जाती है चेहरे की .... मन की उत्सुकता खोद- खोद कर   निकाल लेती है कुछ मीठे किस्से  कुछ अद्भुत  प्यारी बातें   महफिल हो अपनों की तो  सब कुछ  अपना सा लगता है..

हे कृष्ण तुमको फिर आना होगा

हे कृष्ण, तुमको फिर आना होगा  हे कृष्ण जो ना आये तुम द्रोपदीयां  फिर निर्वस्त्र की जा रहीं दुर्योधनों की भरमार है ,कौरवों का  बेअंत अत्याचार  है  दुशासनों का अंत करो , मूक बधिर गुरु श्रेष्ठ शब्द मौन  यह कैसी हाहाकार  है.. राक्षसों का भयावह संसार  है मधुकैटव सक्रिय हो रहे,  रक्त बीज का अत्याचार है मणियों की लज्जा अपमानित   द्रोपदीयो को फिर निर्वस्त्र किया जा रहा  मणियों का चीर हरण हो रहा  हे कृष्ण अब भी जो तुम ना आये  कलयुग का हाहाकार हलाहल हो जायेगा  काल धरा को निगल जायेगा .. हे कृष्ण अब फिर समय आ गया   मणियों की लाज बचा लो तुम मणिपुर का अस्तित्व तुमसे है..अप्रासंगिक जीवों  को बाहर  निकालो तुम  हो जाने दो एक बार  फिर  महाभारत   आर्त भाव से यही पुकार  भारत की भुजायें समभालो तुम  भारत की कन्याऐं भारत की मणियां  सब तुम से ही सुरक्षित  *हे कृष्ण, फिर अवतरित हो जाओ तुम   हे कृष्ण फिर धरती पर आ जाओ तुम   द्रोपदीयों की लाज बचाओ तुम  .... गीता का महाज्ञान सुनाओं तुम  भारत की मणियां सम्भालो तुम  ... हे कृष्ण फिर अवतरित हो धरा पर आओ तुम नाम- ऋतु असूजा  ऋषिकेश उत्तराखंड

खेल बस तू खेल

   """"खेल तू बस खेल  हार भी जीत होगी  जब तुम तन्मयता से खेलोगे" .... खेल में खेल रहे हैं सब  खेल - खेल में खूब तमाशा  छूमंतर  हुई निराशा  मन में जागती एक नई आशा  आशा जिसकी नहीं कोई  भाषा  खेल- खेल में बढता है सौहार्द   आगे की ओर बढते कदमों का एहसास   गिर के फिर उठने की उम्मीद   सब एक दूजे को देते हैं दीद  मन में भर  उत्साह   अपना बेहतर देने की जिज्ञासा  जिसका लगा दांव वो आगे आया  प्रथम ,द्वितीय एक परम्परा जो खेला आगे बढा वो बस जीता  फिर  भी कहती हूं ना कोई  हारा ना कोई  जीता सब विजयी जो आगे बढ़कर  खेले  उम्मीदों को लगाये पंख मन में भरी नव ऊर्जा  प्रोत्साहन की चढी ऊंचाईयां  जीवन यात्रा है बस खेल का नाम  दांव - पेंच जीने के सीखो  जीवन जीना भी एक कला है  माना की उलझा - उलझा सा है सब जिसने उलझन को सुलझाया  जीवन  जीना तो उसी को आया  खेल-खेल में खेल रहे हैं सब  ना कोई हारा ना कोई जीता  विजयी हुआ वो जोआगे बढकर खेला.. मक्सद है जीवन को खेल की भांति जीते रहो   माना की सुख- दुख ,उतार-चढ़ाव का होगा  आना - जाना  ..वही तो है हर  मोङ को पार   कर जाना हंसते मुस्कराते ,गुनगुना

देना सीखो

  नयी उमंग है  नयी तरंग है  नया जोश है  नये के साथ अच्छे संस्कारों को भी संग रखना   भले चाहे तुम कुछ  भी मत देना किसी को  पर किसी की दुखती रग पर प्यार  भरा हाथ  रख देना किसी भटके हुए  को सही राह दिखा देना  पर दिल ना दुखाना कभी किसी का  सच्ची सेवा हो जायेगी जब तुम  किसी के चेहरे पर. मुस्कराहट  लाने.में सफल होगे ... बेशक मत देना किसी को कीमती उपहार  किसी प्यासे को पानी पिला देना  किसी अकेलेपन से झूझते इंसान को एहसास   दिला देना कि तुम अकेले नहीं हम हैं तुम्हारे साथ हैं  ... हो जायेगी सच्ची सेवा भटके हुओं को सही राह  दिखाकर.  जीवन  को कामयाब  बनाने के गुण सिखा देना किसी को कोई  हुनर  सिखा जीने की नयी उमंग जगा देना सफल होगा जीवन    भटके हुओं को नयी राह दिखाने के लिए इंसानियत  की एक मशाल सदा जलाए रखना ...

