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Showing posts from 2023

नव वर्ष

नव नूतन वर्ष, दिल में प्रस्फुटित हर्ष  नयी उमंग का नया - नया सा स्पर्श  नव वर्ष में खुशियाँ हों सबके समदर्श मुस्करायें आप सभी वसुंधरा से अर्श  शुभ मंगल हों सभी दिशायें शुभ का हो दर्श 

श्रीराम, रामचरितमानस

रामचरित मानस युगों - युगों से भारतीयों का धार्मिक ग्रंथ है  राम श्रद्धा हैं, तो रामायण भक्ति है  रामायण है तो अयोध्या भी है श्री राम हैं, अयोध्या है, तो फिर अयोध्या में राम मंदिर का होना भी निश्चित है राम मंदिर पर राजनीति की आवश्यकता नहीं..  श्री राम का जीवन चरित्र  बाल्यकाल से प्रेरणादायक चरित्र बनकर  भारतीय संस्कृति में संस्कारों में अपना  अपनी अमिट छाप बनकर बसने लगता है  राम शाश्वत हैं, श्री राम सत्य हैं  श्रीराम भारतीयता का अभिन्न अंग  या यूं कहियें अभिन्न अंग हैं  श्री राम भारतीयों की आस्था का मूलमंत्र है श्रीराम भारतीयों के श्वास एवं प्राण हैं  एक काल आया था राम मंदिर के नामोनिशान मिटाने का  युद्ध स्तर की पीड़ा सही भारतीयों ने,,,  एक युग फिर आया, सत्य की जीत हुयी  राम शाश्वत हैं, सत्य हैं,  सनातन हैं  राम नाम की उपस्थिति फिर से अपना परचम लहरायेगी अयोध्या के राम मंदिर में, बधाईयाँ अयोध्या में फिर से  दीपों वाली रात आयी... 

Good Thinker मन की सुन्दरता

  #सोचता तो हर पल कोई ना कोई कुछ ना कुछ रहता ही है ....फिर क्यों ना अपनी सोच  को सही सोच की तरफ मोड़ें सामने ऊंचे पहाड़ या गहरी खाई आ जाये तो क्या आप रुक जायेगें .... आप ही को बदलना पढेगा अपनी सोच को अपनी राहों को ... नहीं बदलोगे तो जिन्दगी भर रोते रहो ...या फिर बदल लो अपने रास्तों को ..और बढ जाओ आगे की ओर...   **** जब-जब हमारी गाङी गलत मोङो की तरफ मुङने लगे....तुरन्त अपनी सोच के स्टेयरिंग को सही.दिशा की ओर मोङ  दीजिए.... चाइस हमारी है.. हम कौन सी राह चुनते हैं.....। सुन्दरता तो मन की ही होती है ,तन का क्या समय के साथ  परिवर्तनशील है ..  मन सुन्दर हो तो वो सुन्दर विचारों को जन्म देता है ..जिससे समाज को सकारात्मक संदेश मिलते हैं ।  चेहरे या किसी वस्तु को सुन्दर रुप दिया जा सकता ..... ,बाहरी सुन्दतार सिर्फ आकरषण मात्र भी हो सकता है ...पर  अन्दर  से खोखला ...बहुतायत  ऐसा बहुत कम होता है कि जो बाहर  से सुन्दर  हो भीतर सभी सुन्दर  हो ...।   कथात्मक....#  सुन बसंती तुझे पता है ...   बसंती :- क्या कह रही है कमला .. तू कुछ बतायेगा तभी तो मुझे कुछ  पता लगेगा ... मैं तो सारा दिन घर पर रहती हूं ..

कल आज और कल

 यात्रा ..... यात्रा:- अपने -अपने जीवन में यात्रा तो सभी करते हैं ... साईकिल:- मेरे कुछ अनुभव बचपन से लेकर अभी तक की यात्रा के ..... साईकिल:- बचपन की सबसे पहली स्वतंत्र यात्रा ..साईकिल..दो पहियों पर पैडिल के सहारे चलती ... खुले आकाश तले खुली हवा में सांस लेते एक जगह से दूसरी जगह जाने की यात्रा ..बङी ही विचित्र, सुविधापूर्ण साईकिल की यात्रा ...  तांगा:-  सौभाग्य से हमने तांगे की सवारी भी की है ...घोङे की चाल पर चलती ...घोडा गाङी ,यानि तांगा ... घोङा जब चलता है ,उसके पैरों के नीचे लगी लोहे की नाल ... उस पर घोङे की मस्तानी चाल ,और एक धुन पर चलती टक- टक की आवाज ... आज भी वो आवाज कानों में मधुर संगीत घोलती है ... इसका भी अलग ही मजा था । बस.... बस में बैठने का भी आनन्द अलग ही है .. कई सारे लोगों की भीङ में यात्रा करने का अपना अलग ही आनन्द है... कहीं कोई मूंगफली खाता ..कहीं कोई बच्चा चिप्स खाता ...एक ड्राइवर इतने सारे लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाता ...बस का सफर भी स्मरणीय रहेगा ।  ट्रेन... वाह! वाह! वाह!  ट्रेन  का सफर यादगार लम्हें , मानों सफर के संग पिकनिक जैसा माहौल ,पारिवारिक सदस्य

दिल की बातें

मैं अपने दिल की कहती हूं  वो सबके दिल की हो जाती  मेरी बातों के दरिया में  सभी गोते लगाते हैं  ना जाने कौन सा सुख वो मेरी बातों में, पाते हैं  मेरे दिल पर जो बीती है  मुझे सबको सुनानी है । जाने कौन सी बात मेरे चेहरे पर लिखी है  मैं कुछ बोल ही पाती  वो सब समझ जाते  क्या वो मेरी बातों को  बिन बोले समझ जाते । मेरे दिल पर जो बीती  है  किसी पर ओर ना बीते  इससे पहले ही मैं सबको यही बताती  हूं  थोङा ठहरो, जरा समझो मेरी बातों को तुम अपनों शायद तुम सम्भल जाओ ,मैं डर- डर कर कहती हूं  जो मेरी कहानी है , कहानी वो ना तुम्हारी हो इसीलिए, मैं अपने दिल की कहती हूं कि, तुम भी समझ जाओ ,ठेङी- मेङी राहों पर  गिरने से सम्भल जाओ,  मैं अपने दिल की कहती हूं  तो सबके दिल की हो जाती ।   

