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Showing posts from October, 2023

परिवर्तन

 परिवर्तन से काहे डरे ,आगे बढने को प्रयास । नव कदम आगे बङे ..होगा नये का आगाज ।। कुछ कर गुजरने को जो आगे बढा है ,होगा नये को जन्म । पतझङ पुराने पत्ते झङे ,होवे नव पल्लव का नव निर्माण ।। परिवर्तन जीवन का चक्र है ,प्रगति जग की यह रीत.। परिवर्तन से कर लो प्रीत..सही दिशा होवे जग जीत ।। परिवर्तन का इतना परिचय ,नयी सोच को जन्म । नयी सोच नयी आशा, नूतन ढंग लिखे परिवर्तन की परिभाषा ।।

मन के रावण को मारा क्या?

उत्सव है, पर्व ,है खुशियों की दस्तक है  विजयादशमी का विजय का पर्व  है... प्रत्येक वर्ष रावण, मेघनाद, और कुम्भकर्ण  के बुराई रूपी पुतले जलाये जाते हैं ... सोचो ...?बुराई का पुतला जलाकर, इतनी खुशी मिलती है तो फिर क्यों ना ,मनुष्य के मन के अंदर छिपे  अंहकार रूपी रावण, ईर्ष्या, द्वेष रुपी कुम्भकर्ण  दम्भ ,क्रोध लोभ रूपी कुम्भकर्ण का अंत करें ...और  मन की सच्ची खुशी पायें  द्वापर में तो एक ही रावण था वो भी महाज्ञानी  अब कलयुग में असंख्य रावण रुपी विकार पल रहे हैं  समाज में .... अंत करना है मन के विकारों रूपी रावणों का.. पुतले फूंकने हैं ... .... अब बुराई  के पुतले ,बाहर नहीं.. भीतर  फूंकने है ,मन के भीतर ,विकारों का दाह संस्कार  कर सच्ची खुशी मनानी है .... विजय प्राप्त करनी है स्वयं के मन के ऊपर  बुरे विचारों की आहुति देकर  ..आओ विजय का  बिगुल बजायें...सच्चा हर्षोल्लास आनंद पायें ....

मां जगदम्बा

मां जगदम्बा ,मां अम्बा  मां मनसा देवी ,मां शाकम्भरी  द्वार सजा ..पंडाल सजा है माता के जयकारों से भव्य महौल बना है माता रानी के नवरात्रे आये  भर-भर खुशियां माता लायी   घर- घर गूंजी मां की महिमा  नव रुपों में मां सज- धज आयी  महिमा मां की अपरम्पार  घर- द्वार सजे ,बंदनवार खुशियों का द्वार  रंगोली का रंग पक्का, मां को भाये दिल का सच्चा मां जगदम्बा ,मां सरस्वती ,मां लक्षमी ,मां काली कालरूपा  मां ही तो है सृष्टि की रचना मां में ही है सुख- समृद्धि का संचार  मां ही है रिद्धि- सिद्धि का आधार  मां को मनाओ घर सुख - समृद्धि वैभव लाओ ..

दोस्ती

पापा:-अपने बेटे से .. स्कूल से घर ले जाते वक्त.... मंयक बेटा ..उदास क्यों हो ..क्या चाहिए तुम्हें .. कोई टाय चाहिए.. चाकलेट चाहिए... मयंक:- पापा चाकलेट तो घर में बहुत सारी पङी है ...आप भूल गये ..आप कल ही तो लाये थे .... पापा :- हां याद है बेटा ,तुम चुपचाप बैठे थे ना इसलिए..पूछ  लिया ... मयंक :- पापा मैं अकेले कितनी चॉकलेट खाऊंगा...मेरा कोई दोस्त भी नहीं है ...    पापा :- गाङी चलाने में ध्यान  केंद्रित करते हुए  ... फिर बोलते हुये ..मैं हूं ना तुम्हारा दोस्त ... हां पापा वो तो आप हो .पर आपको तो आफिस भी जाना पङता है .... बेटा तुम  स्कूल की लाईन में सबसे पीछे क्यों खङे होते हो .. मंयक :- पापा सब बच्चे भाग- भागकर आगे खङे हो जाते हैं और मैं पीछे रह जाता हूं  मयंक :- कुछ सोचते हुये ..पापा आप ना.मुझे साईकिल दिला दो ... पापा:- ठीक है बेटा ... मयंक :- पर. पापा मैं साईकिल किसके साथ चलाऊगा  ...मेरा कोई दोस्त भी तो नहीं है ... पापा:- मयंक बेटा ..मैने तुम्हें कितनी बार कहा है ..अपनी जगह खुद बनानी पङती है .... मयंक:- पापा वो जो है ना सिद्धांत है ,वो मेरा दोस्त उसे क्रिकेट बहुत पंसद है ...और मुझे बिल

