धरती मां की गोद में आराम से सोयी थी बढना प्रकृति का नियम है जिस दिन नन्हीं कली बनकर खिली बागवान की आंखो में चमक थी परवरिश को मेरी कोई ना कमी छोङी थी सूर्य का ओज बागवान का समर्पण प्रकृति ने मुझे बेहतरीन रंगों की सौगात बख्शी मैं पुष्प बनकर खिली ..बागों की और सबकी नजर रुकीं बागों में आकर्षक पुष्प खिले थे..प्रकृति के करिश्मों पर सब मन्त्रमुग्ध थे ..आकाश की छत मिट्टी की गोद सूर्य की ओजस्वता ..जल की निर्मलता ,शीतलता .. तेज हवाओं की लहर से भी खूब लङी थी आंधी - तूफानों का दौर भी देखा .. फिर भी मैं खुश हूं अपने इस छोटे से जीवन मे .. मैं पुष्प मन की मधुरता का पर्याय बना .. बागों की रौनक बन ..हवाओं में इत्र बनकर बहा सफल है जीवन मेरा ..खुशी हो या गम ..हर जगह सजा ...महत्वपूर्ण स्थान मिला ..