नायाब

कुछ चीजें होती हैं नायाब  ये आंसू खुदा के सबसे पास हैं  हर किसी के आगे लुटायी नहीं जाती . आंसूओं की भी अपनी कीमत होती है हर किसी के आगे बहाये नहीं जाते आंसू  कुछ बातों को अक्सर जमाने से.छिपा जाना  कुछ उलझनों को मुस्कराहट में दबा जाना छिपकर रोने को दिल की मजबूरी ना समझना  कीमत होती है आंसूओं की भी,अपनी  हर किसी के आगे बहाये नहीं जाते आंसू तङफते दिल की सिसकियों की, आवाज हर कोई नहीं सुन सकता यह आवाज दिल वाले ही सुन सकते हैं  धड़कनों की आवाज जब दिल को तङफाती है  जाने कौन सी मजबूरी सिसक कर करहाती है लिपट कर चादर से, तकिये पर सिर रखकर  ना जाने आंसूओं को कितना बहा जाती  छिपकर रोना मजबूरी नहीं, पसंद अपनी-अपनी. भी नहीं, यह वो बातें हैं जो सनझायी नहीं जाती  आंसूओं की भी कीमत होती है नायाब  यह वो मोती हैं जो हर किसी के आगे लुटाये नहीं जाते .....

यात्रा

आजकल मैं बाहर की कम  अंदर की यात्रा ज्यादा करती हूं  बाहर घूमकर देखा अपने अस्तित्व की ऐसी की तैसी हो गयी , जमाने की भीङ में ,मैं कहां खो गयी  अब अपना अस्तित्व पहचानने की कोशिश कर रही हूं जब से गहराई में उतरी हूं  मालामाल हो गयी हूं  विभिन्न रत्न हाथ लग रहे हैं  बाहर का आकर्षण अब नहीं भाता अपने अस्तित्व का आभास हो रहा है  मैं होकर भी मैं नहीं हूं  मैं होकर भी मैं ही हूं  माया का जाल अक्सर भरमाता है  अंतरिक्ष में तारे गिनती हूं  हर तारे की अपनी कहानी  जाने आग या पानी या दुनियां सुहानी  जानने को उत्सुक कोई अनसुनी कहानी  चांद की या फिर चांदनी की दुनियां दिवानी  नील समुंद्र की लहरों की खूबसूरती मानों कहती हों जीवन की कहानी  दुनियां है आनी -जानी लहरों सी आती- जाती जिन्दगानी  मैं होकर भी ,मैं से ऊपर की कहानी  जिन्दगी सुहानी या फिर स्वप्न की कहानी ...

जाने कहां जा रहे हैं सब

 जाने कहां जा रहे हैं सब  मंजिल कहीं ओर है ,रास्ते कहीं ओर  जान - बूझकर मंजिल से हटकर  अन्जानी राहों पर चल रहे हैं लोग  सब अच्छा देखना चाहते हैं  सब अच्छा सुनना चाहते हैं  अच्छाई ही दिल को भाती भी है  अच्छाई पाकर गदगद भी होते हैं सब.. भीतर सब अच्छाई ही चाहते हैं फिर ना जाने क्यों भाग रहें हैं , बिन सोचे समझे अंधों की तरह  भेङ चाल की तरह ,जहां जमाना जा रहा है  हमारी समझ की ऐसी की तैसी ,जहां जमाना जायेगा  हम भी वहीं जायेगें ,बिना सोचे- विचारे  अंधी दौङ में ,फिर चाहे खाई में गिरे या कुएं में .. अब रोना नहीं ,जिसके पीछे भागो हो ,वही मिलेगा जो  जिसके पास  है ... समझाया होगा मन ने कई बार ... पर अपने घरवालों और अपने मन की कौन सुनता है .. घर की मुर्गी दाल बराबर  ... अपने सबसे अजीज मित्र  अपने ही मन का जो ना हुआ ... उसकी जमाने से अच्छाई की  उम्मीद करना निर्रथक है .... अच्छाई जो दिल को भाती है ...तो अपने मन की सुनों मन की करो मन कभी गलत राह नहीं दिखाता ,उसे फिक्र होती है  अपनों की ,भटकने से रोकता है मन ,समझाता है, सिक्के के दोनों पहलू समझाता है ... क्योकि मन सिर्फ अच्छा देखना चाहता है ...अच्छा औ

खुला आसमान

पैरों में बांधकर जंजीर नचाने की आजादी है  यह कैसी आजादी है, पैर थिरकते हैं ,नाचते हैं  घायल होकर, अपने जख्मों के निशान छोङ जाते हैं  पर कटे पंखो का दर्द ,भी कितना.अजीब  है  नाचता है मन ही मन ,उङता है भीतर ही भीतर .. पंख फैलाकर उङने को उत्सुक ...... पर बेड़ियां भी शायद जरूरी हैं  अपनी सीमाओं का अंदाजा रहता है  सीमायें नहीं टूटती ,आखिर सबको अपनी  जमीं चाहिए, अपना आकाश चाहिए  बुनने को ख्वाब, एक आधार चाहिए... ख्वाबों की जमीं पर आजाद पंख चाहिए  धरती की खूबसूरती हमसे है, आसमान की ऊंचाइयों पर टिमटिमाते सितारों तक ऊँची उङान चाहिए... ख्वाबों की धरती पर  कुछ निशान अपने भी चाहिए.... मत बांधों जंजीरें ,वो भी लिखेंगे तकरीरें अपनी  उनको भी उङने को खुला आसमान चाहिए...

किक्रेट. क्रिकेट. किक्रेट .

 क्रिकेट..क्रिकेट क्रिकेट   भारतीयों के चेहरे की मुस्कान क्रिकेट  भारत का अभिमान क्रिकेटर  चर्चा का मुख्य विषय किक्रेट  क्रिकेट की शान चौके - छक्के भारतीयों के महानायक किक्रेटर  कांधे क्रिकेटरों के भारत का सम्मान   लेते रहो कैच ,और धुआंधार विकेट गली- मोहल्ले,घर- घर का जुनून  किक्रेट  कानों में गूंजती आवाज  विराट कोहली,  मोहम्मद शामी, ईशान किशन, जैसे सभी नाम  किक्रेटर जब खेलते किक्रेट बढ जाती आंखों की चमक  निगाहों में बसते ,दुआओं में सदा रहते किक्रेटर  भारत के लिए खेलते ,भारत की पहचान बढाते किक्रेटर  विशवपटल पर भारत  का गौरव बढाते किक्रेटर  .... किक्रेट का खेल भारत की पहचान, भारत का अभिमान.....

