06, 2017 1 टिप्पणी: इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर शेयर करें Facebook पर शेयर करें Pinterest पर शेयर करें मित्र मेरी फिक्र दोस्ती की परम्परा फरिश्तों के जहां से आयी होगी बिना किसी बंधन के धरती की खूबसूरती बढ़ायी होगी तभी तो दोस्तों की महफिल में बचपने की फितरत आयी होगी मेरे आने की आहट भी वो पहचानता है वो मेरी फिक्र करता है वो अक्सर दिन रात मेरा ही जिक्र करता है मुझे बेझिझक डांटता है मुझ पर ही हुक्म चलाता है मेरी कमियां गिन गिन कर मुझे बताता है कभी कभी वो मुझे मेरा हम मीत मेरा दुश्मन सा लगता है मगर वो मुझे अपने आप से भी अजीज है वो मेरा मित्र मेरे जीवन का इत्र जिसका मैं अक्सर और वो मेरा अक्सर करता है जिक्र उसे मेरी और मुझे उसकी हरपल रहती है फिक्र...