दुनियां आकर्षणों से भरी पङी है मन को रिझाती है आंखों को आनंद देती है खुश रहने की खातिर मनुष्य दूर बहुत दूर तक निकल आता है पर क्या उसे सच्ची खुशी मिलती है .. शायद ..भीतर एक खालीपन एक अधूरापन रह जाता है .. आगे बढता जाता है.बेहतर कुछ पाने के लिए पीछे ना जाने क्या- क्या कीमती चीजें छोङ देता है वैभव तो गहराई में स्थित बाट देखता रहता है .. बाहर नहीं भीतर है वैभव स्वयं के ही भीतर स्वयं मालिक होकर भी अंजान दस्तक देता है वो कई बार बाहर नहीं भीतर है वैभव आंखे खुलते ही भटक जाता है मन अटक जाता है मन संसार के आकर्षणों में आंखे मूंद कभी- कभी कर लिया करो भीतर की यात्रा भी संसार के समस्त वैभव, सुख- समृद्धि ,संतुष्टता के खजाने भीतर ही मिलेंगे ... माना की आकर्षक दुनियां है हमारे लिए .. एक पर्यटक की भांति आनंद लेने के लिए . बेहतरीन यादों को समेटे हुए अपने घर लौट जाने के लिए ...