आओ मिलजुल कर सेकें रोटियां
कुछ बातों के किस्से मसाले दार
चटपटा अचार चटनी भी पीस लेंगे
सारी फिक्र मिलजुल कर बांट लेंगे....
परन्तु सब अपनी ही रोटियां सेंक रहे हैं
पहली भूख तो सबकी दाल रोटी है
ना जाने और क्या- क्या पका रहा है मानव
चूल्हे पर कम ,मन में ज्यादा खिचङी पक रही है
खुद ही उलझा हुआ ,कैसे सुलझायेगा
किसी की फिक्र.. अपनी फिक्रों में उलझा मनुष्य
सबको अपनी ही फिक्र है
मालूम नहीं फिक्र में करता
अपना ही जीना दुरभर है
बस आगे की ओर भागता मनुष्य
जिस जीवन में जिसकी तलाश
उस उम्र को ही दाव पर लगाता
आगे की ओर जाने की होङ में स्वयं
को पीछे धकेलता ....मानव
आओ जलाएं साझा चूल्हा
मिलजुल कर एक कुटुम्ब बनाये हम ....
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