दीपावली

 जगमगाती रही , निशा दीपों वाली  खुशियों भरी सौगात दीपावली  आगमन श्री राम जानकी ,लक्ष्मण  स्वागत में सजे घर- आंगन. द्वारे- द्वारे  श्री विष्णु, लक्ष्मी जी आप पधारे आरती उतारो थाल सजाओ. आंगन ,आंगन सुन्दर रंगोली बनाओ. खुशियों की सौगात दीपावली. मिष्ठानों का प्रसाद दीपावली  उपहारों का त्यौहार दीपावली  प्रेम और सौहार्द दीपावली  साकारात्मक ऊर्जा का संचार दीपावली  दीपावली पर प्रेम बढाओ  परस्पर प्रेम से एक दूजे पर सौहार्द लुटाओ.... कुम्हार से मिट्टी के दीपक घर ले आओ  घर- आंगन दीपों का प्रकाश फैलाओ 

सुबह सवेरे

 सुबह सवेरे घर का द्वार जब खोला  लगा, प्रकृति भी बोल रही है,आनन्द का सिंधु धरा को दे रही है  ठंडी हवा का झोंका मानों बोल रहा था ,आओ सांसो में  ताजगी भर लो , आंखो से प्रकृति का आनन्द ले लो  वृक्षों की डालियां झूम रही हैं ,झूम- झूम  के तन को भी सहला रही हैं,मन को खूब भा रही हैं,पौधों पर ओस की बूंदें मोती सम सज रही हैं .. खिली - खिली धूप का उजाला ,मन में नव ऊर्जा भर रहा.है , नव दिवस का नव सवेरा मन में उत्साह भर रहा है. कुछ नव नूतन करने को प्रेरित कर रहा है. पक्षियों की चहचहाहट कानों.में मधुर संगीत घोल रही हैं .. प्रकृति भी अपने रहस्य खोल रही है , वसुन्धरा पर अपना प्यार लुटा रही है जीवन का मतलब दे रही है  प्रकृति ही वसुन्धरा का श्रृंगार  प्रकृति ही वसुंधरा का आधार  प्रकृति से बागों में बहार. वसुन्धरा पर.प्रकृति का संसार   प्रकृति जीवन का आधार.  प्रकृति से भरपूर  आनन्द. प्रकृति से समृध् रहे संसार  प्रकृति जीवन का आधार....

उम्मीद

 आवश्यकता से अधिक उम्मीद दूसरों से  , आपको बेसहारा बना सकती है ..... उम्मीद अगर स्वयं से हो तो वह ताकत बन जाती है  उम्मीद जब दूसरों से हो तो कमजोरी बन जाती है ...  किसी के मन में आशा की किरण जगा कर , उम्मीद की जाये तो वह आत्मविश्वास बन जाता है ।

अच्छाई

 समुद्र में कंकङ भी हैं ,मोती भी हैं  कोयले की खान में कोयला भी है, हीरे भी हैं इसी तरह संसार में अच्छाई भी है ,बुराई भी हैं बुराई जो बहुतायत में दिखती है, ऐसा नहीं  अच्छाई कम है ,अच्छाई भी बहुतायत में है  किन्तु, बुराई के अंधेरे काले धुऐं के कारण  अच्छाई नजर नहीं आती ..हल्का सा धुआं  छंटा अच्छाई ही अच्छाई... बुराई  के अस्त्र प्रताड़ित करते हैं मनोबल कमजोर भी  करते हैं ...यहीं सब रहस्य छिपे हुए हैं ..सह जाओ प्रताड़ित  होकर टूटना नहीं ..काला धुआं छटते ही ,उजाला ही उजाला है ...

स्वदेश का स्वाभिमान

हम.शुद्ध स्वदेशी हैं ,हम मिट्टी के दीपक हैं, हम अंधेरे में उजाले की चमक हैं  कुम्हार के आंखों की चमक हैं ..हम कुम्हार के हाथों की मेहनत हैं ,हम.स्वदेश का स्वाभिमान हैं ..हम.मिट्टी के दीपक चकाचौंध से दूर.भीतर एक उजाला लिए बैठे होते हैं ...हममें गुरूर है.. भारत का स्वाभिमान हैं..     

त्यौहार

 त्यौहारों का मौसम !*** प्रत्येक त्यौहार स्वयं में विषेशता का प्रतीक चिन्ह समेटे हुये होते हैं ....त्यौहारों में गहरे संदेश छिपे होते हैं ....अपनी विषेशताओं के कारण त्यौहार युगों- युगों तक अपनी छाप छोङने में कामयाब  रहते हैं । संस्कृति,परम्परा और संस्कारों का संगम ....त्यौहार  परम्पराओं  के कुछ महत्वपूर्ण संस्कार... संसकारों की कुछ  आवश्यक रीतें ..जो जीवन में एक नयी राह, एक नयी,उम्मीद, नये रंग और उत्साह भर दे ....बेजोङ हैं यह परम्परायें ,यह संस्कार... त्यौहार जीवन में आनन्द और उत्साह भर देते हैं .. जीवन में नया रंग ,नया उत्साह भर एक नयी ,उर्जा भरने का काम  करते हैं त्यौहार... त्यौहार मात्र परम्परा ही नहीं....त्यौहार सत्य कथानक पर आधारित जीवन का महत्वपूर्ण आनन्द और सभ्यता को स्वयं में समेटे होते हैं ... त्यौहारों अच्छाई और सच्चाई का भी प्रतीक होते हैं ...तभी तो त्यौहारों पर तन- मन की स्वच्छता के संग अच्छे वस्त्रों घर की आंगन की साज -सज्जा का भी ध्यान रखा जाता है ... क्योंकि उन दिनों हम अपना सामीप्य महसूस करते है ...उन्हीं के स्वागत में बहुत तैयारियां की जाती हैं ... अतः त्यौहार, यानि जी

सुनहरी भाषा

 परिचय मेरा बस यही  निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा  छोटी सी डिबिया में बङी अभिलाषा  खुलते ही डिबिया निकले बङी -बङी आशा  निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा  कही पर अनकही ... मौन फिर भी ... बहुत कुछ कहती अद्भुत अभिलाषा  गति सीमित, उङान भरती..फिर  थम जाती  फिर उङान भरती... दिन- प्रतिदिन उङान   विकसित  करती ...जानने को सारा जहां .. विस्मित, अचंभित, अद्भुत, अकल्पनीय  परिचय से दिव्यता को धारण करती  निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा. सीमित गतिविधियों में अद्भुत गतिमान  अपनी उङान भरती मन की आशा  संकल्पों से सिद्ध करती ,ज्ञान, विज्ञान के रहस्यों  पर अपनी पैनी नजर से ,अद्भूत चमत्कार करती  दिव्य भाषा ..मन के भीतर की आलौकिक भाषा ... भाषा जो कुछ ना कहकर भी कह जाती मन की आशा  निशब्द, शब्दों की सुनहरी भाषा ...

