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Showing posts from February, 2022

शिवरात्रि- यानि शिव की रात्रि - आत्मा की जागृति की रात्रि -

 ऊं नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय  आज शिवरात्रि का पावन पर्व है । शिवरात्रि- यानि शिव की रात्रि -  आत्मा की जागृति की रात्रि -  ऊं नमः शिवाय :- आत्मा से परमात्मा के मिलन की रात्रि , जिसमें स्वयं के अस्तित्व को स्वाहा कर शिव परमपिता परमात्मा से एकीकार हो जाना होता है । यानि- सच्ची भक्ति तभी सार्थक है जब आप स्वयं को भूल कर स्वयं के तन की भस्म बना तन शव बना देते हैं ‌‌‌‌ अपनी कर्मेंद्रियों को भूल जाते हैं यह सब क्रियाएं मानसिक रूप से करनी है । यह सब क्रियाएं मानसिक रूप से करनी है। सर्वप्रथम मन मन्दिर में शिव को धारण करें ,घर में ही देवालय बनायें,जब मन मन्दिर में शिव स्थापित हो जायेंगे ,तो तन तो स्वत: ही मन्दिर पहुंच जायेगा । परन्तु हम सब पहले तन को देवालय ले  जाते हैं , मन्दिर जाते वक्त मार्ग में इतने मोड़ और रुकावटें आती हैं कि मन का क्या ... मन तो भटक ही जाता है अटक जाता है मार्ग के उतार चढ़ावों हमारे समाज में सब भेड़ चाल लोग हैं ‌,एक ने किया दूसरे ने किया फिर तो पीढ़ी दर पीढ़ी सब कर रहे हैं ‌,एक ने किया था उसके साथ अच्छा हुआ,तो किसी ने नहीं किया तो उसके साथ बुरा हो गया कुछ भी हुआ क्यों हुआ कार

जीत का जश्न मना

जीत का बिगुल बजा  हार का श्रृंगार कर हार एक त्यौहार  जीत का आगाज है  जश्न का ऐलान है  हौसलों की उड़ान है  दीप जो भीतर छिपा  संकल्प से उसको जला धैर्य रख दृढ़ विश्वास रख उम्मीद का दीपक जला । आंधियों का शोर है  तूफान की उठापटक  मत अटक मत भटक  वक्त यह भी टल जायेगा  परिक्षाओं का दौर‌  भागने की होड़ है‌  तू भाग मत सम्भल कर चल  मंजिल थोड़ी दूर है  हर रात की होती  अवश्य भोर है‌    सफर पर है तू सफर ‌‌‌‌कर सफर का मजा ले मगर  धूप हो या सहर  सम्भल तू पर चल  हार की ना बात कर  चल उठ हो खड़ा  हार का श्रृंगार कर हार एक त्यौहार  जीत का उद्घोष कर  हार है सबक तेरा  हार से तू सीख ले  जीत से तू प्रीत कर 
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भारत को ही पाता हूं

भारत माता के सम्मान में मैं  यशगान सदा गुनगुनाता हूं  उत्तर से दक्षिण तक का भारत  हर दिन एक त्यौहार है भारत  रंगों में सतरंगी भारत हंसता - खेलता भारत माता के लाल मिले उच्च आदर्शों की दिव्य धरा पर भारत वर्ष का  स्वाभिमान मिला  कश्मीरी केसर मन भाया  उत्तराखंड की दिव्य धरा पर  बहती अमृत गंगा जल धारा हिम का आंचल प्राकृतिक सौंदर्य पंजाब के खेतों में  उगता सोना  राजस्थान राजवाड़ों की धरती  गुजरात बढ़ाता व्यापार सदा  गंगा सागर सरिताओं का संगम  मन प्रफुल्लित दृश्य विहंगम  केरल में सुख समृद्धि ‌फलती  शान में भारत माता की में मैं नित-नित शीश झुकाता हूं   विरासत में है हमको मिली  देवों की यह तपस्थली  ऋषि-मुनियों की दिव्य धरा पर नैतिक शिक्षाओं की धरोहर ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ पाकर धन्य हो जाता हूं  उच्च विचारों की अनमोल सम्पदा  भारत की विरासत की धरोहर  उत्तर में हिमालय अमरनाथ शिवालय  दक्षिण में गंगा महासगर  शक्ति की भक्ति है करता उत्तर से दक्षिण तक लेकर भारत माता को है हमने जिया  सब रत्नों को जब एकत्र किया,  परस्पर प्रेम के सूत्र में सब बंधे हुए थे दिव्य आभूषण बना रहे भारत वर्ष का मान बढा रह

