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Showing posts from August, 2023

शिक्षक जीवन वरदान

शिक्षक जीवन वरदान, अनमोल रत्न मान  अक्षर- अक्षर समझाते ज्ञान विज्ञान, शिष्य बनाये बुद्धिमान  शिक्षक समाज की नींव, मानों तन की रीढ  तोङे अंधविश्वास रूढ़ीवादिता की जंजीर  ... शिक्षक भूमिका सर्वोत्तम, कर्म यह पूजनीय  शिष्य बनते अतुलनीय.... शिक्षक भेद भाव से ऊपर ,तराशे शिष्य गोपनीय  शिक्षक द्वारा प्रेरक कहानियाँ ,प्रसंग कहावते बनते विद्यार्थियों के लिए बनती प्रेरणा स्रोत .. शिक्षक अज्ञान का अन्धकार दूर कर ,ज्ञान का प्रकाश फैलाता ।  समाज प्रगर्ति की सीढ़ियाँ चढ़ उन्नति के शिखर पर  पहुंचता। जब प्रकाश की किरणे चहुँ और फैलती , तब समाज का उद्धार होता है । बिन शिक्षक सब कुछ निर्रथक, भ्रष्ट,निर्जीव ,पशु सामान । शिक्षक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ ,सर्वोत्तम , नव ,नूतन ,नवीन निर्माता सुव्यवस्तिथ, सुसंस्कृत ,समाज संस्थापक। बाल्यकाल में मात ,पिता शिक्षक,   शिक्षक बिना सब निरर्थक सब व्यर्थ। शिक्षक नए -नए अंकुरों में शुभ संस्कारों ,शिष्टाचार व् तकनीकी ज्ञान की खाद डालकर सुसंस्कृत सभ्य समाज की स्थापना करता ।।।।।।। 

तुलसीदास जयंति पर तुलसीदास जी को नमन

तुलसीदास जयंति पर तुलसीदास को शीश नवायें  रामचरितमानस के महात्म्य से जीवन को चरितार्थ करें  आत्म तत्व में प्रवेश कर जीवन को अमृतमय बनायें  आओ फिर से रामराज में चलें  पतित- पावन  ग्रंथों से जन- जन का उद्धार  नमन नतमस्तक नत शित बारम्बार  , गोस्वामी तुलसीदास महान  भारत की परम्परा ,भारत की विरासत   भारत  का गौरव , भारत का रक्षा कवच  भारत  के गुरु ,आचरण  की सभ्यता  नत शित बारम्बार  * रामचरितमानस* के  रचियता ...यज्ञ ,तपस्या ,भारत  का माहात्म्य  राम राज्य का चरित्र  अद्भुत वरदान   गोस्वामी तुलसीदास का सोपान  अमृत रस पान रामचरितमानस महान  भारत एक अभिमान एक संज्ञान, एक विज्ञान   भारत वासियों की साधारण  पहचान   सरल व्यवहार, मीठी वाणी ,उच्च आदर्श  भीतर  ज्ञान  का अद्भुत ज्ञान   भारत वासियों की अद्भुत अतुलनीय अद्वितीय पहचान ...

आओ सांझा चूल्हा जलाएं हम

आओ मिलजुल कर सेकें रोटियां कुछ बातों के किस्से मसाले दार  चटपटा अचार  चटनी भी पीस लेंगे  सारी फिक्र मिलजुल कर बांट लेंगे.... परन्तु सब अपनी ही रोटियां सेंक रहे हैं  पहली भूख तो सबकी दाल रोटी है  ना जाने और क्या- क्या पका रहा है मानव  चूल्हे पर कम ,मन में ज्यादा खिचङी पक रही है  खुद ही उलझा हुआ ,कैसे सुलझायेगा  किसी की फिक्र.. अपनी फिक्रों में उलझा मनुष्य  सबको अपनी ही फिक्र है  मालूम नहीं फिक्र में करता  अपना ही जीना दुरभर है  बस आगे की ओर भागता मनुष्य  जिस जीवन में जिसकी तलाश  उस उम्र  को ही दाव पर लगाता  आगे की ओर जाने की होङ में स्वयं  को पीछे धकेलता ....मानव  आओ जलाएं साझा चूल्हा  मिलजुल कर  एक कुटुम्ब बनाये हम ....

