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Showing posts from September, 2022

नवदुर्गा

नव दुर्गा हूं नौ रुपों में  घर- घर पूजी जाती हूं  मां गौरी की महिमा भक्तों को बतलाती हूं  कन्या रुप में जन्म लेकर मैं ही तो सबके घर आती हूं  सौभाग्य शाली हैं वो जन होते जो मेरी महिमा गाते हैं  सृष्टि की आधार शिला हूं .. शक्ति मैं कहलाती हूं  महागौरी और महाकाली भी मुझमें ही तो समाती है  समस्त जगत की आधारभूता हूं  सरस्वती ,लक्ष्मी जन- जन की पालनकर्ता  मैं शक्ति रुपा शकिस्वरुपा  मैं ही कन्या रुपा मां गौरी कात्यायनी हूं  समस्त जगत का भार उठाती  बोझ समझ जो पीछा छुड़ाते  अपने भाग्य को स्वयं सुलाते  ऋद्धि - सिद्धि के भंडारे मुझमें ही तो बसते हैं मां की महिमा को मानकर  मां का स्वागत करते हैं  मन- मंदिर में सच्ची श्रद्धा से जो‌  मां की भक्ति करते हैं  जगत जननी की कृपा से धन्य - धन्य हो जाते हैं ।।  

खूबसूरत मन

 वक्त के रंग में रंग जाया करो   हर रंग तुम्हें .. तुम्हारी पसंद का मिले   यह तो मुमकिन नहीं .... जो रंग मिले उसे अपनी पसंद बनाया करो  क्या पता तुम उस रंग ही में बेहतरीन लगो  जो रंग तुमने पाया है  हर रंग में तुम रंग जाया करो‌... सभी रंग तो अपने हैं..  जीवन के सुन्दर सपने हैं  कोई रंग मिले भद्दा तो उससे कर किनारा  आगे बढ़ जाया करो  बेवजह ना सोचने में वक्त जाया करो  ज़िन्दगी को खूबसूरत रंगों से सजाया करो  जो रंग मिले उसमें रंग जाया करो  भीतर श्वेत निर्मल रंग को समाया करो  सभी रंग तो अपने हैं  जीने के ढंग अपने हैं‌  देख हर रंग मुस्कुराया करो  खूबसूरती मन में होती है ‌‌‌‌‌सबको यह बात बताया करो ।। 

मौसम ( बदलता वक्त)

 मौसम ने भी बदली करवट  मेघों ने आकाश को घेरा ..   * मौसम  बोला *  बिन मौसम बरसूंगा  जी भर कर बरसूंगा  तुम बदले ... वक्त बदला   दुनियां के रूप बदले   जीने के ढंग बदले   तो मैं क्यों ना बदलूंगा  तुम से ही जुड़ा हूं  करनी पर तुम्हारी ही तो टिका हूं  सब बदल रहें हैं तो मैं क्यों ना बदलूं   मैं तो मौसम हूं यूं भी बदलता हूं वक्त के दौर के साथ करवट बदलता हूं  फिर ना कहना ... बदल रहे हो  ऐ मनुष्य तुम्हारे जीने का ढंग बदला  मेरा भी समय बदला .... देर - सवेर ही सही  लौट कर आ ही जाता हूं ... मैं मौसम हूं  प्रकृति का पुजारी हूं .. वसुन्धरा पर अपने जलवे दिखाता हूं ... रहता हूं सदा समर्पित .. मेरा अस्तित्व है सृष्टि को समर्पित  सृष्टि जो बदलेगी तो बदलाव मौसम में तो अवश्य आयेगा ।।

आगे की ओर

सब कुछ लौटकर आता है  एक अंतराल के बाद  अपनी प्रतिक्रिया निभाकर  जल ... कैसे रूक जाऊं  क्यों थक जाऊं  आगे बस आगे की ओर  बढ़ना ही तो मेरा लक्ष्य है  समा लेता हूं समर्पित तत्व बहा ले जाता हूं आगे की ओर  किनारों पर पहुंचा  भीतर समस्त निर्मल  नियति ही मेरी ऐसी है भीतर की ऊर्जा प्रेरित करती है   स्वभाव से निर्मल हूं शीतल भी हूं  वातावरण को नम रखता हूं  वाष्प बनकर मेघों का रूप भी धरता हूं  आकाश की ऊंचाईयों को छूने की कोशिश करता हूं ‌ फिर एक दिन धरती पर ही बरस जाता हूं  मैं नदिया का बहता जल हूं बूंद -बूंद बनकर वर्षा ऋतु में अपने अस्तित्व जल में मिलकर जलमग्न हो बहती सरिता हो जाता हूं .... सरल समझ धोखा मत खाना  बाहर से शीतल हूं .. भीतर एक आग लिए बैठा हूं  मैं नदिया का बहता जल हूं मैं  सत्तर प्रतिशत मनुष्य प्राणों में भी होता हूं  मैं जल हूं मैं तरल हूं मैं जीवन दान हूं  मेरा संरक्षण करोगे तो जीवन का सुख पाओगे ...