स्वप्न

 मन के अंदर भी बैठा होता है एक मन  एक जागृत अवस्था का मन, दूसरा स्वप्न अवस्था का मन  एक नयी ही दुनियां बसा लेता है ,ख्वाबों की दुनियां में मन  जागृत परिस्थति के आयाम पर स्वयं  ही सपने बुनता है .. निद्रा अवस्था में  मन के भीतर बैठा मन जो सुस्त अवस्था में  जागृत हो अपना ही कारवां तैयार  कर लेता है  स्वप्न बनकर घटनास्थल से कुछ भी चुन लेता है  और सपनों के रूप में साकार होता है  मन की गहराई का कोई तोङं नहीं  क्षमता अनुसार  ही जान पाता है मनुष्य  थोङा बहुत भी भीतर की यात्रा की हो तो  बहुत रहस्य खुलते हैं ..रत्नों की समझ आती है .. अद्भुत रुप से आकार लेते हैं स्वप्न  परिवेश से लेकर  अतीत की यादों से स्वयं सिद्ध  होकर आकार लेते स्वप्न... अचंभित करने वाले स्वप्न.... स्वप्न सच्चाई की गहराई से निकले तिलिस्मि  सपने  सपने अपने फिर भी अपने नहीं ..पर सपनों में जन्म लेते सपने .....

इंसानी बसतियां

आजकल मैं इंसानी बस्तियों से दूर रहता हूं  इंसान ढूढता क्या है  सामन्यता !मैने तो देखा नहीं  कभी किसी इंसान ने किसी इंसान में  अच्छाई ढूढी हो ..बहुत ही कम अच्छाई ढूढता है   एक मानव दूसरे मानव के भीतर  वरना कमियां ढूढने में इंसान माहिर है  चाहे स्वयं गलतियों का पुतला हो .... अपनी कमी तो हो जाती है किसी कारण से  आदत से मजबूरी होती, है गलती नहीं  कमियां तो दूसरे इंसानों में होती हैं  स्वयं तो हम दूध के धूले होतें हैं  इसलिए आजकल मैं इंसानी बस्तियों से दूर रहता हूं  स्वयं में मदमस्त  ..नहीं यह नदिया किसी में कमियां नहीं ढूढती बल्कि सभी कमियों रुपी कूङा- करकट को किनारे कर देती है  पर्वतों ,वृक्ष वातावरण को महकाते ,स्वच्छ रखते हैं ..  मदमस्त हवा का झोंका उङा ले जाता सभी पतझङ किनारे पर  इकट्ठा कर  देती है ... समुद्र की लहरों की मस्ती क्या कहिये ...

आओ मुस्करायें हम

आओ प्रकृति संग अपना वक्त बितायें हम  आओ पुष्पों संग - संग थोड़ा मुस्करायें हम  प्रकृति को निहारें ..प्रकृति के दिलकश सौन्दर्य में खो जाये हम  आओ थोङा मुस्करायें हम  बागों में पुष्प खिलते हैं  हमारे लिए ही तो हैॅ प्राकृतिक सौंदर्य हमारे लिए ही तो है  तो फिर क्यों ना इससे प्यार करें हम  प्रकृति को निहारें संरक्षण करें पुष्पों के बगीचे में महकते पुष्पों की सुगंध में गुनगुनाये  कभी ध्यान से सुने ..कल- कल बहते जल का संगीत  बैठ नदिया किनारे गीत गुनगुनाएं यदा-कदा नाचे मन मयूर हरियाली में  कभी बागों में हरी घास पर विहार करें  कभी ऊंचे पहाडों पर चले जायें नहीं पहुंच सकते तो ,मन की उङान भरें  और पहुंच जायें कहीं परियों के देश में  जहां मन्द शीतल हवा बहती हो  रंग- बिरंगी तितलियां विभोर करती हों  जहां सब रमणीय हों ....सबके ह्दय में प्रेम के समुंद्र की लहरें उछाले मारती हों ... पक्षियों की चहचहाहट मधुर संगीत के सुर  जब वसुन्धरा अपनी इतनी भव्य है तो फिर क्यों उदास रहें हम  अतृप्त रहे हम ...आओ प्रकृति संग अपना वक बिताये हम 

