पर्वतों से ही वसुंधरा का श्रृंगार पर्वत जल औषधी एवं वनस्पतियों का भण्डार पर्वत उच्चतम विशालकाय दीवार प्राकृतिक आपदाओं एवं शत्रुओं के समक्ष ढाल .. प्रकृति की दिव्य सम्पदा पर्वत पर्वतों ने आंचल में अपने निज निवास को स्थान दिया कृतार्थ हो नमन तुम करते पूजकर संरक्षण भी करते चीर दिया सीना गिरी का बेइंतहा निर्माण किया कतरा - कतरा बिखर रहे पर्वत स्वार्थ में पर्वतों का कत्ल ए आम किया अडिग धरा हलाहल करती आसन अपने से डगमगा गयी चित्कार रही ..गोद मेरी मनुष्य तुमहें समर्पित प्रसन्नचित्त पालित पोषित हुये तुम सुख समृद्धि का साम्राज्य बसाया दुलार मेरे का लाभ उठाया, लोभ का साम्राज्य बढाया गोद मेरी लहूलुहान हुई ,सहनशीलता अब नष्ट हुई ... पर्वत अब पुकार रहे दर्द से कराह रहे स्वार्थ में बढाकर बोझ पर्वतों पर कर दिये अत्याचार बेखौफ रोक मानव अब भी रोक ..विनाश को अपने ना कर अंधी दौङ . सम्भल जरा तू देख पर्वत प्रकृति का सौन्दर्य हैं पर्वत ... हिमगिरि जल का स्रोत.. जङी- बूटियां ...