मैं हूँ प्रभु का फरिशता, मुझसे है,हर प्राणी का दिली रिश्ता, मुझमें समता,मुझमें ममता, मैं नारी ह्रदय से कोमल हूँ। फूलो सा जीवन है मेरा, काँटों के बीच भी खिलखीलाती हूँ। मुझसे ही खिलता हर बाग का फूल, कभी-कभी चुभ जाते है मुझे शूल। मैं नारी हूँ, मुझसे ही असतित्व, मुझे से ही व्यक्तित्व, फिर भी पूछे मुझसे पहचान मेरी, मुझसे ही है ए जगत शान तेरी, फिर भी तेरे ही हाथों बिकी है, आन मेरी। हर पल अग्नि-परिक्षाए देती हूँ, मैं ममता की देवी हूँ, हर-पल स्नेह लुटाती हूँ, मैं नारी हूँ, नहीं बेचारी हूँ, करती जगत कि रखवाली हूँ।