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अपनों की महफ़िल


महफिल हो अपनों की 
तो अपनत्व का नरम एहसास 
मन को खूब गुदगुदाता है .....।

कुछ खट्टी - मीठी यादों का कारवां 
जब निकल पङता है ..पुरानी नयी 
यात्राओं पर ....

 रंगत जज़्बातों के 
उफ विचित्र सतरंगी इंद्रधनुष दुनियां बनाते है..

हर रंग मन को भाता है 
लहरें उछल -उछल कर अपनी.बात  
कहने को छलांगें लगाती हैं ...

चेहरे की मीठी मुस्कान  
मानों कहती हो ....
हां- हां मुझे भी याद आया है 
कोई सुनहरा पल
मेरे दिल में भी है कुछ  ..
कहने को मीठी बातें
रौनक ही बढ जाती है चेहरे की ....

मन की उत्सुकता खोद- खोद कर  
निकाल लेती है कुछ मीठे किस्से 
कुछ अद्भुत  प्यारी बातें  
महफिल हो अपनों की तो 
सब कुछ  अपना सा लगता है..

Comments

  1. वाह! रितु जी ,बहुत सुन्दर!!

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