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Showing posts from September, 2021

पर्वत राज हिमालय

पर्वत राज हिमालय विशाल  अडिग खड़ा विहंगम  असंख्य झुंडों में ऐरावत संग सिंघम  हिमालय राज का शासन देखो  रक्षा प्रहरी सा अडिग विहंगम  भारतवर्ष की शान बढ़ाता  हिम खण्डों‌ का अद्भुत वक्षस्थल  असंख्य भुजाऐं फैला  पर्वत राज हिमालय    हिम+आलय   ओढे चांदनी की चादर   ‌‌  कांति से चमचमाता आभामंडल में साकारात्मकता फैलाता   सूर्य किरणों से सुनहरा बन  स्वर्णिम -रजत कांति से मन मोह  दिल लुभाकर हर्षित कर जाता   पर्वत राज हिमालय भारतवर्ष की शान बढ़ाता   ढाल बन दुविधाओं के प्रहार को  कठोर वक्षस्थल से टकरा-टकरा  दम तोड़ चूर -चूर कर जाता  भारत भूमि को सुख समृद्धि से  खुशहाल बना गिरीराज हिमालय  भारत का ताज बन भारतवर्ष का गौरव बढाता‌।

हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा

हिन्दूस्तान की आत्मा ,आन -बान और शान मातृभाषा "हिंदी" हिन्दूस्तान‌ के प्राण मातृभाषा "हिंदी " हिन्दूस्तान की आत्मा हिन्दू संस्कृति  संस्कृत से जन्मी मातृभाषा "हिंदी ‌‌‌‌" मातृभाषा गौरव है ,इतिहास है अपनी मातृभाषा से ही हिन्दुस्तान सम्पूर्ण है । सनातन धर्म का परिचय देती वेद, उपनिषद, पुराण रामायण आदि धर्म ग्रंथों में अपने अस्तित्व को समाती हिंदी.... देश,काल ़़और समय के अनुसार हिंदी भाषा के रुप, बोल-चाल और लिखने के ढंग में परिवर्तन होता रहा लेकिन मातृभाषा तो हिंदी ही रही क्योंकि मां तो मां ही होती है और प्राणों से भी अधिक प्रिय होती है क्योंकि ‌‌‌‌‌‌मां तो एक ही होती है ।   जो अपनी मातृभाषा यानि अपनी मां को मां कहने में छोटा महसूस करता है ,वह यह नहीं जानता की अपनी से बढ़कर अपनापन कोई और मां नहीं दे सकती ।  जिस भाषा को बोलकर मैंने सर्वप्रथम अपने भावों को प्रकट किया , जिस भाषा से मुझे मेरी पहचान मिली उस मां तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत-शत नमन 🙏🙏              जब -जब आत्मस्वाभिमान की बात आती है तब-तब  मातृभाषा "हिंदी" के‌ सम्मान की स्वयं की भाषा के गौर

रास्ते

रास्तों के बिना सफर अधूरा है रास्ते हैं तभी सफर पूरा है रास्ते कैसे भी हों चलने का हुनर तो इन्हीं रास्तों से सीखा जाता है।    घायल हुआ तो क्या हुआ ,चोटों के निशान भी बाकी हैं ‌‌  मेरे संघर्ष के साथी, रास्ते ही तो मेरे अपने साकी हैं ।। कैसे भूल जाऊं इन रास्तों को इन रास्तों ने मेरा साथ तब  निभाया है जब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था ।। चलते-चलते रास्तों में कई मुकाम ‌‌‌‌‌आये -तरह -तरह के नजारे दिखाकर इन्हीं ‌रासतों ने दिल बहलाया है। माना की टेढ़े -मेढें हैं ,पथरीले कंकड़ों से भरे हैं रास्ते  जिन पर चलकर मैंने मंजिल को पाया है । सफर के साथी हैं रास्ते जिन्होंने गिरते -समभालते मुझे बहुत आजमाया है। इन रास्तों ने मेरा पूरी शिद्दत से साथ निभाया है इन रास्तों से मैने दर्द भरा मीठा सा प्यारा रिश्ता पाया है । 

नवांकुर

सीधे हैं और सच्चे हैं  भोले हैं किन्तु बेवकूफ नहीं  कोमल हैं पर कमजोर नहीं  नये युग की नयी परिभाषा  दिल में लिए नयी आशा  बदली सी  है भाषा  बदला -बदला सा नजर आता हैै सब कुछ ,रुप बदला है, चाल बदली है  ढाल बदला है नये बीज हैं नयी पौध है  नये युग की नयी परिभाषा  नयी फसलों का इरादा  खट्टी -मीठी कोमलता संग  मजबूत कठोर प्रतिज्ञा  साधना से साध्य की परिभाषा  लिखने को आतुर नये युग की नयी परिभाषा ।।

