शहनाई भी है ,विदाई भी है
जीवन का चक्र यूं ही चलता रहता है
एक के बाद एक गद्दी सम्भाल रहा है...
कोई ना कोई ,,जीवन चक्र है चलते रहना चाहिए
चलो सब ठीक है ..आना -जाना.जाना-आना सब चलता रहता है
और युगों- युगों तक चलता रहेगा ...
भावनाएं समुद्र की लहरों की तरह
उछाले मारती रहती हैं ... जाने क्यों चैन से रहने नहीं देती
पर कभी गहरायी से सोचा यह मन क्या है ?
भावनाओं का अथाह सैलाब कहां से आया
मन की अद्भुत हलचल ,विस्मित, अचंभित अथाह
गहराई भावनाओं की ....कोई शब्द नहीं निशब्द
यह भावनायें हैं क्या ?...कभी तृप्त नहीं होतीं ....
भावनाओं का गहरा सैलाब है क्या ?
और समस्त जीवन केन्द्रित भी भावों पर है ...
एक टीस एक आह ! जो कभी पूर्ण नहीं होने देती जीवन को
खोज करो भावों की मन में उठते विचारों के कोलाहल की
क्यों कभी पूर्णता की स्थिति नहीं होती एक चाह पूरी हुई दूसरी तैयार ....वो एक अथाह समुद्र की .. खोज है मुझे ...भावों के अथाह अनन्त आकाश की ... उस विशाल ज्वालामुखी के हलचल की ...भावों के जवाहरात की ..जो खट्टे भी हैं मीठे भी
सौन्दर्य से परिपूर्ण भी हैं बेरंग भी हैं ....
निसंदेह जीवन का चक्र आत्मा की गहराई में बैठा भाव आंनद ही है ...जो कभी खुश भी रखता है कभी.दुखी भी ...कभी उकसाता है ..कभी तङफाता है ...और कई इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं ...तो जीवनपर्यंत उनका बोझ साथ चलता है ....
कोई लाख दिल बहलाये...अधूरी इच्छाओं की आग पर जीवनपर्यंत.शीतल जल डालो.. एक नन्हीं सी चिंगारी भङका देती है भावों की आग ..... खोज जारी रहेगी आत्मा में बैठे भावनाओ के सैलाब .... मन कुछ ना कुछ करना चाहता है ,चैन से बैठता नहीं ... आखिर क्या है ? भावनाओ का सैलाब ....अंनत भव्य अथाह.... स्वयं को बांट दिया ... फिर स्वयं ही विचलित हुआ फिरता है ...बंटकर.....क्या एकीकार ही मन को विश्राम देगा .... निसंदेह सत्य.....
जी हाँ, एकत्व ही मन को विश्राम दे सकता है, 'मन पाये विश्राम जहां' पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteअनीता जी आभार
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