ज्योति जली, प्रकाश की उपस्थिति निश्चित थी चहूं और उजाला छा गया मैं ज्योति जलती रही - - जल-जल के स्वाहा होती रही - - ज्योति के भव्य प्रकाश से सबके नेत्र चुंधयाने लगे ज्योति थी, तो प्रकाश की जगमगाहट भी थी जगमगाहट में आकर्षण भी था आकर्षण की कशिश में गुमनाम अंधेरों ने धीमे-धीमे दस्तक देनी प्रारम्भ कर दी उजाले के आकर्षण में सब इस कदर व्यस्त थे कि, मन के अंधेरों ने कब दस्तक देनी प्रारम्भ कर दी की पता ही नहीं चला - - जब तक ज्योति जलती रही, जल-जल कर स्वाहा होती रही सब व्यस्त रहे जब बाती धुआं बनकर उडने लगी सबकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया ज्योति का दर्द सरेआम हो गया सबके दिलों से आह! निकली नेत्रों से अश्रु बहने लगे काले धुएं ने हवाओं में अपना घर कर लिया था जब तक प्रकाश था, सब खुश थे प्रकाश का दर्द किसी ने ना जाना जब प्रकाश का दर्द धुआं बनकर उड़ने लगा तब सब उसे कोसने लगे - - बताओ ये भी कोई बात हुई जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे आज हमारी राख से धुआं क्या उठने लगा सब हमें कोसने...