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Showing posts from December 25, 2024

वंशज

एक हैं सब एक हैं, लहू सबका एक है  रंग भेद हो भला आकार सबका एक सा  एक वृक्ष की शाखायें हम  टहनियाँ विकास है  वंशज हम एक के - - -  पुष्प उपजते प्यारे - प्यारे.. एक से बड़ते रहे  अनेक हम होते रहे...  एक की संतान हम फिर क्यों मतभेद हुये  जात-पात में फंस गये हम आपस में लहूलुहान हुये एकत्व से अनेकत्व बने जड़ें सभी की एक हैं  शाश्वत जन्म की कहानी, फिर क्यों उलझती जिन्दगानी, मन का पंछी सपनों की उड़ान भरने में व्यस्त रहा, एक दिन आ टिका धरती पर..  नजरें थम गयीं, मन रुक गया  वसुंधरा थी कह रही - - बोली धरती पर रुको हाल मेरा भी   लिखो, हाल मेरा बेहाल है  हालात देखो तो जरा सब लहूलुहान है  पपड़ियाँ है उतर रही, छीलती अब खाल है  सपनों के महल बनाता मनुष्य  किया मुझे बेहाल है   सपनों की उड़ान  नहीं -   धरती पर जीवन की सच्चाई लिखो  पेट सपनों से नहीं  भरते  मेहनत की बिबाई लिखो पेट की आग को दौड़ धूप तो लिखो  मेहनत की कशमकश लिखो धरती पर रहते हो   धरती के लोगों की बात करो....

देना सीखो

देखो इस दुनियां से कोई लेकर तो कुछ जा नहीं सकता - - - -  फिर क्यों ना देकर ही जाने की सोच बना लें - - - हम तो रहेगें नहीं - - हमारे बाद हमारा नाम - हमारे नाम से हुआ काम तो रह जायेगा.. कम से कम लोग कहेंगे उस शक्स ने यह किया था - - देखो वो तो इस दुनियां से चला गया - - लेकिन काम बहुत अच्छे कर गया - -  जोआज भी उसको याद किया जा रहा है।  मेरे मायने में तो सफल है ऐसा जीवन की आप किसी के काम आ सकें।