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Showing posts from August 22, 2022

हवाओं में घुला हो जहर

 हवाओं में घुला हो ज़हर   तो मैं जी नहीं सकता  हां - हां मुझे फर्क पड़ता है  क्योंकि मैं इस समाज का हिस्सा हूं  मानवीय गुणों के कुछ संस्कार मुझमें भी जीते हैं  नहीं - नहीं मैं धृतराष्ट्र नहीं ... दुर्योधन मैं हो नहीं सकता  धिक्कारती है आत्मा मेरी मुझी को मैं स्वार्थ में अंधा हो नहीं सकता  जीता हूं परमार्थ के लिए.. मैं सिर्फ अपने ही लिए तो जी नहीं सकता सिर्फ अपने लिए तो मैं मर भी नहीं सकता  नहीं शौंक मुझे कुछ होने का  किसी के लिए कुछ होने से मैं स्वयं को रोक नहीं सकता  मेरी वजह से कोई आगे बढ़े तो मैं सौभाग्यशाली हूं  मैं खाली हाथ आया था ... भावों का पिटारा साथ लाया हूं  विचारों के हीरे - मोती हैं .. तराशता हूं अमूल्य रत्नों को और समाज में बिखेर देता हूं .. जौहरियों के भी मैं कम ही समझ आता हूं ... अक्सर राहों पर‌ भटकता पाया जाता हूं...  क्या करूं साधारण सा इंसान जो हूं ....