कभी भी किसी को हल्के में मत लेना हर कोई भीतर एक ज्वाला लिए बैठा है साधारण हूं इसीलिए तो असाधारण भी हूं आज के युग में साधारण होना भी कोई आसान नहीं साधारण हूं क्योंकि सब समझ जाते हैं असाधारण इसलिए की सब ऊपर से देखते हैं भीतरी की गहराई जान नहीं पाते हैं सरल हूं .. तरल भी हूं देता सबको शीतलता हूं भीतर एक ज्वाला लिए बैठा हूं मुझसे खिलवाड़...मत करना भीतर मेरे भी है हथियार .... सरल हूं तरल हूं निश्च्छल हूं मेरी सरलता ही मेरी पहचान है मेरी आन -बान और शान है मैं शाश्वत हूं क्योंकि मैं सत्य हूं मेरे अस्तित्व से छेड़छाड़ भूल होगी तुम्हारी छल कपट के यंत्रो की रफ्तार भले ही जोरदार अंत जब होगा तब ना रहेगा नामोनिशान ....