हथौड़ा भी रोता है मार- मार के चोट वो भी कहां चैन से सोता है तोड़ - तोड़ के वो भी बहुत बिखरता है नियति में उसके जब लिखा ही है चोट देना तोड़ने में औरों को उसकी भी तो अपनी जड़ें हिलती होंगीं दर्द किसी और का.. लहू का मर्म उसने भी सहा होगा हथौडें से टूटे टुकड़ों को जब किसी ने जोड़ा होगा सुन्दर कलाकृति बना द्वार बनाया होगा तब जा के हथौड़े को चैन आया होगा निखरने के लिए .. बिखरने के दर्द को भुलाया होगा मरहम बन सुरक्षा द्वार का सुख पाया होगा ... ऊंचे शाश्वत देवालयों में दर्द को मरहम बनाया होगा हथौड़ा भी कहां चैन से सोता है मार- मार के चोट वो भी अपनी जड़ों से हिलता है ...