संसार

माना की यह संसार हमारा है  जीने का आधार हमारा है  जहाज में संसार सागर के हम वृहद  की सैर करते हैं ... यह तो बहुत ही न्यारा है  दृश्य बहुत ही प्यारा है  नदियों में प्रवाहित कल- कल जल है आकाश भी सुनाता कहानी है  टिमटिम चमकते सितारे हैं  कहते कुछ जुबानी हैं  वृक्षों की ऊंची कतारें हैं , मीठे फलों का अमृत है  खेतों में अन्न की खेती है  जीविका की अद्भुत कहानी है  जीवन को सारे साधन हैं  मुस्कराने को प्रकृति प्रफुल्लित है ... महकाने को सुगन्धित पुष्प हैं पर्वतों की ऊंची चोटियों में श्वेत हिम की चादर है ..स्वर्णिम श्वेत किरणों से भव्यतम, अद्भुत दृश्यम है सोचने को सुन्दर सपने हैं  जाना की संसार हमारा है.. जीने का आधार हमारा है 

परिवर्तन

 परिवर्तन से काहे डरे ,आगे बढने को प्रयास । नव कदम आगे बङे ..होगा नये का आगाज ।। कुछ कर गुजरने को जो आगे बढा है ,होगा नये को जन्म । पतझङ पुराने पत्ते झङे ,होवे नव पल्लव का नव निर्माण ।। परिवर्तन जीवन का चक्र है ,प्रगति जग की यह रीत.। परिवर्तन से कर लो प्रीत..सही दिशा होवे जग जीत ।। परिवर्तन का इतना परिचय ,नयी सोच को जन्म । नयी सोच नयी आशा, नूतन ढंग लिखे परिवर्तन की परिभाषा ।।

मन के रावण को मारा क्या?

उत्सव है, पर्व ,है खुशियों की दस्तक है  विजयादशमी का विजय का पर्व  है... प्रत्येक वर्ष रावण, मेघनाद, और कुम्भकर्ण  के बुराई रूपी पुतले जलाये जाते हैं ... सोचो ...?बुराई का पुतला जलाकर, इतनी खुशी मिलती है तो फिर क्यों ना ,मनुष्य के मन के अंदर छिपे  अंहकार रूपी रावण, ईर्ष्या, द्वेष रुपी कुम्भकर्ण  दम्भ ,क्रोध लोभ रूपी कुम्भकर्ण का अंत करें ...और  मन की सच्ची खुशी पायें  द्वापर में तो एक ही रावण था वो भी महाज्ञानी  अब कलयुग में असंख्य रावण रुपी विकार पल रहे हैं  समाज में .... अंत करना है मन के विकारों रूपी रावणों का.. पुतले फूंकने हैं ... .... अब बुराई  के पुतले ,बाहर नहीं.. भीतर  फूंकने है ,मन के भीतर ,विकारों का दाह संस्कार  कर सच्ची खुशी मनानी है .... विजय प्राप्त करनी है स्वयं के मन के ऊपर  बुरे विचारों की आहुति देकर  ..आओ विजय का  बिगुल बजायें...सच्चा हर्षोल्लास आनंद पायें ....

मां जगदम्बा

मां जगदम्बा ,मां अम्बा  मां मनसा देवी ,मां शाकम्भरी  द्वार सजा ..पंडाल सजा है माता के जयकारों से भव्य महौल बना है माता रानी के नवरात्रे आये  भर-भर खुशियां माता लायी   घर- घर गूंजी मां की महिमा  नव रुपों में मां सज- धज आयी  महिमा मां की अपरम्पार  घर- द्वार सजे ,बंदनवार खुशियों का द्वार  रंगोली का रंग पक्का, मां को भाये दिल का सच्चा मां जगदम्बा ,मां सरस्वती ,मां लक्षमी ,मां काली कालरूपा  मां ही तो है सृष्टि की रचना मां में ही है सुख- समृद्धि का संचार  मां ही है रिद्धि- सिद्धि का आधार  मां को मनाओ घर सुख - समृद्धि वैभव लाओ ..

दोस्ती

पापा:-अपने बेटे से .. स्कूल से घर ले जाते वक्त.... मंयक बेटा ..उदास क्यों हो ..क्या चाहिए तुम्हें .. कोई टाय चाहिए.. चाकलेट चाहिए... मयंक:- पापा चाकलेट तो घर में बहुत सारी पङी है ...आप भूल गये ..आप कल ही तो लाये थे .... पापा :- हां याद है बेटा ,तुम चुपचाप बैठे थे ना इसलिए..पूछ  लिया ... मयंक :- पापा मैं अकेले कितनी चॉकलेट खाऊंगा...मेरा कोई दोस्त भी नहीं है ...    पापा :- गाङी चलाने में ध्यान  केंद्रित करते हुए  ... फिर बोलते हुये ..मैं हूं ना तुम्हारा दोस्त ... हां पापा वो तो आप हो .पर आपको तो आफिस भी जाना पङता है .... बेटा तुम  स्कूल की लाईन में सबसे पीछे क्यों खङे होते हो .. मंयक :- पापा सब बच्चे भाग- भागकर आगे खङे हो जाते हैं और मैं पीछे रह जाता हूं  मयंक :- कुछ सोचते हुये ..पापा आप ना.मुझे साईकिल दिला दो ... पापा:- ठीक है बेटा ... मयंक :- पर. पापा मैं साईकिल किसके साथ चलाऊगा  ...मेरा कोई दोस्त भी तो नहीं है ... पापा:- मयंक बेटा ..मैने तुम्हें कितनी बार कहा है ..अपनी जगह खुद बनानी पङती है .... मयंक:- पापा वो जो है ना सिद्धांत है ,वो मेरा दोस्त उसे क्रिकेट बहुत पंसद है ...और मुझे बिल

स्वप्न

 मन के अंदर भी बैठा होता है एक मन  एक जागृत अवस्था का मन, दूसरा स्वप्न अवस्था का मन  एक नयी ही दुनियां बसा लेता है ,ख्वाबों की दुनियां में मन  जागृत परिस्थति के आयाम पर स्वयं  ही सपने बुनता है .. निद्रा अवस्था में  मन के भीतर बैठा मन जो सुस्त अवस्था में  जागृत हो अपना ही कारवां तैयार  कर लेता है  स्वप्न बनकर घटनास्थल से कुछ भी चुन लेता है  और सपनों के रूप में साकार होता है  मन की गहराई का कोई तोङं नहीं  क्षमता अनुसार  ही जान पाता है मनुष्य  थोङा बहुत भी भीतर की यात्रा की हो तो  बहुत रहस्य खुलते हैं ..रत्नों की समझ आती है .. अद्भुत रुप से आकार लेते हैं स्वप्न  परिवेश से लेकर  अतीत की यादों से स्वयं सिद्ध  होकर आकार लेते स्वप्न... अचंभित करने वाले स्वप्न.... स्वप्न सच्चाई की गहराई से निकले तिलिस्मि  सपने  सपने अपने फिर भी अपने नहीं ..पर सपनों में जन्म लेते सपने .....

