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Showing posts from March, 2023

उपवास की महिमा

मन को साधा हुआ उपवास  वाणी का संयम मानों बजे सुन्दर साज  ह्रदय मनन चिंतन शब्द मौन व्यक्तित्व कहे व्यवहार  उपवास  की परम्परा अति उत्तम   जप-तप नियम और  संयम  स्वच्छ तन स्वच्छ वस्त्र   सात्विक  भोजन ..सूक्ष्म आहार  फल रसायन अनुसार  व्यवहार   उपवास  दिवस  पूजा अर्चना  साधे इष्टदेव मन हर्षित दिव्य अराधना  उपवास मात्र नहीं अल्पाहार  यथा सम्भव मन भी कर निर्मल   बाहर कर छल- कपट निंदा हठ क्रोध इर्ष्या  वाणी का संयम अति उत्तम   वाणी की महिमा वीणा के तार  साजो तार मधुर  झंकार   मन रख शुभ भावना कर परोपकार... स्वच्छ तन निर्मल मन  वाणी सरल स्वभाव  उचित उपवास  का आधार  ...           

लेखक की लेखनी

  स्वर्ग  से सुंदर समाज की कल्पना  यही एक लेखक की इबादत होती है      हर तरफ खूबसूरत देखने की एक      सच्चे लेखक की आदत होती है *      अन्याय, अहिंसा, भेदभाव,      देख दुनियां का वयभिचार ,अत्याचार      एक लेखक की आत्मा जब रोती है      तब एक लेखक की लेखनी      तलवार बनकर चलती है      और समाज में पनप रही वैमनस्य की      भावना का अंत करने में अपना      महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है      विचारों की पवित्र गंगा की धारा      सर्व जन हिताय हेतु ,      सुसंस्कृत,सुशिक्षित, समाज की स्थापना      का आदर्श लिए , शब्दों के तीखे, बाणों      के जब तीर चलाती तब ,वो इतिहास रचती है ,      युगों-युगों तक आने वाले समाज का मार्गदर्शन      करती है ।      लिखने को तो लेखक की लेखनी लिखती है      एक अद्वितीय शक्ति उसको प्रेरित करती है      तभी तो ऐतिहासिक,रहस्यमयी, सच्ची घटनाओं     की तस्वीरें कविताओं ,कहानियों आदि के रूप में     युगों- युगों तक जन मानस के लिए प्रेरणास्रोत        बन जन मानस के हृदयपटल पर राज करती हैं ।

धवनि आकार भाषा आधार

*ईश्वर प्रदत्त ध्वनि आकार शब्द परणित हिंदी व्यवहार  व्यक्त विचार भावों का सार हिंदी शब्द लिया आकार * *हिंदी* हिन्दुस्तान की अमृतसर धार  वेद, ग्रन्थ, उपनिषद गीता का सार  हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा हिंदी का मीठा व्यवहार  हिंदी मात्र भाषा ही नहीं *हिंदी* हिन्दुस्तान की पहचान   हिंदी हिन्दुस्तान का गौरव युगों- युगों की शाश्वत भाषा है हिंदी,  हिंदी से ही विकसित हुई सभ्यता, संस्कृति का अतुलनीय गौरव है हिंदी  हिन्दुस्तान की आत्मा आत्मसम्मान है हिंदी  वेदों की जननी संस्कृत भाषा का सरलतम व्यवहार है *हिंदी *  सभ्यता की पहचान है हिंदी * सौभाग्यशाली हूं जो हिन्दुस्तानी होने का सम्मान मिला  हिंदी भाषा से‌ मुख का श्रृंगार हुआ .. आत्मा में मानों  अमृत रसधार मिला, हिंदी में जब- जब भावों को व्यक्त किया दिव्य ज्ञान का अद्भुत भण्डार मिला .. हिन्दुस्तान की शाश्वत सनातन परम्परा सर्वप्रथम वसुन्धरा पर सभ्यता का विस्तार हुआ .... वेदों का रहस्यमय ज्ञान.. आज के वैज्ञानिक युग की कसौटी पर लोहा मनवाता.. गीता, रामायण सिखाते जीवन जीने की कला  .  अद्भुत, अतुलनीय शाश्वत सरलतम मीठी भाषा हिंदी मेरा आत्मसम्मान मेरी भाषा