आया सावन झूम के

आया सावन झूम के  बन मयूर मन नाचे घूम- घूम के  रिम झिम वर्षा की बूंदें बन मोती  अम्बर से प्रकृति का रूप निहारें  आया सावन झूम के सखियां सजायी हाथों में मेंहदी  आकृति बनायी मनमोहिनी  रुप माधुरी चित -चोर  रुप चढा ऐसा मेंहदी का, मानों भव्य पंख हो सुन्दर मोर  मानों चंदा पर चकोर  पुष्पों पर तितलियां हो रही हों आकर्षित  हो भाव विभोर.. माथे पर बिदियां मानों अम्बर पर सितारों का जलवा  चूडियों की खनक मानों वीणा के सुर पैरों की पायल मानों संगीत की धुन पर  रियाज करता हो कोई  साज प्रकृति तुम्हारा रुप भी निखरा- निखरा है आजकल   आया है सावन झूम झूम  के  वर्षा की मधुरमयी फुहार   चहूं और बहार  ही बहार   खुशियों का संसार   सदाबहार रहे प्रकृति का रूप रहे निखरा - निखरा  मन प्रफुल्लित हो हर्षित हो तिनका भी तृण का ...

पावन मंदिर

पावन मंदिर  पवित्र स्थल  मंदिर मन के अंदर  पवित्र चिंतन  वही पवित्रता मंदिर के अंदर  हम मंदिर जाते हैं बहुत  कुछ  पाने के लिए   मन का सूकून ढूढने के लिए  मैं भी मंदिर गया  श्रद्धा  से दर पर शीश झुकाया  मन को लगा सब मिल गया  मन संतुष्ट भी हुआ परन्तु... बस कमी यहीं रह गयी  परमात्मा के दर पर जाकर हम परमात्मा से बहुत कुछ सांसारिक मांग लिया अगर हम परमात्मा में अपना मन टिका  परमात्मा का साथ ही हमेशा के लिए मांग लें तो फिर  बार- बार कुछ  मागने की जरुरत  ही ना पढेगी

सावन की चहक ...

महक रहा है सारा माहौल    चमेली के इत्र की महक अपराजिता के पुष्पों का सौन्दर्य   तन - मन की भुलाकर  सुध  आया सावन  झूम  के  वृक्षों में हरियाली आयी फल - फूलों से लदे हैं वृक्ष   क्यों कर रही हो प्रकृति इतना श्रृंगार   चहूं और आ रही है बहार   वर्षा संग रिमझिम बूंदो की फुहार   पत्ता- पत्ता डाली- डाली मोती रुपी पानी की बूंदें मानों हो कोई त्यौहार .. खुशियों का संसार हर कोई कर रहा है श्रृंगार  हरी- भरी चूडियां बजती पैरों में पहने नुपुर   मानों बजाते हों की संगीत की धुन ..झूमों सखियों झूमों  आया सावन के झूम के झूम- झूम  के  सावन के गीतों का मौसम आया, गुजिया घेवर और  पकवान  भी संग लाया ,भर लो मिठास जीवन में, आया सावन  झूम  के सदाबहार रहे सावन की शान  कर लो जी भर श्रृंगार मेंहदी के रंग से रचाओ हाथों में सुन्दर   आकृति ...कलाईयों में हरी- भरी चूङियां  प्रकृति ने भी किया श्रृंगार  हरियाली की आयी बहार  आया सावन झूम के ....पेङों की डालियों पर पङ गये झूले  सखियां ऊंची- ऊची पींगें झूले मानों की छू लेंगी आसमान   आया सावन  झूम के....... महक रहा है सारा माहौल  चहक रहा है सारा माहौल....