व्यवहार

किसी भी मनुष्य की पहचान उसके व्यवहार से ही.होती है  हम व्यवहार में जन्मते हैं ,व्यवहार में जीते हैं  हमारा व्यवहार ही हमारे जीवन की रुपरेखा तैयार करता है  व्यवहार किसी भी मनुष्य का अस्तित्व होता है  व्यवहार हमारा व्यक्तित्व एवं पहचान  होता है  व्यवहार  हमारे भावों में निहित होता है व्यवहार हमारे संस्कार का दर्पण होता है  अच्छे व्यवहार की खूशबू से हमारा व्यक्तित्व निखरता है  व्यवहार को ना साधारण जानों व्यवहार   किसीभी मनुष्य का अस्तित्व  होता है  व्यवहार  कुशलता भी एक गुण है  व्यवहार  में समता,.सद्भावना हमारा  परिचय  समाज से कराता है ... व्यवहार को साधारण ना समझना  व्यवहार हमारा परिचय समाज के समक्ष रख हमारा व्यक्तित्व बतलाता है ... व्यवहार किसी भी मनुष्य के चरित्र का स्वरूप होता है ।

मेघ ,वर्षा, हरियाली

वसुन्धरा को तपता देख  मेघों ने नील गगन पर डाला डेरा  घिर- घिर आया काले घने मेघों का साया  मानों मेघ घोर गुस्साये  सूरज को ढककर बोले मेघ. वसुन्धरा बहुत तप रही है  मानों आग उगल रही है  सूरज राजा आज हम तुम्हारे आगे आयेगें  वसुन्धरा को थोङा सूकून पहुचायेगें हम वसुन्धरा क्या हाल हुआ है तुम्हारा   सूखी नदीयां सूखे पेङ पौधे वृक्ष  मेघ गरजे होकर एक  दामिनी चमकी सहमें लोग  आज मानों बरसेगें मेघ बङें जोर से  आखिर आसमान  से बरसा पानी  मानों अश्रु बहाता हो धरती मां को सूखता देख  बरसेगें आज जी भर  बरसेगें मेघ  वसुन्धरा पर फिर आयेगी हरित  क्रांति  खेतों में हरियाली होगी  वृक्षों पर लगेगें फल  रंग - बिरंगे पुष्पों  से लदेगीं  क्यारियां  महकेगें घर आंगन शीतलता का होगा एहसास  फूलों पर बैठेगी सुन्दर सुनहरी तितलियां  मनमोहक होगा चहूं और..नजारा  मेघों का वसुन्धरा से दुलार   हरियाली से निखरता है वसुन्धरा.का रुप प्यारा ..

पानी- पानी.

 बेहद बेअंत आसमान से भर - भर बरस रहा है पानी  आज फिर आकाश जी भर कर.रोया है  धरती मां का आंचल जी भर कर भिगोया है जाने.कौन- कौन से.दर्द को पानी में बह गया होगा धरती भी हुई पानी-पानी पास रह ना पायी कोई निशानी  सब कुछ  बहता गया जलधार में  जाने कब से भर रहा होगा नील गगन मेघों के रुप में  एकत्रित हो होकर जब सहनशीलता हद से बाहर हो गयी होगी  तभी बहा होगा इतना पानी नदियों में तालाबों में जलाशयों मे भर गया  होगा जल सारा  धरती पर हरियाली होगी पेङों  की डालों पर पङ गये होगें झूले बहुत सूकून से नीलगगन  में मानों सब आर- पार इतना. स्वच्छ आसमान मधुर मीठी ठंडी हवा मन को सहला रही है  मन को सूकून सम्पूर्णता की खुशी सब ओर.नजर.आ रही है ....

मेघों का बसेरा

मेघों का बसेरा  पर्वतों की शिखाओं पर  किया मेघों ने बसेरा  नयनों को आनंद देता है यह दृश्य  प्यारा  वर्षा  ऋतुराज  प्रकृति ने फिर सजाया साज  वर्षा ऋतु की फुहार   पर्वतों की शिखाओं में कोहरे ने सजायी है बारात   नाचता -खेलता अठखेलियाँ करता  कोहरा मनमोहक आकृतियां बनाता  मन को लुभाता बादलों का समूह   वसुन्धरा पर आकर्षित अपना प्रेम लुटाता  ओस के नन्हें कण मानों मोती बन केशों पर  खूब इठलाते और कहते देखो हम तुम्हारे लिए  आसमान से जमीं पर उतर आये अश्रु बन तुम पर प्यार लुटाये  ओह ! आसमान  में काले बादल घिर आये  आज फिर जी भर के बरसेगें बादल काली घटाओं ने है घेरा डाला वो देखो बिजली चमकी लगता है वसुन्धरा को तपता  देख आज  फिर  नील  गगन गुस्साया है  बरसेगें बादल जी भर के उसके अंक में बेहद का जल जो समाया है .. बरसी आसमान से वर्षा हरी- भरी हुई प्रकृति  हरियाली चहूं और तृप्त नदियां जलाशय चहूं ओर पक्षी चहकते कोयल के मधुर स्वर  मन को हर्षाते वर्षा ऋतु की फुहार आ गयी फिर से बहार आयी .... मस्ती की खुशियां घुमङ-घुमङ बरस आयी  ..

Good thinker

  Beauty is of the mind only, what about the body changes with time.. If the mind is beautiful then it gives birth to beautiful thoughts..by which positive messages are given to the society. If you think every moment there is someone or something or the other….then why not turn your thinking towards right thinking, if a high mountain or a deep ditch comes in front of you, will you stop….you will have to change yourself If you don't change your thinking, your ways... then keep crying for whole life... or else change your ways.. and move forward... **** Whenever our car starts turning towards wrong turns....immediately turn the steering of your thinking towards the right direction.... The choice is ours.. which path do we choose..... Face or any object can be given a beautiful look....., external beauty can only be just an attraction..but Hollow from inside… Abundance is very rare that the one who is beautiful from outside, everyone is beautiful from inside….