इंसानी बसतियां

आजकल मैं इंसानी बस्तियों से दूर रहता हूं  इंसान ढूढता क्या है  सामन्यता !मैने तो देखा नहीं  कभी किसी इंसान ने किसी इंसान में  अच्छाई ढूढी हो ..बहुत ही कम अच्छाई ढूढता है   एक मानव दूसरे मानव के भीतर  वरना कमियां ढूढने में इंसान माहिर है  चाहे स्वयं गलतियों का पुतला हो .... अपनी कमी तो हो जाती है किसी कारण से  आदत से मजबूरी होती, है गलती नहीं  कमियां तो दूसरे इंसानों में होती हैं  स्वयं तो हम दूध के धूले होतें हैं  इसलिए आजकल मैं इंसानी बस्तियों से दूर रहता हूं  स्वयं में मदमस्त  ..नहीं यह नदिया किसी में कमियां नहीं ढूढती बल्कि सभी कमियों रुपी कूङा- करकट को किनारे कर देती है  पर्वतों ,वृक्ष वातावरण को महकाते ,स्वच्छ रखते हैं ..  मदमस्त हवा का झोंका उङा ले जाता सभी पतझङ किनारे पर  इकट्ठा कर  देती है ... समुद्र की लहरों की मस्ती क्या कहिये ...

आओ मुस्करायें हम

आओ प्रकृति संग अपना वक्त बितायें हम  आओ पुष्पों संग - संग थोड़ा मुस्करायें हम  प्रकृति को निहारें ..प्रकृति के दिलकश सौन्दर्य में खो जाये हम  आओ थोङा मुस्करायें हम  बागों में पुष्प खिलते हैं  हमारे लिए ही तो हैॅ प्राकृतिक सौंदर्य हमारे लिए ही तो है  तो फिर क्यों ना इससे प्यार करें हम  प्रकृति को निहारें संरक्षण करें पुष्पों के बगीचे में महकते पुष्पों की सुगंध में गुनगुनाये  कभी ध्यान से सुने ..कल- कल बहते जल का संगीत  बैठ नदिया किनारे गीत गुनगुनाएं यदा-कदा नाचे मन मयूर हरियाली में  कभी बागों में हरी घास पर विहार करें  कभी ऊंचे पहाडों पर चले जायें नहीं पहुंच सकते तो ,मन की उङान भरें  और पहुंच जायें कहीं परियों के देश में  जहां मन्द शीतल हवा बहती हो  रंग- बिरंगी तितलियां विभोर करती हों  जहां सब रमणीय हों ....सबके ह्दय में प्रेम के समुंद्र की लहरें उछाले मारती हों ... पक्षियों की चहचहाहट मधुर संगीत के सुर  जब वसुन्धरा अपनी इतनी भव्य है तो फिर क्यों उदास रहें हम  अतृप्त रहे हम ...आओ प्रकृति संग अपना वक बिताये हम 

परवरिश बाल मन की

  राम कुमार:-अरे अरे! क्यों पीट रहे हो ...राजा बेटा को ...  शिव कुमार:-  राम कुमार यह बहुत  बिगङ गया  है ...हाथ से निकल गया है ...यह राजा बेटा ..?. जाने कौन से बुरे कर्मों का फल मिल  रहा है ... इतना बिगङ गया है राजा की पूछो मत ....दिन भर हाथ में यह मोबाइल और गेम्स ..मैं तो तंग आ गया हूं ? रामकुमार:- अरे बच्चा है .सम्भाल लेगें सब मिलकर... शिवकुमार:-  रामकुमार..तुम सही कहते थे मैं ही नालायक अपनी दौलत के नशे में चूर ..अपने बेटे की आवश्यकता से अधिक इच्छायें पूरी करता रहा ..और आज भुगत रहा हूं.......बच्चों की आवश्यकता से अधिक इच्छायें कभी पूरी नहीं करनी चाहिए..अपनी चादर से अधिक पैर बाहर नहीं निकालने देने चाहिए.... अब तुम अपने बेटे को देख लो ...कितना गुणी और समझदार है ... मैं हमेशा तुम्हारा मजाक उङाता रहा ..और तुम हमेशा सम्भलकर चलने के विश्वास में अडिग रहे ..... राम कुमार---: हां शिव कुमार. किसी भी हालत में बच्चों  की परवरिश को हल्के में मत लीजिए  ... प्रेम, दुलार, शुभ विचार, उच्च  आदर्शो  का पोषण  भी निरंतर देते रहिए  .... थोङा प्यार थोङा दुलार... सही आकार देने के लिए ढोकना भी पङता है ..  कि

खोज मन में उठते भावों की

भावनाओ का सैलाब  खुशियां भी हैं ...आनन्द मंगल भी है शहनाई भी है ,विदाई भी है  जीवन का चक्र यूं ही चलता रहता है  एक के बाद एक गद्दी सम्भाल रहा है... कोई ना कोई  ,,जीवन चक्र है चलते रहना चाहिए  चलो सब ठीक है ..आना -जाना. जाना-आना सब चलता रहता है  और युगों- युगों तक चलता रहेगा ... भावनाएं समुद्र की लहरों की तरह  उछाले मारती रहती हैं ... जाने क्यों चैन से रहने नहीं देती  पर कभी गहरायी से सोचा यह मन क्या है  ?  भावनाओं का अथाह सैलाब  कहां से आया  मन की अद्भुत  हलचल  ,विस्मित, अचंभित अथाह  गहराई भावनाओं की ....कोई शब्द नहीं निशब्द  यह भावनायें हैं क्या ?...कभी तृप्त  नहीं होतीं .... भावनाओं का गहरा सैलाब है क्या ?  और समस्त जीवन केन्द्रित भी भावों पर है ... एक टीस एक आह ! जो कभी पूर्ण नहीं होने देती जीवन को  खोज करो भावों की मन में उठते विचारों के कोलाहल की  क्यों कभी पूर्णता की स्थिति नहीं होती एक चाह पूरी हुई दूसरी तैयार  ....वो एक अथाह समुद्र की .. खोज है मुझे ...भावों के अथाह अनन्त आकाश की ... उस विशाल ज्वालामुखी के हलचल की ...भावों के जवाहरात की ..जो खट्टे भी हैं मीठे भी  सौन्दर्य से पर

