कौन भटकायेगा हमें हमारी राहों से हम सत्य प्रेम की करूणा की शिक्षा से शिक्षित हैं श्रीकृष्ण के वंशज अर्जुन सा लक्ष्य रखते हैं लक्ष्य हमारा सत्य धर्म है ध्येय हमारा निस्वार्थ प्रेम है दुविधाओं से बचकर निकलना हमारा नित नियम है .. लाख प्रलोभन मन को भटकाते हैं .. कल किसने देखा भरमाते हैं .. हम भी बस मन ही मन मुस्कराते हैं सत्य धर्म के रक्षक आज भी पूजे जाते हैं .. सुनकर सबकी करते मन की हैं विवेक की चाबी भी संग रखते हैं .. स्वार्थ की राहें भरमाती हैं हमें हमारे लक्ष्य से डगमगाती हैं हम भी द्रोणाचार्य के वंशज हैं अर्जुन से शिष्य हैं एकलव्य से प्रेरित हैं कर्ण से दानवीर हैं भरें हैं कूट- कूट कर हम में भी मर्यादापुरुषोत्तम, श्रीकृष्ण भगवान के चरित्र हैं .. कैसे टूट जायेगें भीतर है बहुत ठूके हैं ..तभी तो आज बाहर से निखरे हैं कौन भटकायेगा हमें हमारी राहों से सत्य प्रेम की करूणार्द्र की शिक्षा से शिक्षित हैं प्राण जाये पर ...