हिय पयिस्वनी एक आग धधकती
लहरे तट आकर मचलती
जज्बात जलजला चक्रवात लाता
छिन्न - भिन्न परिवेश कर जाता
ख्याल मंथन परिक्षा दौर चलाता
चित्त विचलित दूरभाषी बनकर
पन्ने पलट तहें खोलता रह जाता
अमूर्त सब मूर्त बनकर
परिदृश्य भूतकाल दोहराता
कुछ सीख सबक दे जाता
चंचल मन चित को समझाता
चिंगारी,तिलमिलाती दिल जलाती ।
तरंगें व्याकुल कर हिय तूफान मचाती
कर्मों की खेती मनचाही फसल उग,
भद्दे रंग भर अब क्यों रोता
आभामंडल रंग अलबेले
प्राणी तू प्रिय रंग ही लेना
अपने कैनवास में चित्र बनाना।
जलन धधकती है अंगारों सी
जाने वो कौन सी चाहत है,जो अधूरी सी है।
अद्भुत आभामंडल रंग अलबेले हैं
रंग प्रेम भर मन और लगा जंदरा
शहर कैसा हर शक्स चातक सा है
ओढ़ अमीरी चोला, इसांन बहुत अक
आकांक्षा घनिष्टता की,देने को गैरियत ही क्यों है
पूर्णता को भटकता ये मानव अपूर्णता की फितरत
करता क्यूँ है।
एक कसक की कैसी ठसक है, दिल
कहानी है तुमको मैंने सुनानी
मेरी कहानींॉ तुम्हारी कहानी
उजाला है रोशनी का, दिलों की खुशी का
कहा भी ना जाये रहा भी ना जाये
मोहब्बत का दिल में दिया जगमगाये
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