राजा आलू

रसोईघर में उछला आलू  मैं तो हर दिन रहता हूं चालू  मटर आलू ,गोभी आलू  टमाटर आलू ,बैंगन आलू  पुलाव में आलू जाने किस - किस  में आलू  मैं तो रहता हूं हर दिन चालू  आलू को ना सस्ते में टालो  समभालों मुझे सम्भालो   चाहो तो मुझसे चिप्स बना लो  आलू का परांठा चटपटा दही संग खा लो  आलू को ना रसोईघर से निकालो  चाहे मुझे कितने दिन  सम्भालो  जब मर्जी  निकालो आलू का पकोङा बना लो  आलू को ना समझो चालू  आलू है रसोईघर का राजा   आलू करता है सब्जियों को साझा  आलू है सब्जियों का राजा ...

नर्म मुलायम भावनाओं के तार

नर्म मुलायम भावनाओं के तार  वाह रे खूब स्वेटर से प्यार  मां के हाथों से बुना स्वेटर  नर्म ऊन की गर्माहट समेटे  कोमल मुलायम स्वेटर भागों वाला  रिश्तों का स्वेटर बहुत ही न्यारा  नमूना डाला ऐसा दिल को भाया देखा मनमोहक चित्रों वाला स्वेटर बन गया  प्यारा  ढूढा फिर कोई सुनहरा सितारा. लगे जो प्यारा - प्यारा  नर्म  मुलायम ऊन को फंदों में समेटा  रिश्ते बन रहे हैं अद्भुत तालमेल से  हर कोई  कह रहा है यह तो है  हमारा  रिश्तों की तुरपाई में ना छूटे कोई  प्यारा  हर फंदा बहुत सम्भाल कर उठाती हूं  जोडना है हर  रिश्ते के साथ सम्बंध भागोवाला  बुनाई में सब जुङते चले जा रहे हैं.सभी प्यारे -प्यारे रिश्तो की गर्माहट को जोड़कर   रखना जो मकसद है हमारा  नर्म मुलायम भावनाओ के तार   थोङा सम्भाल कर करना बस मृदुल व्यवहार  इसमें बसता है समस्त संसार  . नर्म मुलायम भावनाओ के तार में जोङे रखना है  जीवन का आधार  खूब फूले फले दिलों में  रहे खिलता समस्त संसार  ...     

राधा अष्टमी की बधाई

श्री राधा नाम  जीवन का सार  राधा अष्टमी स्वयं सिद्ध लक्ष्मी अवतार  दिव्य अवतार  धरा पर बधाई हो बधाई  नाम अमृत कर विश्वास  नाम से जोङे जो मन के तार  जीवन का जाने वो सार  श्रद्धा से नाम का ह्रदय कर विश्वास  सिदध् होवे नाम रहस्य आभास  राधा नाम जिह्वा पर आया  राधा नाम से अमृत रस भर आया  राधा नाम  भव पार  उतारा  राधा नाम  भव सागर  सारा  राधा नाम  की मन जोत जलायी  मन मंदिर उजियारा भर आया  बाहर भीतर मन  मुस्काया  राधा नाम  मीठो ऐसो  मुख घोले मिश्री सो जैसो  पकङ राधा नाम की पतवार   फिर ना डूबे भक्त  कभी मझधार  राधा नाम भव सागर पार उतारे  राधा नाम  बङी कमाई  जिस जन राधा नाम संग लौ लगाई  तिस जन दुनियां जहां की दौलत पायी .... राधा नाम की जब बहती ह्रदय धारा  धारा से हो जाती राधा .......2 राधा नाम  की धारा  राधा की धारा  धारा में श्री राधा ....

घराना एक ही है हमारा

घराना एक ही है हमारा, एक ही घर है हमारा  एक ही घर से आये हैं ,एक ही जगह जाना है    एक घर हमारा ,बहुत ही प्यारा बहुत  ही न्यारा  सजाना संवारना इसे ही है ,यही अपना ठिकाना  एक ही घर से निकलें हैं .एक घर को लौटकर आना है  तजुर्बों का भरना खजाना है ...कुछ  बेहतर दे जाना है  कुछ बेहतर ले जाना है ..सफर में हंसना और मुस्कराना है  कुछ बेहतर किस्सों के अद्भुत फसानों की सौगात छोड़ जाना है   एक ही हमारा घराना है , एक ही हमारा याराना है  एक ही हमारा तराना है ,एक ही जगह से आना और  फिर लौट जाना है  अलग- अलग राहों से होकर  गुजरना है .. तजुर्बों का बुनना ताना और बाना है  मनुष्यों की प्यारी धरती पर मनुष्यता की छाप छोङ जाना है  दुनियां की राहों में अपनी मंजिल  अलग- अलग  बनाना.है अपने घर लौट जाना है ,यही जिन्दगी का फसाना है  जिस  घर से आये हैं ,उस घर को लौट जाना है कुछ  करके दिखाना है यही जीवन  का फसाना.है 

हिन्दी स्वयं मां सरस्वती का आशीर्वाद है..

