Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2024

शायद मेरा दर्पण

शायद मेरा दर्पण मैला है,यह सोच मैं उसे बार-बार साफ करता रहा, दाग दर्पण में नहीं मुझमें है,यह सोच मैं घबराया, अपना चेहरा बार-बार साफ करने लगा, दाग चेहरे पर प्रतिबिंब था मेरे विचारों का-- दाग मेरे मन में था.. मैं अचंभित था..  भावों का प्रतिबिंब...!  परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है,मेरा पथप्रदर्शक मेरा मार्गदर्शक है,  मुझे गुमराह होने से बचाता है! उसने मुझे समझाया.. मन के मैल को साफ करने का ध्यान उपाय बताया...  परन्तु मैं मनुष्य अपनी नादानियों से भटक जाता हूँ,  स्वयं को समझदार समझ ठोकरों पर ठोकरें खाता हूँ,  दुनियां की रंगीनियों में स्वयं को इस कदर रंग लेता हूं,कि अभद्र हो जाता हूँ, फिर दर्पण देख पछताता हूं,और रोता हूँ..  फिर लौटकर मसीहा के पास जाता हूँ,  और उस परमपिता परमात्मा के आगे शीश झुकाता हूं, उस पर अपनी नादानियों के इल्जाम परमपिता पिता पर लगाता हूं..  वह परमपिता परमात्मा हम सबकी गलतियां माफ करता है...  वह मसीहा हम सबकी आत्मा में बैठा परमपिता परमात्मा है।।     परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है , मुझे अच्छे बुरे का विवेक कराता है ,मेरा मार्गदर्शक है , मुझे गुमराह ह

राममय हुई धरती सारी

राममय हुई धरती सारी  हर्षित हैं खग, मृग, नर- नारी  महा उत्सव की करो तैयारी  आरती थाल करो तैयार  श्री राम आयेगें हमारे द्वार  मिष्ठानों के भोग बनाओ  दीप जलाओ घर - द्वार  जगमग- जगमग हो संसार  राम आये हैं अयोध्या धाम  शंखनाद से करो आगाज  स्वागत का करो ऐलान   युगों - युगों के बाद हैं लौटे राम अयोध्या धाम हैं आयें राममय हुआ समस्त संसार.... रामराज की हो जय-जयकार सतयुग सम होगा समस्त संसार  रामराज की जय - जयकार 

राम नाम अमृत के जैसा

राम नाम मीठा रस ऐसा,  मन बोला अमृत के जैसा  जिह्वा में मीठा रस  घोला  राम नाम ले मनवा बोला  राम सियाराम, सियाराम  जय- जय राम...  राम नाम ह्रदय से बोला  वाणी पवित्र मनवा डोला  दिव्य उजाले हुये जगत में  राम नाम जब जब मुख से बोला  राम नाम सत्य आधार  राम नाम दिव्य प्रकाश  मन मंदिर हर्षित हो बोला  आओ सुंदर बंदनवार सजायें  कोमल पुष्प लडी सजायें  रंगोली सुन्दर बनायें  चित्रकला भी खूब बनायें  मिष्ठानों के थाल सजायें  दीपोत्सव की मंगल बेला  सब रल - मिल मंगल गीत सुनायें राम नाम ले हर जन बोला राम सियाराम सियाराम जय-जय राम - 2 

लोहड़ी एवं मकर संक्रांति

*लोहड़ी आयी है ध्योडी  अग्नि की लगाई फेरी  मूँगफली, गजक, रेवड़ी  अग्नि में डाली थोड़ी -थोड़ी  प्रसाद से भरकर झोली  मुंह में मिठास घोली  खुशियों से भरपूर रहे सबकी झोली ** भारत त्यौहारों का देश है विज्ञान और त्यौहारों का गहरा संबंध है प्रकृति, परिवर्तन नयी फसल की खुशियां  हर ऋतु परिवर्तन में भारत में कोई ना त्यौहार आता है  यह त्यौहार मात्र परम्परा नहीं..  इनके पीछे गहरे विज्ञानिक तथ्य भी निहित हैं जो त्यौहारों के कारण मनाये जाते है  सर्दी का मौसम. अग्नि देव का पूजन जो  हमें सर्द मौसम की गलन से मिटाती हैं  लोहड़ी, एवं मकर संक्रांति.. सूर्य का मकर राशि मे प्रवेश  तन और मन की स्वस्थता अग्नि एवं खिचड़ी संक्रांति अद्भुत  आओ अलाव जलायें जाड़े की गलन मिटायें  पूज्य अग्नि देव को मिष्ठान गुड़ का भोग लगायें  मन हर्षित,तन स्वस्थ हो यही सुख मनायें  सब मिल गपशप की कडियों में  करारी मूँगफली, गजक, रेवड़ी अलाव का स्वाद बढायें  उदर क्षुधा को खिचड़ी का भोग लगायें 

