धिक्कार .... शर्मसार ...गुलाम होते विचार
स्वयं का स्वयं पर ही नहीं अधिकार ....
स्वयं के नाश का अंधा बाजार
झूठी गुलामी की बेड़ियां
मौत के सामान का अंधा बाजार
ना कोई अपना ना पराया
धुएं में ढूंढते खुशियों का संसार
क्या बनाओगे अपनी तकदीर
जब गिरफ्त में हो धुएं की गुलामी की जंजीर
लौट आओ ... धुएं के गुबार से
वरना एक दिन आयेगा
धुएं की गिरफ्त में फंसे नौजवानों
आज तुम धुएं को स्वयं में समाते हो
कल जब धुआं तुममें अपना घर बना लेगा
फिर कुछ ना बच पायेगा
पछतावे के सिवा कुछ भी हाथ ना आयेगा
मार्डन कहलाने का सारा भूत उतर जायेगा
धुएं में सब स्वाहा हो जायेगा ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आज नशा करने फैशन में शामिल हो गया है ।।बेहतरीन लिखा ।
ReplyDeleteकलम को तलवार बनाकर नशे के दुष्परिणामों के लिए जागरुकता फैलाना अतिआवश्यक है ....
Deleteबेहद अफ़सोसजनक
ReplyDeleteकलम को तलवार बनाकर नशे के दुष्परिणामों के लिए जागरुकता फैलाना अतिआवश्यक है...
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मार्मिक रचना
ReplyDeleteकलम को तलवार बनाकर नशे के दुष्परिणामों के लिए जागरुकता फैलाना अतिआवश्यक है...
ReplyDeleteनशे के दुष्परिणामों को इंगित करती मर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteजी नमन मीना जी
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