हिन्दुस्तान में मेरा घर संसार  है  हिन्दी से मुझे प्यार  है  हिन्दी ही मेरा आधार  है. हिन्दुस्तान में मेरा घर संसार  है  हिन्दी ही मेरी पहचान है हिन्दी में ही मैने पहला शब्द बोला  हिन्दी में मैने अपने भावों को दिल खोल के बोला  हिन्दी में मैने मुस्कराना सीखा ,हिन्दी में मैने गुनगुना सीखा  हिन्दी की ऊँगली पकङकर मैने, अनगिनत रिश्तों को सींचा  हिन्दी मेरी मातृ भाषा मां तुल्य पूजनीय है  हिन्दी मेरी मातृ भाषा मेरी मां ही तो है  हिन्दी में ही मुझे विभिन्न विषयों का ज्ञान मिला .. अपनी मातृ भाषा को भूलकर अगर  हम सर्वप्रथम किसी  ओर भाषा को स्थान  देते हैं.तो यह स्वयं की मां का अपमान  ही होगा ...भाषायें सभी अच्छी हैं .लेकिन  हिन्दी तो अद्भुत,  अकल्पनीय, अनमोल है ... हिन्दी विश्व की प्राचीनतम भाषा है  हिन्दी में ही वेद ऋचाएं एवं विश्व के अनमोल ग्रन्थ  वर्णित हैं  जिनके अनुवाद  बाद में अन्य भाषाओं में हुआ ... हिन्दी ज्ञान  का सागर है ... हिन्दी ही सर्वप्रथम, एवं सर्वश्रेष्ठ  भाषा है ,हिन्दी देवताओं की दिव्य भाषा है ....  हिन्दी स्वयं मां सरस्वती का आशीर्वाद है..

कुछ लोग हमारा भी नाम गुनगनायेगें

कुछ  लोगों में कुछ  लोग हमारा भी नाम  गुनगनायेगें ,जिद्द है हमारी भी अंधेरी जिन्दगियों में  विश्वास की उम्मीद की नयी किरण जगा जायेगें  खुद जलकर भी जहां को रोशन कर  जायेगें   जीवन को जीने की कला सिखा जायेगें   बहती नदिया के सामान है जीवन  रुकता नहीं बस चलता है  जीवन को जीना पढता है  जीवन आपका इंतजार नहीं करता  आप ही रुके रह जाते हैं  जीवन  तो बस चलता है आगे की ओर   तुम रुके हो सही वक्त  ..का इंतजार  कर रहे हो  लेकिन वक्त  निकल. जाता ..और हम हाथ मलते  रह जाते हैं ...कोसते रहते हैं वक्त को  वक्त  तो वक्त  है .जिसका काम  है आगे बढना  उठो आगे बढो  ....हर वक्त बेहतरीन है जब उठकर  आगे बढ़कर कुछ कर लिया तुमने ...वही वक्त  सही है इंतजार किसका, आप रूके हो सब चल रहा है  फिर  ना कहना मेरा समय सही नहीं था .. समय तो वही था ,पर क्या करे हमारा इरादा ही  सही नहीं था , इरादों को पक्का किजिए जनाब   आगे बढिये, सब कुछ  हाथ से निकल  जायेगा  जीवन  भी आखिरी मुकाम  पर खङा हो सांसे लेते  कहेगा मेरा समय भी आ गया मैं भी चला... कितने आये और गये गुमनामी के अंधेरे में गुम हम जलते चिराग  है ,खुद जलकर भी जहां को रोशन

भारत माता.की जय.

 हमने तो बचपन से जो सुना है, जाना है,  हिन्दुस्तान, का प्रचीन नाम  भारत ही है. अंग्रेज जब भारत में आये तो उन्होने भारत को India.नाम  से भी सम्बोधित किया ... मतलब की अंग्रेजी में India ..और हिन्दी में हमारी हमारी मात्र.भाषा में.भारत और हिन्दुस्तान नाम  हैं ..... तो इसमें राजनीती करने की आवश्यकता नहीं ...India माता की जय तो.बोलेगा नहीं ....भारत  माता की जय ही बोलेगें....

श्री कृष्ण जन्माषटमी उत्सव

  श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव* यशोदा के लला गपियों के गोपाल मुरलीधर , छलिया भक्तों के केशव,मनमोहन श्यामसुंदर ,माधव जिसने जिस -जिस नाम से पुकारा कृष्ण दामोदर हो गए उसके प्यारे अनन्त,अद्वितीय अलौकिक,निरांकर मुझमें ही समस्त सृष्टि का सार सुव्यवस्थित करने को सृष्टि पर आचरण और व्यवहार मुझ अद्वितीय शक्ति को पड़ता है ,धरती पर अवतार श्री राम -सीता ,राधे-कृष्ण नामों का आधार धरती पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार भादों की कृष्ण जन्माष्टमी पर पर श्रद्धा ,विश्वास ,और प्रेम से मनाया जाता है , का हो उद्धार भाद्र पद की कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है  कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार  मुबारक हो सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार........

धरती से आकाश तक का सफ़र चंद्रयान- 3

 परिचय... पात्र... बेटा नाम आकाश... पिताजी अवनीश कुमार... मां आरती देवी.... बेटा ....मां से मै बङा होकर वैज्ञानिक बनूँगा ... और चांद पर जाऊंगा ... मां ...मेरा प्यारा बेटा .... तुम्हें बहुत सारा आशीर्वाद...पहले तुम  भोजन तो कर लो ...तभी तो होशियार  बनोगे ....  बेटा नाम आकाश....  खाने से होशियार  ....मां काम को ध्यान  से करूंगा तब उस चीज की बारीकियां समझूँगा तब होशियार  बनूंगा .... मां ..नाम  आरती .... बहुत  बङा हो गया है तू ...गाङी भी तभी चलती है जब उसमें पेट्रोल डलता है.... मै जानती हूं मेरा बेटा बहुत  मेहनती और लगनशील है....  तुम्हारी दृढ इच्छा-शक्ति तुम्हे चांद  क्या अंतरिक्ष तक पहुंचायेगी .... पिता अवनीश.... बेटा तुम  अपने काम पर ध्यान  दो ...तुम्हारी मां तो तुम्हारी मां है ....इसे तो दिन - रात  बस खाना ..खाना ही पता है ... आकाश...मां बस मेरा बारहवीं का परिक्षा पत्र आ जाये फिर तो मैं श्री हरिकोटा जाऊंगा ....  मां ..आरती...हां बेटा जरूर जाना ...भगवान  का आशीर्वाद  तो बहुत  जरूरी है .... अवनीश...अरे भाग्यवान  श्री हरिकोटा मे वैज्ञानिक अनुसंधान है ... जिसका नाम  है इसरो ....हमारे राष्ट

शिक्षक जीवन वरदान

शिक्षक जीवन वरदान, अनमोल रत्न मान  अक्षर- अक्षर समझाते ज्ञान विज्ञान, शिष्य बनाये बुद्धिमान  शिक्षक समाज की नींव, मानों तन की रीढ  तोङे अंधविश्वास रूढ़ीवादिता की जंजीर  ... शिक्षक भूमिका सर्वोत्तम, कर्म यह पूजनीय  शिष्य बनते अतुलनीय.... शिक्षक भेद भाव से ऊपर ,तराशे शिष्य गोपनीय  शिक्षक द्वारा प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बनते विद्यार्थियों के लिए बनती प्रेरणा स्रोत .. शिक्षक अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाता ।  समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर  पहुंचता। जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती , तब समाज का उद्धार होता है । बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भ्रष्ट,निर्जीव ,पशु सामान । शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम , नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक। बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,   शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ। शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता ।।।।।।। 