महादानी

प्रकृति महादानी फिर भी ना अभिमानी  प्रकृति पर आश्रित प्रकृति पर निर्भर  ए मनुष्य  तेरी जिन्दगानी  प्यास बुझाता दरिया का पानी  अन्न खेतों का जीवन प्राण हरियाली  कहती किसानों के पसीने की कहानी.. प्रकृति से मैंने देने का गुण सीखा, देने वाला सदा, प्रसन्न और तृप्त रहता है । जहाँ कहीं भी निस्वार्थ सेवा होती है मैंने उनके खजाने स्वयमेव भरते देखे है। वृक्षों की भाँति अपनी शरण मे आये को फल,फूल, शीतल वायु ,देते रहो... दरिया की भाँति निरन्तर आगे बढ़ना जीवन के सफ़र में संग तो कुछ जाना नहीं तो क्यों ना कुछ ऐसा कर चलें कि हमारे जाने के बाद भी हमारे कर्मों की खुशबू हवाओं में रहे ,कुछ ऎसे चिन्ह छोड़ते चलते हैं ,की दुनियां हमारे चिन्हों का अनुसरण करें । जीवन एक सराय ,हम मुसाफ़िर जीवन को भरपूर जियो पर अच्छे और बुरे  विवेक के संग ।।। आओ अपने किरदार में सुन्दर रंग भरे । स्वयं की लिये तो सभी जीते हैं , हम किसी और के जीने की वजह बन जाएं किसी के काम आ जाएं ,स्वयं के जीवन को दूसरों के लिए प्रेरणापुंज बनाएं ।

मंगल हुई सभी दिशाएं

मंगल हुई सभी दिशाएं  अष्टमी कन्या पूजन से देवी मां प्रसन्न हुई  नवमी तिथि श्रीराम जन्म से वसुन्धरा प्रपन्न हुई  हरियाली फिर समृद्ध हुई  शीत ऋतु अब बंसत हुई  शीतल समीर  मंद हुई   नर्म वायु की तासीर से फलों से मरकंद बहे  स्वर्णिम पर्वत शिखर हुए  दिनकर की मीठी तपिश से  मन की प्रसन्नता स्वच्छंद हुई  बागों में सुगन्धित पुष्प गंध बही  देव आगमन हो रहा है  वसुन्धरा भी समृद्ध हुई  चित्रकला प्रकृति की रंगों में  चरितार्थ हुई गेंदा,गुलाब, गुङहल सूरजमुखी  आदि अद्वितीय पुष्पों से वसुन्धरा का श्रृंगार हुआ  सर्वप्रथम जगतजननी के आगमन का आह्वान हुआ नयनों में शोभा भरकर ह्रदय भक्ति रस पान करो  प्रकृति दे रही भव्य संदेशा..मन में रखो शुभ भावना  सर्वहित रखो कामना ..नौ द्वारों से नौ रुपों में  नवदुर्गा वरदान है दे रही झोली भर लो  उम्मीदों की किरण यही है श्रद्धा समर्पण संकल्प सिद्ध कर लो.. सत्य  धर्म ही सर्वोपरि  त्याग,दया , क्षमा भाव ही मंगल जीवन के अधिकारी उठो जागो शुभ मंगल द्वार पर तेरे दस्तक दे रहा. होने को है नया सवेरा ... शुभ  मंगल  सवेरा ..

शुभारंभ भारतीय नवसंवत्सर 2080

शुभकामनाएं शुभमंगल हुई सभी दिशाएं  भारतीय नवसंवत्सर 2080 नव वर्ष की शुभकामनाएं मन मंदिर दीप जलाओ जगत जननी शुभागमन की करो तैयारी  दिव्य सनातन सभ्यता संस्कृति ऋषि परम्परा   वेद ,उपनिषद धार्मिक ग्रन्थों में अर्थ  निहित  शुभ मंगल बेला सुख - समृद्धि का रेला  अरुणोदय से प्रारंभ शुभारंभ   स्वर्णिम आभा.. दिव्य तेज पदार्पण  शुभागमन आदिशक्ति आशीषों का दे रही वरदान    हाथ जोङ करो नमन .. नतमस्तक नत शित बारम्बार   दिव्य अनुभूतियों भव्यता का दिव्य दर्शन  कर बंधन कर धरा धर मस्तक  स्वयं अवतरित मां जगदम्बा  संरक्षण को धरा के स्वयं मां जगदम्बा नवदुर्गा अवतरित  दिव्यता  संग दिव्य अनुभूतियों से मन हर्षित   कलश भर जल करो जगदम्बा चरण वंदन  थाल सजा दिव्य दीप कर प्रकाशित  पहना गुलाब पुष्प गल माला कर श्रृंगार माथे तिलक ज्यों चंदा नील गगन  वंदन करो मां की महिमा अपरम्पार   गुणगान मां जगदम्बा का..  देता आलौकिक सुख आभार  नव संवत्सर में मां जगदम्बा स्वयं देने आती आशीषों की  भरमार ..माता की ममता से सुखी बसे सब संसार   सुख समृद्धि की नित नयी उसइयों  की और बढता रहे समस्त संसार  नवसंवत्सर में दिलों में भरपूर रहे  निस्व

अद्भुत चित्रकार

प्रकृति का प्यार है दुलार है   सहृदय वसुंधरा का श्रृंगार है  अद्भुत कलाकार है  सज रही मनमोहीनी पुष्पों की कतार है   यह कौन चित्रकार है  सुकोमलता स्वभाव है. सुगंधित व्यवहार है  प्रकृति का श्रृंगार है   पुष्प वसुन्धरा का प्यार है  प्रकृति दुलार है पुष्पों सा हंसता- खिलता रहे  सबका जीवन संसार  .पुष्प सुगंधि सा व्यवहार..रहे.

