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Showing posts from May 12, 2024

छुट्टियां

 कुछ छुट्टियां बिताने मनुष्य बनकर  धरती के सफर पर आयी हूं।  प्रकृति का दीदार करने धरा पर आयी हँ।  वाह! वसुंधरा पर प्रकृति का श्रृंगार  अद्भुत, अतुलनीय, अकथनीय।  प्रकृति यहां गीत गुनगुनाती है  झरने वाद्य बजाते हैं, तन-मन की निर्मलता  को नदियों का अद्भुत संगम यहाँ।  खेतों की हरियाली मन को भा जाती हैं  शीतल हवायें प्राणवायु बढाती हैं।  वृक्षों पर मीठे फल भी आते हैं, पेट क्षुधा को  तृप्त कर जाते हैं।  आते हैं,जाते हैं, मुसाफिर यहां,  कुछ खूबसूरत भव्य आलीशान  निस्वार्थ प्रेम के महल  बनाकर जाऊंगी।  खुशियों की चाबी भी संग अपने लायी हूँ।  मोहब्बत के तराने भी गुनगुनाऊंगीं ।  परस्पर प्रेम के बीज भी लायी हूँ।  लौट जाने से पहले अपनत्व की फसल  लहलहाने आयी हूँ।  नहीं उलझना मुझे शिकवे - शिकायतों में  जीवन का हर लम्हा सुख-चैन से जी के बिताऊगी ।