धारा प्रवाह

नदिया का किनारा  मन की शांति को सहारा    ए नदिया ले चल मुझे भी अपने बहाव संग  कहीं दूर मैं रह जाऊं इधर  मेरा मन चंचल निकल जाये कहीं दूर  मैं होकर भी ना रहूं, फिर भी रहूं यहीं पर  मुझे भी बना दे धारा बस तेरा हो इशारा  नित नूतन नयी नवेली बुझो कोई पहेली   बहते जल की तरह बढ़ते बस बढ़ते जाऊं निर्मल, निरंतर अग्रसर फिर भी एक ठहराव  तरलता और निर्मलता का भाव  हरी-भरी वसुन्धरा पर्वतों की कंदरा रुक ए मन रुक जरा मेघों का झुंड घिरा  मानों उतर रही हो कोई अप्सरा  धीमें से सुनहरी रंग-बिरंगी तितलियों का  झुंड कोमल पुष्पों से ले रहा हो पराग का  रस अमृत रस भरा ... फसलों की बालियां वृक्षों की कतार  जल है तो जीवन हैं,वृक्षों में प्राण भरे जल अमृत, जल पूजनीय है जल अमृत भण्डार  भरा जल का सदुपयोग करो जल ना होने से सूखे  में तड़फ कर मर जाओगे  जल की अधिकता प्रलयकारी सब जलमग्न कर जायेगी  जल ही जीवन ‌‌‌‌‌, जल से तरलता , जीवन में निर्मलता  पवित्र , पूजनीय जल देव अवतार जल से समृद्ध समस्त संसार ‌बड़ना और आगे की ओर बढ़ना लक्ष्य  पर्वतों को चीर कर अपनी राह बनाना  पाषाणों से टकराना फिर भी आगे बढ़ते जाना  जल से चलता सुं

दस्तक एक आहट

एक दस्तक ,एक आहट मन की आवाज़  जिसमें छिपे होते हैं गहरे राज  इशारों की बात भी सुनना सीखो मेरे  अपनों उसमें छिपे होते हैं गहरे राज ‌ इशारा मन का आत्मा को  एक अनसुनी आवाज जो दिल को  हरपल दस्तक देती है इशारों में समझाती है  पर हम ही सुन कर अनसुना कर देते हैं  दिल की बात सुने या फिर दुनियां को देखें  कैसे ,कैसे अनदेखा कर दूं दुनियां को  जो हर पल मुझे ताकती है  गिरता हूं ठोकरें खाकर तो हंसी उड़ाती है  ऊपर उठता हूं तो भी बातें बनाती है  फिर भी मैं दुनियांदारी में उलझ जाता हूं  जिसे मेरे होने या होने से कोई फर्क नहीं पड़ता  जिसके लिए मैं हरपल एक किस्सा हूं  इशारा जो आत्मा का मन को होता  एक पहली अनकही आवाज जो  बस सवयं को ही समझ आती है  उस आवाज का इशारा हमेशा सही होता  जिसमें अच्छे -बुरे सही और ग़लत का विवेक भी होता है  समझना आवश्यक है इशारे का इशारा किधर होता  इशारे में भी गहरा राज छिपा होता है ।।

शिक्षक एक वरदान

शिक्षक समाज का वरदान ज्ञान का अक्षयपात्र  शिक्षक सभ्य सुसंस्कृत समाज निर्माता शिक्षा को ना व्यापार बनाओ संस्कारों की पहचान  शिक्षा सक्षमता का आधार  शिक्षा से पहचान बनाओ जग में ऊंचा नाम बनाओ  शिक्षक का करो सम्मान शिक्षक शिष्य का भगवान ।     संग अपने ज्ञान का दीपक हर पल रखता। शिक्षाओं से भटके हुओं का मार्गदर्शन करता।। शिक्षक एक वरदान देकर विद्यार्थियों को ज्ञान । विषय विशेष का दीप जलाता रहस्यों को सुलझाता ।। विषय विशेष का अद्भुत ज्ञान  अभ्यास  कसौटी परखता शिक्षक रचता नूतन आयाम ।। शिक्षक अमृत कलश अक्षय सम्पदा  जिसने जितना खोजा, रहस्य ज्ञान वो पाया।।  नींव सभ्यता की शिक्षक, पथ-प्रदर्शक      उजियारा वर्तमान समाज का दर्पण भविष्य का  शिक्षक पद सर्वोच्च, सर्वोपरि शिक्षक सदैव पूजनीय  शिक्षक सभ्य ,सुसंस्कृत समाज निर्माता शिक्षक स्थान सर्वोच्च,एवं सर्वोत्तम शिक्षक ज्ञान का दीपक लेकर चलता   मन में छिपे अंधकार को दूर भगाता भटके जो कोई शुभ संस्कारों के बीज डालकर अच्छे -बुरे की पहचान कराता  शिक्षक तराशता ज्ञान की कसौटी पर तब निखर कर सभ्यता की अनूठी मिसालें तैयार होती अंतरिक्ष में उड़ाने भरती अविष्कार

जीत का बिगुल

सदा-सर्वदा सृष्टि पर शाश्वत सत्य से जीवन चलता  परस्पर प्रेम के बीज डालकर अपनत्व की जो फसल उगाता धरा पर स्वर्ग बन जाता    मानव प्रकृति, उदार स्वभाव   दानव प्रवृत्ति ,राक्षस वृत्ति,पशु स्वभाव  पशु स्वतंत्रता, ‌‌‌‌‌हावी पशुता,मचाती उपद्रव  जंगल राज, पशुता मचाती हाहाकार,मानव संहार  सृष्टि प्रकृति का ताल-मेल, दैविय गुणों से रचता-बसता संसार , प्रकृति शाश्वत सत्य का आधार  जब -जब बढा क्रोध संग अहंकार  प्रकृति ने लिया प्रतिकार  देव अवतार मानव, वसुन्धरा पर करने को उपकार  धनुष बाण करके धारण, सुदर्शन चक्र धारी आते दिव्यता के करवाते दर्शन....  मानव जीत का बिगुल बजा  पशुता को सही राह दिखा  आत्मसम्मान जगा धरती पर हो  मनुष्य सम देवों का राज ऊंची कर आवाज  दैविय गुणों से ही है धरा पर फैलेगा सुख साम्राज्य ।।