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Showing posts from January 14, 2023

पर्वतों की पुकार

पर्वतों से ही वसुंधरा का श्रृंगार   पर्वत जल औषधी एवं वनस्पतियों का भण्डार  पर्वत उच्चतम विशालकाय दीवार  प्राकृतिक आपदाओं एवं शत्रुओं के समक्ष ढाल .. प्रकृति की दिव्य सम्पदा पर्वत  पर्वतों ने आंचल में अपने निज निवास को स्थान दिया  कृतार्थ  हो नमन तुम करते  पूजकर संरक्षण भी करते  चीर दिया सीना गिरी का  बेइंतहा निर्माण  किया  कतरा - कतरा बिखर रहे पर्वत  स्वार्थ में पर्वतों का कत्ल ए आम किया  अडिग धरा हलाहल करती आसन अपने से डगमगा गयी  चित्कार रही ..गोद मेरी मनुष्य  तुमहें समर्पित  प्रसन्नचित्त पालित पोषित हुये तुम  सुख समृद्धि का साम्राज्य बसाया  दुलार मेरे का लाभ उठाया, लोभ का साम्राज्य बढाया गोद मेरी लहूलुहान हुई ,सहनशीलता अब नष्ट  हुई ... पर्वत अब पुकार रहे दर्द से कराह रहे  स्वार्थ में बढाकर बोझ पर्वतों पर कर दिये अत्याचार बेखौफ   रोक मानव अब भी रोक ..विनाश को अपने ना कर अंधी दौङ . सम्भल जरा तू देख पर्वत प्रकृति का सौन्दर्य हैं पर्वत ... हिमगिरि जल का स्रोत.. जङी- बूटियां जीवन रक्षक  चल हो नतमस्तक  पर्वतों पर विराजित  दैवीय तत्व  ... रसायन इन्हीं के अचेतन में भरते प्राण हैं  पर्वत हैं