परिस्थितियों की बात तो क्या कहिये बड़ी ही जिद्दी, अड़ियल.... बिडम्बना तो देखो, हम भी तो कम नहीं, परिस्थिति जो चाहती है, वो हमें मंजूर नहीं जो हम चाहते हैं, वो परिस्थितियों को मंजूर नहीं कभी हम परिस्थिति के अनुरूप नहीं, कभी परस्थिति हमारे अनुरूप नहीं... परिस्थिति कभी किसी के अनुसार नहीं चलती जब हम परिस्थितियों के अनुसार चलने लगे, परिस्थितियां के रंग बदलने, पहले हम परिस्थितियों के अनुसार चलते थे, अब परिस्थितियां कुछ हमारे हक में होने लगी, शायद हमें भी परिस्थिति के अनुसार जीना आ गया... परिस्थितियों को हमारे रंग में ढलना आ गया.. हमें भी चलना आ गया, जीवन जीने का ढंग आ गया, परिस्थितियों को हमारे अनुरुप ढलना आ गया, हमें भी हर रंग में रंगना आ गया। परिस्थितियों संग तालमेल बिठाना आ गया।