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Showing posts from April 25, 2024

करूण संवेदना

आज फिर जागी थी संवेदना, आंखों में चमक थी, दूर हूई थी वेदना  चेहरे पर खुशी थी,जीवन में नयी आस दिखी थी आज फिर से घर के दरवाजे खुले थे  रसोई घर से पकवानों की सुगंध महक रही थी  घर के आंगन पर जो तख्त पड़ा था,  उस पर नयी चादर बिछी थी,  आज दो कुर्सियां और लगीं थीं  चिडियां चहक रही थीं.. दादी की नजरें दरवाजे पर टिकी थीं।  आंगन में कुछ पापड़ वडियां सूख रही थीं  आज दादी ने नयी धोती पहनी थी।  दादी उम्र से कम दिख रही थी  साठ पार आज पचास की लग रही थीं  सारी बिमारियां दूर हुई थी.. आज दादी की बात  पोते से हुई थीं, इंतजार की घडियां  करीब थीं आज फिर पोते के दिल में  दादी के प्रति संवेदना जगी थीं  नेत्रों से प्रेम की अश्रु धारा प्रवाहित थी,  आज फिर करूण संवेदना हर्षित थी।।  जिन्दगी फिर जी उठी थी।।