प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ सुचिता के श्रृंगार रस को प्रेम ने पूजा कहा प्रेम में हैं सब यहां, श्रृंगार है सबको प्रिय प्रेम की मीठी कशिश में ,कशमकश हरपल यहां प्रेम ही सौन्दर्य है , सौन्दर्य हिय भीतर भरा कलियों की बालियाँ , पुष्पों बना श्रृंगार है बगिया माली की कोशिशें अनन्त हैं चाह सबकी है यही हर-पल रहे बसंत है पुष्प खिलते हो जहां पर, आकर्षण है वहां भरा मन की सुन्दरता है जो भीतर प्रेम से है जगत भरा-- विरह - मिलन की तपन में, नयन कमल प्रेम अश्रु झर - झर झरा - - अश्रु नहीं यह प्रेम रस है जो हिय भीतर पड़ा, - - कर्तव्य पथ पर जो चला - - परदेश का रुख करा आंगन सूना हो गया, द्वार टकटकी लगी, आंख कब लगी, पता तब लगा, जाग जब थी खुली - - सूखे नयनों की अब इंतहा हो गयी - - गैय्या खूंटे बंधी , रम्भाती ना अब कभी.. पनघट अब सखी ना छेड़े मुझे बरगद की छांव में यादों का सिलसिला चले लौट तुम जब आओगे दिन गिन-गिन कटे वक्त इतना बीत गया, गिनती ना गिन सकूं थक मैं हूँ गयी, हारी प...