मेरी मित्र अराधना जो बहुत ही खुशमिजाज इंसान थी। लेकिन कुछ समय से गुमसुम, चुपचाप रहने लगी थी... यूं तो वो किसी से कुछ कहती नहीं थी... लेकिन मेरे बहुत कहने पर वो फूट-फूटकर रोने लगी... फिर अराधना ने बताया कि जिसे वो अपना समझ रही थी... वो अपना नहीं निकला.. मेरा उपयोग किया जा रहा था, जब मुझे पता चला, तब मैं बहुत दुखी हुई.... दुख की बात थी.. अराधना को लगने लगा था, उसकी भी अहमियत है.. उसे भी कोई पसंद करता है। जब कोई आपको अपनापन दे.. आपका ध्यान रखे.. आपको पल-पल समझाता रहे... कि आपके लिए अच्छा क्या है बुरा क्या है.. तो निसंदेह आप उस व्यक्ति को अपना अजीज समझने लगते हैं। आप कई सपने देखने लगते हैं... आपके जीवन के तार आपके उस अजीज से जुड़ जाते हैं... फिर तो जागते - उठते हर पल आप उस अजीज व्यक्ति से संबंधित अपने जीवन की खुशियां ढूढ़ने लगते है। स्वर्ग सा सुंदर रामराज सा लगने लगता है सब कुछ.... किन्तु यह भी सच है कि, रामराज में भी मंथरा थी... फिर यह तो कलयुग है... कलयुग में अनगिनत मंथरायें हैं... अब मर्याद की बात तो कहानियों में ही मिलती है... कैकयी तो हर कोई है यहाँ ... बस...