परवरिश बाल मन की

  राम कुमार:-अरे अरे! क्यों पीट रहे हो ...राजा बेटा को ...  शिव कुमार:-  राम कुमार यह बहुत  बिगङ गया  है ...हाथ से निकल गया है ...यह राजा बेटा ..?. जाने कौन से बुरे कर्मों का फल मिल  रहा है ... इतना बिगङ गया है राजा की पूछो मत ....दिन भर हाथ में यह मोबाइल और गेम्स ..मैं तो तंग आ गया हूं ? रामकुमार:- अरे बच्चा है .सम्भाल लेगें सब मिलकर... शिवकुमार:-  रामकुमार..तुम सही कहते थे मैं ही नालायक अपनी दौलत के नशे में चूर ..अपने बेटे की आवश्यकता से अधिक इच्छायें पूरी करता रहा ..और आज भुगत रहा हूं.......बच्चों की आवश्यकता से अधिक इच्छायें कभी पूरी नहीं करनी चाहिए..अपनी चादर से अधिक पैर बाहर नहीं निकालने देने चाहिए.... अब तुम अपने बेटे को देख लो ...कितना गुणी और समझदार है ... मैं हमेशा तुम्हारा मजाक उङाता रहा ..और तुम हमेशा सम्भलकर चलने के विश्वास में अडिग रहे ..... राम कुमार---: हां शिव कुमार. किसी भी हालत में बच्चों  की परवरिश को हल्के में मत लीजिए  ... प्रेम, दुलार, शुभ विचार, उच्च  आदर्शो  का पोषण  भी निरंतर देते रहिए  .... थोङा प्यार थोङा दुलार... सही आकार देने के लिए ढोकना भी पङता है ..  कि

खोज मन में उठते भावों की

भावनाओ का सैलाब  खुशियां भी हैं ...आनन्द मंगल भी है शहनाई भी है ,विदाई भी है  जीवन का चक्र यूं ही चलता रहता है  एक के बाद एक गद्दी सम्भाल रहा है... कोई ना कोई  ,,जीवन चक्र है चलते रहना चाहिए  चलो सब ठीक है ..आना -जाना. जाना-आना सब चलता रहता है  और युगों- युगों तक चलता रहेगा ... भावनाएं समुद्र की लहरों की तरह  उछाले मारती रहती हैं ... जाने क्यों चैन से रहने नहीं देती  पर कभी गहरायी से सोचा यह मन क्या है  ?  भावनाओं का अथाह सैलाब  कहां से आया  मन की अद्भुत  हलचल  ,विस्मित, अचंभित अथाह  गहराई भावनाओं की ....कोई शब्द नहीं निशब्द  यह भावनायें हैं क्या ?...कभी तृप्त  नहीं होतीं .... भावनाओं का गहरा सैलाब है क्या ?  और समस्त जीवन केन्द्रित भी भावों पर है ... एक टीस एक आह ! जो कभी पूर्ण नहीं होने देती जीवन को  खोज करो भावों की मन में उठते विचारों के कोलाहल की  क्यों कभी पूर्णता की स्थिति नहीं होती एक चाह पूरी हुई दूसरी तैयार  ....वो एक अथाह समुद्र की .. खोज है मुझे ...भावों के अथाह अनन्त आकाश की ... उस विशाल ज्वालामुखी के हलचल की ...भावों के जवाहरात की ..जो खट्टे भी हैं मीठे भी  सौन्दर्य से पर

राजा आलू

रसोईघर में उछला आलू  मैं तो हर दिन रहता हूं चालू  मटर आलू ,गोभी आलू  टमाटर आलू ,बैंगन आलू  पुलाव में आलू जाने किस - किस  में आलू  मैं तो रहता हूं हर दिन चालू  आलू को ना सस्ते में टालो  समभालों मुझे सम्भालो   चाहो तो मुझसे चिप्स बना लो  आलू का परांठा चटपटा दही संग खा लो  आलू को ना रसोईघर से निकालो  चाहे मुझे कितने दिन  सम्भालो  जब मर्जी  निकालो आलू का पकोङा बना लो  आलू को ना समझो चालू  आलू है रसोईघर का राजा   आलू करता है सब्जियों को साझा  आलू है सब्जियों का राजा ...

नर्म मुलायम भावनाओं के तार

नर्म मुलायम भावनाओं के तार  वाह रे खूब स्वेटर से प्यार  मां के हाथों से बुना स्वेटर  नर्म ऊन की गर्माहट समेटे  कोमल मुलायम स्वेटर भागों वाला  रिश्तों का स्वेटर बहुत ही न्यारा  नमूना डाला ऐसा दिल को भाया देखा मनमोहक चित्रों वाला स्वेटर बन गया  प्यारा  ढूढा फिर कोई सुनहरा सितारा. लगे जो प्यारा - प्यारा  नर्म  मुलायम ऊन को फंदों में समेटा  रिश्ते बन रहे हैं अद्भुत तालमेल से  हर कोई  कह रहा है यह तो है  हमारा  रिश्तों की तुरपाई में ना छूटे कोई  प्यारा  हर फंदा बहुत सम्भाल कर उठाती हूं  जोडना है हर  रिश्ते के साथ सम्बंध भागोवाला  बुनाई में सब जुङते चले जा रहे हैं.सभी प्यारे -प्यारे रिश्तो की गर्माहट को जोड़कर   रखना जो मकसद है हमारा  नर्म मुलायम भावनाओ के तार   थोङा सम्भाल कर करना बस मृदुल व्यवहार  इसमें बसता है समस्त संसार  . नर्म मुलायम भावनाओ के तार में जोङे रखना है  जीवन का आधार  खूब फूले फले दिलों में  रहे खिलता समस्त संसार  ...