तुलसीदास जयंति पर तुलसीदास जी को नमन

तुलसीदास जयंति पर तुलसीदास को शीश नवायें  रामचरितमानस के महात्म्य से जीवन को चरितार्थ करें  आत्म तत्व में प्रवेश कर जीवन को अमृतमय बनायें  आओ फिर से रामराज में चलें  पतित- पावन  ग्रंथों से जन- जन का उद्धार  नमन नतमस्तक नत शित बारम्बार  , गोस्वामी तुलसीदास महान  भारत की परम्परा ,भारत की विरासत   भारत  का गौरव , भारत का रक्षा कवच  भारत  के गुरु ,आचरण  की सभ्यता  नत शित बारम्बार  * रामचरितमानस* के  रचियता ...यज्ञ ,तपस्या ,भारत  का माहात्म्य  राम राज्य का चरित्र  अद्भुत वरदान   गोस्वामी तुलसीदास का सोपान  अमृत रस पान रामचरितमानस महान  भारत एक अभिमान एक संज्ञान, एक विज्ञान   भारत वासियों की साधारण  पहचान   सरल व्यवहार, मीठी वाणी ,उच्च आदर्श  भीतर  ज्ञान  का अद्भुत ज्ञान   भारत वासियों की अद्भुत अतुलनीय अद्वितीय पहचान ...

आओ सांझा चूल्हा जलाएं हम

आओ मिलजुल कर सेकें रोटियां कुछ बातों के किस्से मसाले दार  चटपटा अचार  चटनी भी पीस लेंगे  सारी फिक्र मिलजुल कर बांट लेंगे.... परन्तु सब अपनी ही रोटियां सेंक रहे हैं  पहली भूख तो सबकी दाल रोटी है  ना जाने और क्या- क्या पका रहा है मानव  चूल्हे पर कम ,मन में ज्यादा खिचङी पक रही है  खुद ही उलझा हुआ ,कैसे सुलझायेगा  किसी की फिक्र.. अपनी फिक्रों में उलझा मनुष्य  सबको अपनी ही फिक्र है  मालूम नहीं फिक्र में करता  अपना ही जीना दुरभर है  बस आगे की ओर भागता मनुष्य  जिस जीवन में जिसकी तलाश  उस उम्र  को ही दाव पर लगाता  आगे की ओर जाने की होङ में स्वयं  को पीछे धकेलता ....मानव  आओ जलाएं साझा चूल्हा  मिलजुल कर  एक कुटुम्ब बनाये हम ....

आया सावन झूम के

आया सावन झूम के  बन मयूर मन नाचे घूम- घूम के  रिम झिम वर्षा की बूंदें बन मोती  अम्बर से प्रकृति का रूप निहारें  आया सावन झूम के सखियां सजायी हाथों में मेंहदी  आकृति बनायी मनमोहिनी  रुप माधुरी चित -चोर  रुप चढा ऐसा मेंहदी का, मानों भव्य पंख हो सुन्दर मोर  मानों चंदा पर चकोर  पुष्पों पर तितलियां हो रही हों आकर्षित  हो भाव विभोर.. माथे पर बिदियां मानों अम्बर पर सितारों का जलवा  चूडियों की खनक मानों वीणा के सुर पैरों की पायल मानों संगीत की धुन पर  रियाज करता हो कोई  साज प्रकृति तुम्हारा रुप भी निखरा- निखरा है आजकल   आया है सावन झूम झूम  के  वर्षा की मधुरमयी फुहार   चहूं और बहार  ही बहार   खुशियों का संसार   सदाबहार रहे प्रकृति का रूप रहे निखरा - निखरा  मन प्रफुल्लित हो हर्षित हो तिनका भी तृण का ...

पावन मंदिर

पावन मंदिर  पवित्र स्थल  मंदिर मन के अंदर  पवित्र चिंतन  वही पवित्रता मंदिर के अंदर  हम मंदिर जाते हैं बहुत  कुछ  पाने के लिए   मन का सूकून ढूढने के लिए  मैं भी मंदिर गया  श्रद्धा  से दर पर शीश झुकाया  मन को लगा सब मिल गया  मन संतुष्ट भी हुआ परन्तु... बस कमी यहीं रह गयी  परमात्मा के दर पर जाकर हम परमात्मा से बहुत कुछ सांसारिक मांग लिया अगर हम परमात्मा में अपना मन टिका  परमात्मा का साथ ही हमेशा के लिए मांग लें तो फिर  बार- बार कुछ  मागने की जरुरत  ही ना पढेगी

सावन की चहक ...

महक रहा है सारा माहौल    चमेली के इत्र की महक अपराजिता के पुष्पों का सौन्दर्य   तन - मन की भुलाकर  सुध  आया सावन  झूम  के  वृक्षों में हरियाली आयी फल - फूलों से लदे हैं वृक्ष   क्यों कर रही हो प्रकृति इतना श्रृंगार   चहूं और आ रही है बहार   वर्षा संग रिमझिम बूंदो की फुहार   पत्ता- पत्ता डाली- डाली मोती रुपी पानी की बूंदें मानों हो कोई त्यौहार .. खुशियों का संसार हर कोई कर रहा है श्रृंगार  हरी- भरी चूडियां बजती पैरों में पहने नुपुर   मानों बजाते हों की संगीत की धुन ..झूमों सखियों झूमों  आया सावन के झूम के झूम- झूम  के  सावन के गीतों का मौसम आया, गुजिया घेवर और  पकवान  भी संग लाया ,भर लो मिठास जीवन में, आया सावन  झूम  के सदाबहार रहे सावन की शान  कर लो जी भर श्रृंगार मेंहदी के रंग से रचाओ हाथों में सुन्दर   आकृति ...कलाईयों में हरी- भरी चूङियां  प्रकृति ने भी किया श्रृंगार  हरियाली की आयी बहार  आया सावन झूम के ....पेङों की डालियों पर पङ गये झूले  सखियां ऊंची- ऊची पींगें झूले मानों की छू लेंगी आसमान   आया सावन  झूम के....... महक रहा है सारा माहौल  चहक रहा है सारा माहौल....