चलना बेहतर है

रुके रहने से बेहतर है चलना   मैं पैदल चला हूं  चल रहा हूँ खुश हूं  नहीं दौड़ना मुझको पैदल ही चलना मंजूर है मुझको  पग- पग रास्ते नापना अच्छा लगता है  जल्दी किस बात की.  थोड़ा रुककर सफर का आनन्द लेना भाता है मुझको  भागना क्यों? आगे बढने की इतनी जल्दी नहीं वक्त तो बढ ही रहा है. उसे कौन रोक पाया है हम तो रुक सकते हैं ना.. माना की सांसो की गिनती चल रही है जो पल मिले हैं उन्हें तो आनन्द से जी लें  कहीं आवश्यकता से अधिक रफ्तार से चलने में  जो पल वर्तमान मे मिला है वो भी ना गवां बैठे  आगे क्या होगा ज्ञात नहीं, आगे बेहतर होगा उत्तम है  परन्तु वर्तमान में जो है वो सर्वोत्तम है  फिर क्यों ना पैदल चल लूं और पल- पल का आन्नद लूं  पैदल चल रहा हूं, आंखो में पट्टी बांधकर नहीं भागना मुझे  पैदल हूं, चल रहा हूं, रुका नहीं हूं खुश हूं..  की तरल हूँ पाषाण नहीं... 

हिन्दी मेरी मात्र भाषा

  हिंदी हिंदुस्तान का गौरव  "हिन्दुस्तान" का गौरव ,हिंदी मेरी मातृ भाषा, हिंदुस्तान की पहचान हिंदुस्तान का गौरव "हिंदी" मेरी मातृ भाषा का इतिहास सनातन ,श्रेष्ठ,एवम् सर्वोत्तम है । भाषा विहीन मनुष्य पशु सामान है ,भाषा ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को शब्दों और वाक्यों के माध्यम से एक दूसरे से अपनी बात कह सकते हैं और भव प्रकट कर सकते हैं । हिंदी मात्र भाषा ही नहीं, हिंदी संस्कृति है,इतिहास है,हिंदी इतिहास की वह स्वर्णिम भाषा है जिसमें अनेक महान वेद ग्रंथो के ज्ञान का भण्डार संग्रहित है ।  अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को अपनाना स्वयं का एवम अपने माता - पिता  के अपमान जैसा हैं । मातृ भाषा से मातृत्व के भाव झलकते है । हिन्दी मेरी मातृ भाषा मां तुल्य पूजनीय है । जिस भाषा को बोलकर सर्वप्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया उस उस मातृ भाषा को मेरा शत-शत नमन । जिस प्रकार हमें जन्म देने वाली माता पूजनीय होती है उसी तरह अपनी मातृ भूमि अपनी मातृ भाषा भी पूजनीय होनी चाहिए । मातृ भाषा का सम्मान ,यानि मां का सम्मान मातृ भूमि का सम्मान ।  मां तो मां होती ,और म

अमृतकाल का आगाज

अमृतकाल का आगाज  ह्रदय प्रफुल्लित मन हर्षित  राम राज्य का शंखनाद श्री राम अयोध्या वास  सतयुग का आगाज  श्री राम अयोध्या वास युग परिवर्तन की सौगात  श्री राम अयोध्या वास  जपते हैं जिनको आठों पहर  वो ही तो श्रीराम हैं आये  दिव्य शक्तियों का आगाज  श्री राम अयोध्या वास  सत्य,सनातन रख विश्वास  शाश्वत अनन्त अमर इतिहास  सत्य धर्म की अनहद आवाज  सत्य विजयी धर्म पताका  अयोध्या रामराज सुख - समृद्धि  संतुष्टता का अमृत काल  सत्य सनातन शाश्वत अमर इतिहास  भविष्य. वर्तमान बस यही रख विश्वास।। 