भारतवर्ष की विजय पताका

भारत वर्ष की विजय पताका सभ्यता संस्कृति की अद्भुत गाथा  विश्व पटल पर शान से लहराती रही भारत भूमि की विजय पताका ... भारतवर्ष देश हमारा ...भा से भाता र से रमणीय त से तन्मय  हो जाता जब- जब भारत  के गुणगान  मैं गाता  देश हमारा नाम है भारत,यहां बसती है उच्च संस्कारों के  संस्कृति की विरासत ..... वेद ,उपनिषद, सांख्यशास्त्र, अर्थशास्त्र के विद्वान ज्ञाता  देश मेरे भारत  का है दिव्यता से प्राचीनतम नाता  हिन्दुस्तान देश हमारा सोने की चिङिया कहलाता  भा से भव्य,र से रमणीय त से तन्मय भारत का स्वर्णिम इतिहास बताता  सरल स्वभाव मीठी वाणी.आध्यात्मिकता के गूंजते शंखनाद यहां  अनेकता में एकता का प्रतीक  भारत  मेरा.देश यहां  विभिन्न रंगों के मोती हैं  ,फिर भी माला अपनी एक हैं। मेरे देश का अद्भुत वर्णन ,मेरी भारत माँ का मस्तक हिमालय के ताज से सुशोभित है. सरिताओं में बहता अमृत यहाँ,,जड़ी -बूटियों संजिवनियों का आलय प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार से सुशोभित मेरा भारत देश महान , अपने देश की महिमा का क्या करूं व्याख्यान जी चाहे मैं हर जन्म में बन देश का रक्षा प्रहरी शीश पर शीश झुकाऊँ देश की खातिर प्राणों की बलि चढाऊ

मित्र

 मित्र वो इत्र है , जो अपने मित्र की खूबियों को इत्र की तरह महकाता है  खुद पीछे रहकर भी, मित्र को सारे जहां का प्यार दिलाता है..  तू फिक्र का ..जिक्र ना कर ...कहकर  तेरा मित्र है ना आगे की ओर  कदम बढा सब ठीक होगा यही दिलासा दिलाता है  मित्र वही है जो हर पल पास ना होकर भी  जीवन को इत्र सा महकाता है  माना की दोस्त दो हस्ती हैं  उसमें मेरी और मुझमें उसकी रूह बसती है  तभी तो दोस्ती होती है   कुछ  कमियां तुझमें भी हैं मुझमें भी हैं  मित्र सब जानता है ..एक मित्र ही दूसरे मित्र को   कानों में आकर कहता है इशारों से भी समझाता है तू  आगे बढ मैं सब सम्भाल लूंगा .... जब कोई नहीं साथ  होता ,तब मित्र साथ होता है  ढाल बनकर सब सह जाता है ,चोटों का क्या ये ठीक हो जायेगीं मित्र तेरे हिस्स का दर्द  मैं सह लूंगा ,पता नहीं इतना फौलाद का सीना कहां से लाता है मित्र .... मित्र जीवन का इत्र होता है ,जो विश्वास का सम्बल बन हर- पल आगे की और बढने के लिए प्रेरित करता है ....और कहता है मैं हूं ना ...

बचपन की बादशाही

बचपन की बादशाही भी कमाल थी , फिक्र का नाम नहीं ,सपने आसमान की ऊचाईयां छूते थे ... बचपन में अपने भी जहाज, हवा में उङते थे , अपनी भी कश्तियां पानी में चलती थीं ... जब हम बच्चे थे ,दिल के बहुत ही सच्चे थे,  बादशाहों सा जीवन जीते थे जब हम बच्चे थे ... आसमान से अपने रिश्ते थे ,ऊंची- ऊंची उङाने , भरते थे ,डोर पतंग की थामें धीरे- धीरे ढील देते थे , सुदुर हवा में अपने भी संदेशे जाते थे ,जब हम बच्चे थे ... सीधे - सरल  और सच्चे थे जब हम बच्चे थे , बचपन की ठसक लङकपन ,मन को गुदगुदाता है , आता है याद बहुत  बचपन का सरल स्वभाव आज भी  बहुत  याद आता है ...... खेलों की भरमार  थी ,ऊंच - नीच खेलते थे, मन में ना कभी ऊंच -नीच के भाव आते थे .... सीढी - सांप का खेल बङा मजेदार  , सीढी चढ खुश हो जाते थे ,सांप के काटने पर  थोङा मायूस  होते थे ..फिर किस्मत अजमाते थे.... बचपन की मीठी यादें गुदगुदाती हैं  लूडो के पासे लाल,नीली पीली हरी गिट्टियों  की रंगत आज भी याद आती हैं .... बचपन को जी भर जीने दो बच्चों को , बचपन एक मीठी औषधी बन दिल को सहलाता  जीने का सबब बन दिल में बचपन गुदगुदाता है ....