प्रेम आत्म रत्न धन, प्रसन्न ह्रदय आनन्दित मन प्रेम की ना कोई जाति, प्रेम सत्य धर्म प्रजाति।। क्यों कहे प्रेम व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम आत्म रत्न, प्रेम दिव्य मन भाव भाव समुद्र प्रेम रत्न, सालाखों में नजरबंद कुचल कर कोमल प्रेम पंख, नीम का लेपन चढा. मूर्च्छित मन कराह रहा, नेत्र अश्रु बहा रहा भीतर प्रेम उद्गार है... बाह्य भय कारावास तोड़ के सब बेड़ियाँ, प्रेम का इकरार हो क्यों कहे सब व्यर्थ है, प्रेम ही जीवन अर्थ है प्रेम से संसार है, प्रेम ही व्यवहार है प्रेम ही सद्भावना, प्रेम ही अराधना