मीठा एहसास

वो अक्सर !  मेरे घर की खुली खिङकी से  बेझिझक अंदर चला आता है  मन को सहला जाता है  एक मीठा सा एहसास   दिल को ठंडक दे जाता है  वो ठंडी हवा का झोंका  जीने की चाह बङा जाता है  मन को हल्का कर  जाता है  जीवन में उमंग जगा जाता है  मैं अक्सर खिङकी खुली ही छोङ देता हूं  क्योकि वो बेफिक्र चला आता है  मेरी प्रभात और संध्या को सुहाना करने .. मैं अक्सर अपने घर की खुली खिङकी से झांक लेता हूं बाहर... रंग- बिरंगी सुनहरी तितलियां  मन को भा जाती हैं मन पहुंच जाता है अप्सराओं के जहां में    पुष्पों की बगिया का सुहाना मंजर देख  चम्पा- चमेली, गुलाब गुङहल,  सूरज मुखी को प्रभात में जीवंत होते देख  अक्सर अचंभित हो जाता हूं  प्रकृति में प्राणों के होने को सत्य पाता हूं  गुलाबों की महक मन को भा जाती है  हरी- भरी पत्तियां आंखों को ठंडक देती हैं  मन को भी तरोताजा कर जाती हैं ... निशा में अम्बर पर टिमटिमाते सितारों को घंटो पलक झपकाए निहारता हूं  मैं अक्सर अपने घर की खुली खिङकी को  खुला छोङ देता हूं प्रकृति से प्राणों की आवाजाही के लिए  ... अपने घर में प्राणवायु के आवागमन के लिए  ...

यूं ही बेवजह मुस्कराया करो

यूं ही बेवजह  मुस्कराया करो  माहौल  को खुशनुमा बनाया करो  जिन्दगी आपकी है इसे ना बेवजह   उलझनों में उलझाया करो ... शिकवे शिकायतों में ना वक्त जाया करो... मुश्किलों का दौर आये तो थोड़ा रूक जाया करो  परिक्षाओं की घङी जान थोडी सूझ-बझ से  हल निकाल लिया करो ..  वक्त है साहब बदल ही जाता है  आंधियों का आना तो दस्तूर  है  सब्र का बांध बना नया रास्ता बना लिया करो  असम्भव  कुछ  भी नहीं ,असम्भव  को सम्भव  कर दिखाने की कला अपनाया करो  . मानव  मस्तिष्क की क्षमता पर विश्वास  बढाया करो ... मुश्किल  प्रश्नों के उत्तर  निकाल  जीत का परचम लहराया करो ..

एक रंग स्नेह का ...

एक रंग स्नेह का .. सबका रुचिकर  होठों पर लिए मुस्कान लिए नरम- नरम गुजिया चटपटी चाट  कांजी का लोटा भी भर लायी हूं मैं  इस होली सबके दिलों में प्रेम  का रंग चढाने आयी हूं मैं ...     रंगों के इस त्यौहार में  कुछ  रंग मैं भी लायी हूं.. लाल गुलाल गालों की लाली के लिए  केसरी तिलक माथे तिलक के लिए   हरा रंग चंहू  ओर हरियाली के लिए  सुख -समृद्धि के लिए  रंगों का त्यौहार है  फाल्गुनी मौसम में रंग बिरंगे पुष्पों की कतार है .. हवाओं में मीठी सी तकरार है  कभी सर्द  कभी गर्म  गुनगनाहट का मीठा एहसास है  गेंदा से सुरमयी आधार है  बोगीबेलिया से चहूं और बहार है ..

आप और हम

आपके गुण आपके अपने हैं  इन्हें कोई आपसे छीन नहीं सकता .. आप अपने जैसे रहो हम हमारे जैसे  किसी के जैसा बनने में क्यों अपनी असलियत बिगाङें.. दिखावे का जमाना है खोखलापन सबको भाता है  असलियत  का सच शांत बैठा मन ही मन विचलित  हो जाता है .  खूूबसूरती तो सबको भाती है  खूबसूरती की संभाल नजाकत  से की जाती  यह बात  बहुत  कम  लोगों को समझ  में आती है ... पहचानते हैं लोग आपको आपकी हैसियत से  हैसियत भी ऐसी .. जिसकी हो सकती है कभी भी  ऐसी की तैसी ..  वक्त  का खेल  है सारा  हैसियत का लगा दो पांच सितारा  फिर  हर कोई  होगा तुम्हारा .. आप कितने ज्ञानी हैं ..कोई  नहीं जानता  आप कितने दानी हैं ..फिर  तो हर कोई  पहचानता .

पवित्र अमृत वरदान

मन की सन्तुष्टि से बड़ा कोई  धन नहीं  मिल जाता है सब कुछ ,इसके बाद कुछ  पाना शेष नहीं रह जाता  अध्यात्म  की राह यानि स्वर्ग  की राह .... जिसे पाने के बाद  कुछ शेष नहीं रह जाता ..