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Showing posts from February 5, 2025

महत्वकांक्षा

सुनीता बड़े- बड़े घरों में काम करती थी.. मुंह की मीठी चापलूसी करना उसकी आदत थी-क्यों ना हो आखिर यही सब तो उसके काम आने वाला था--  वो जानती थी---उसका पति इतना कमाता नहीं.. जो कमाता भी है, वो घर - परिवार के खर्चो में निकल जाता था.. आखिर इतनी मंहगाई में चार बच्चों को पालना.. माता -पिता की दवा का खर्चा कुछ खाने-पीने में ही निकल जाता था।  सपने देखने का हक सबको है, माना की हम कम पैसे वाले हैं.. पर शहरों की ऊंची -ऊंची इमारतों का बनाने में हमारी ही मेहनत छीपी होती है। सुनीता को गांव से शहर आये पांच साल हो गये थे, शुरू के कुछ महीने बहुत संघर्ष करना पड़ा सुनीता को.. नये-नये गांव से आये थे, जल्दी से कोई काम पर भी ना रखता था.. किसी तरह सुनीता के पति को मजदूरी का काम मिला... अभी तक तो फुटपात पर दिन बीत रहे थे, किसी की पहचान से किराये के लिए एक झोपड़ी की व्यवस्था हुई। सुनीता साथ - साथ मजदूरी का काम भी करने लग गयी, बच्चे भी दिन भर वहीं मिट्टी में खेलते रहते,पापी पेट का सवाल था, खाना मिल जाये वो ही बहुत था, स्कूल पढाई तो दूर की बात थी। बच्चों को दिन भर मिट्टी में खेलते देख.. आसपास की बिल्डिंग...