अक्सर दुआओं में कहता है यह मन

 सर्वप्रथम परमपिता परमात्मा दिव्य  शक्ति को मेरा शत- शत-शत नमन  अक्सर दुआओं में कहता है यह मन  थोङा आप मुस्कराओ थोङा हम मुस्कराये   एक दूजे शुभचिंतक बन जाये  ऊपर वाले ने भेजा है देकर जीवन   फिर क्यों ना पुष्पों सा जीवन बिताएं हम  फलदार वृक्ष बन जायें हम नदियों का जल बन जायें हम ..  आंगन की शोभा बन बागों की रौनक बढायें हम  हवाओं में घुल- मिल सुगन्धित संसार कर जायें हम अक्सर दुआओं में मागता है यह मन  खुशियों से मालामाल रहे सबका जीवन   आप भी मुस्कराये हम भी मुस्करायें  बागों में फिर  से बहार  आये  जीने की अदा सबको सिखाये  बगीचों की शोभा बन हर एक के चेहरे  पर रौनक ले आये हम..परमपिता की दिव्य दृष्टि का प्रसाद निरंतर पाये हम   आसमान से आता है,कोई  फरिश्ता   दुआओं से भर जाता है मेरा दामन   एक रुहानी एहसास अवश्य पाता हूं    उस फ़रिश्ते की महक , मेरा घर आँगन महका जाती है मेंरे चेहरे पर बिन बात के मुस्कराहट आ जाती है । मैं चल रही होती हूँ अकेली  ,परन्तु कोई मेरे साथ चल रहा होता है । मैं उसे देख नहीं पाती पर वो मेरा मार्गदर्शन कर रहा होता है , मुझे अच्छे से अच्छा कार्य करने को प्रेरित कर रहा होता

श्रीराम सतयुग वाले

 युगों - युगों के बाद हैं आये  श्री राम सतयुग वाले  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  रामायण के श्री सीता राम  आलौकिक दिव्य निराले  सत्य धर्म पर चलने वाले  सूर्यवंश की धर्म पताका ऊंची लहराने वाले  मर्यादा  से जीवन जीने का  संदेशा देते श्री राम सतयुग वाले  निश दिन जिनका नाम हैं जपते श्री राम ईष्ट हमारे...  पुष्पों की वर्षा करवाओ मंगल गीत सुनाओ  श्री राम अयोध्या धाम आयें मीठी शहनाई बजाओ  श्री राम अयोध्या धाम हैं आये  शंख ध्वनि बजवाओ  जपते हैं जिनको आठों याम  श्री राम वो ही हैं आये  स्वागत में पलके बिछाओ  मंगल धुन बजाओ  सुंदर बंदनवार सजाओ   रंगोली सतरंगी बनाओ  स्वागत में श्री राम प्रभु के अपनी पलके बिछाओ  नयनों के दर्पण मे श्रीराम छवि ही बसाओ 

श्रीराम अयोध्या धाम आये

युगो - युगों के बाद हैं आये श्रीराम अयोध्या धाम हैं आये  अयोध्या के राजा राम, रामायण के सीताराम  भक्तों के श्री भगवान  स्वागत में पलके बिछाओ, बंदनवार सजाओ  रंगोली सुन्दर बनाओ, पुष्पों की वर्षा करवाओ.  आरती का थाल सजाओ अनगिन  दीप मन मंदिर जलाओ...दिवाली हंस -हंस मनाओ...  श्रीराम नाम की माला  मानों अमृत का प्याला  राम नाम को जपते जपते  हो गया दिल मतवाला....  एक वो ही है रखवाला  श्री राम सतयुग वाला...  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  रामायण के श्री सीता राम  आलौकिक दिव्य निराले  सत्य धर्म पर चलने वाले  सूर्यवंश की धर्म पताका ऊंची लहराने वाले  मर्यादा  से जीवन जीने का  संदेशा देते श्री राम सतयुग वाले  प्राण जाये पर वचन ना जाये  अदभुद सीख सिखाते  मन, वचन, वाणी कर्म से  सत्य मार्ग ही बतलाते....  असत्य पर सत्य की जीत कराने वाले  नमन, नमन नतमस्तक हैं समस्त श्रद्धा वाले... 

शुभमंगल दिशायें

शुभ मंगल होती सभी दिशाऐं भारत भूमि की विषेशताऐं  अमिय जल निर्मल सरिताऐं  विभिन्नता में एकता की परिभाषाऐं सभ्य संस्कारों की कथाऐं संस्कृति से ओत- प्रोत वेद ऋचाएं  रक्षा को अडिग भुजाऐ फैलाऐं खड़ी हिम शिखाऐं फलों - फूलों से लदी वृक्षों की लताऐं  रक्षाप्रहरी बन अडिग खड़ी चट्टान बालाऐं भारत की क्या बात कहूँ  जो भी कहूँ मैं दिल से कहूं  भारत मेरी आत्मा  भारत मेरा प्राण  भारत मेरा अभिमान  भारत मेरा सम्मान  भारत भूमि की दिशाऐं  पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण  विभिन्नता में एकता की परिभाषाऐं  स्वछंद. निर्भीक बलवान, देश प्रेम से  ओत - प्रोत भारत भूमि की सभी दिशायें....