हथौड़ा

 हथौड़ा भी रोता है  मार- मार के चोट वो भी  कहां चैन से सोता है  तोड़ - तोड़ के वो भी बहुत बिखरता है  नियति में उसके जब लिखा ही है चोट देना  तोड़ने में औरों को  उसकी भी तो अपनी जड़ें हिलती होंगीं    दर्द किसी और का.. लहू का मर्म उसने भी सहा होगा हथौडें से टूटे टुकड़ों को जब किसी ने जोड़ा होगा  सुन्दर कलाकृति बना द्वार बनाया होगा  तब जा के हथौड़े को चैन आया होगा   निखरने के लिए .. बिखरने के दर्द को भुलाया होगा  मरहम बन सुरक्षा द्वार का सुख पाया होगा ... ऊंचे शाश्वत देवालयों में दर्द को मरहम बनाया होगा  हथौड़ा भी कहां चैन से सोता है  मार- मार के चोट वो भी अपनी जड़ों से हिलता है ...  

हिंदी शाश्वत भाषा

  हिंदी है वीणा के तार जिस पर सुर के सजे असंख्य तार  संस्कृत से उपजी ... वेदों की भाषा हिंदी है देवों की भाषा  हिंदी ने कई युग देखे संस्कृति को परखा सभ्यताओं को संजोया  हिंदी मेरी मातृभाषा मेरी पहचान  मेरी भाषा मेरा आत्मसम्मान  मां सी ममता मिलती है  जब - जब भावों को व्यक्त किया  हिंदी अपनी मीठी भाषा  शाश्वत सनातन पवित्र भाषा  विविध परम्पराओं और संस्कृति को जिसने सांचा  संस्कृत का सरलतम व्यवहार  हिंदी ने लिया आधार  हिंदी कहे दिव्य ज्ञान की बातें  अंकित हैं हिंदी में ही वेद, ग्रन्थ उपनिषद  रामायण ,श्रीमद भागवत गीता का दिव्य पवित्रम ज्ञान  मिलता है हिनदूस्तानी होने का सम्मान  हिंदी भाषा पहचान मेरी  भावों को जिव्हा पर लाने को हिन्दी  के मुझे शब्द मिले शब्दों ने मेरे विचारों को जब गढ़ा .पंखो ने ऊंची उड़ान भरी ...  हिन्दुस्तान में जन्मी हिन्दू हिन्दुस्तानी हुई  हिंदी की जिव्हा पर चढ़ी रस धारा हिंदी मेरी दिव्य भाषा ने गद्य - पद्य में संसार को दी अमृत रसधारा  धरती पर जब तक अस्तित्व रहेगा हिंदी भाषा का सुर्य अपने ओज से धरा पर अपनी संस्कृति का प्रकाश करता रहेगा.....

गणपति बप्पा मोरया

  Ritu asooja rishikesh  11 सितंबर 2022 को 8:20 pm श्री गणेश हम सब के ईष्ट हम सब के माता- पिता ..आप सब एक बार सोचकर देखिए आपके बच्चे किसी विशेष अवसर पर आपकी प्रतिमा लाकर उस पर खूब साज- सज्जा करके  बेहतरीन पुष्प सज्जा करवाकर बहुत अच्छे से कुछ दिन आपकी मूर्ति की पूजा - अर्चना कर ..पांच दिन बाद लाखों रूपए खर्च करके सिर्फ दिखावे के नाम पर .. आपकी... मेरी...   या किसी और किसी की भी मूर्ति ... या फिर हमारे ईष्ट देवी-देवताओं की मूर्ति ही क्यों ना हो ..तो सोचिए आपको कैसा लगेगा ... माफ़ करना छोटा- मुंह बड़ी बात कह दी .. मेरे शब्दों से किसी को आहत हुआ हो तो क्षमा प्रार्थी ... लेकिन ज़रा सोचिए .. जागरूकता अतिआवश्यक है ... श्री गणपति जी सर्वप्रथम पूजनीय ईष्ट हैं .. उनकी मन से पूजा- अर्चना कीजिए .. अच्छा सोचिए अच्छा करिए ..और सबका भलाई के काम करते जाइए .. निःसंदेह श्री गणेश सदैव हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखेंगे ....    गणपति विसर्जन के समय गाते हैं –गणपति बप्पा मोरया , अगले बरस तू जल्दी आ ..मैं कहती हूँ हे देव अगले बरस आकर अपने भक्तों को समझाना भी कि उत्सव के साथ साथ सामाजिक शान्ति और नियमों

धुएं की गुलामी

मार्डन कहलाने की लत जो लगी  धिक्कार .... शर्मसार ...गुलाम होते विचार  स्वयं का स्वयं पर ही नहीं अधिकार .... स्वयं के नाश का अंधा बाजार  झूठी गुलामी की बेड़ियां   मौत के सामान का अंधा बाजार  ना कोई अपना ना पराया  धुएं में ढूंढते खुशियों का संसार  क्या बनाओगे अपनी तकदीर  जब गिरफ्त में हो धुएं की गुलामी की जंजीर  लौट आओ ... धुएं के गुबार से वरना एक दिन आयेगा  धुएं की गिरफ्त में फंसे नौजवानों  आज तुम धुएं को स्वयं में समाते हो  कल जब धुआं तुममें  अपना घर बना लेगा  फिर कुछ ना बच पायेगा  पछतावे के सिवा कुछ भी हाथ ना आयेगा  मार्डन कहलाने का सारा भूत उतर जायेगा  धुएं में सब स्वाहा हो जायेगा ...