सफर

आसमां में कहीं दूर घराना मेरा  सफर तो सफ़र सच है ही मगर  लौट के एक दिन जाना होगा  ज़िन्दगी का सफ़र हसीन था मगर  जाने कौन सा मोड़ आखिरी हो मेरा  यह सोच कर मैं सहमा करा ! आसमां में दूर घर था मेरा  धरा पर सफर को फेरा किया  प्रकृति सौंदर्य में मैं जब भी रमा गया  मन के भावो में भूला घर भी मेरा  धरा पर नया बसेरा किया  जाने कौन सा मोड़ आखिरी हो मेरा  यह सोच कर हर पल सहमा करा इस धरा से मोहब्बत मैं करने लगा धरा पर स्वर्ग बसाने लगा  कशमकश में भी चलता रहा  दिव्यता से शक्ति पाने लगा  सफर पर चला और चलता रहा  रिश्ते- नातों लम्बी कतारें बनी  मित्रों से दिल की कड़ी भी जुड़ी  सफ़र ज़िन्दगी का हसीन इस कदर हुआ अब दिल‌ जो जुड़ा, मोड़ आखिरी मिला  मैं जीता रहा ज्यों सदा रहूंगा इधर  अपनों की फिक्र करने लगा    मैंने अपनों को अपने तजुर्बे दिये  आसमां से जुड़े तारों के इशारे दिये  आसमां से थे हमारे घराने जुड़े  सफर आखिरी मोड़ पर था‌  परमात्मा से जुड़े रहने के इशारे मिले  ।   

सुरों की देवी लता जी को सहृदय श्रद्धांजलि

सादगी का श्रृंगार हो  अनुशासन का आधार हो  मन में जब हो सौंदर्य भरा  रूप में जाये तेज उतर  स्वर सृजन बने कोकिला !  ्फ़रिश्तों‌ ने सुन्दर सा‌ रुप धरा  स्वयं अवतरित हुई मां शारदा   संग संगीत अमृत रस कलश भरा  छलक- छलक गीतों में अमिय भरा  गीतों की लता की बेल पर  हर गीत में अमृत भरा  धन्य हुयी भारत धरा  गीतों में बसी मां शारदा ‌! सुर मलिका स्वर अलंकार हो  तुम गीतों की बहार हो  राग मेघ मल्हार हो सातों सुरों का साथ हो ! छेड़े दिलों के तार हो स्वर कोकिला कंठ माधुरी  तुम सरस्वती तुम भगवती                                     तुम  दिव्यता का स्वरूप हो‌                             तुम ठंडी छांव की धूप हो ! तुम ओज हो परमात्मा की खोज हो  संगीत का हर साज हो‌  सदा करती रहोगी दिलों पर राज तुम तुम सादगी की प्रतिमूर्ति  अभ्यास से बनी खास हो  सदा अमर रहोगी दिलों में करोगी राज तुम  जीती रहोगी गीतों में लता जी आप शब्द निकले सब अर्थ  मानों गीतों को तुमने जिया!   सुर देवी को नमन मेरा !सुर देवी को नमन मेरा !  

बहारों तुम फिर भी आती रहना

ए बहारों तुम फिर भी आते रहना  मेरे घर आंगन को महकाते रहना  मेरे जाने के बाद मेरे ना होने पर  तुम बगिया में फूल खिलाते रहना  चम्पा ,चमेली मेरी बगिया में हर पल  तुम रौनक रखना । शाम ढले जब सूरज छिपे शीतल हवा के‌ झोंकें चले तुम अपने होने का सबूत देना  हवाओं में घुल- मिलकर आंगन में मंद सुगंध भर देना  हर्षित मन से तुम ‌‌‌आना -जाना  घर आंगन को हरा-भरा रखना  जीवन का सबब बनकर तुम प्रेरणाओं  का सबब बनना  ए बहारों तुम फिर भी आते रहना  मेरे घर आंगन को महकाते रहना  मेरे ना होने पर मेरी अनुभूति देते रहना ।

मेरे जाने के बाद

एक बहारों मेरे जाने के बाद   मेरा घर आंगन महकाते रहना  कुछ फूल गुलाब के खिलाते रहना .... दिलों में अपनत्व के बीज उगाते रहना .... जब पतझड़ का मौसम आयेगा मिट्टी में मिल जाऊंगा  अपनी शाख से जुदा हो जाऊंगा  मैं भी राख हो जाऊंगा  जब पतझड़ का मौसम आयेगा  जो मुझको ना मिली जीते जी  वो करुणा मुझ पर बहायी जायेगी ‌ काश ! जीते जी मुझे कोई समझ जाता  मेरे हिस्से की ममता मुझ पर लुटा जाता तो मैं कुछ पल और मुस्कुरा लेता  मेरे जाने के बाद मेरे किस्से गड़े जायेंगें  मुझ पर मोहब्बत लुटायी जायेगी  मैं तुम सबको बहुत याद आऊंगा  मेरे ना होने पर चर्चे बहुत मेरे सुनाते जायेंगे कहानियों में कुछ यादें सुहानी छोड़ जाऊंगा  पर बहारों तुम फिर भी आती रहना  इस धरा को प्राणवायु से भरपूर करते रहना शाखों पर नये पत्ते आते रहेगें  फल -फूलों से बाग सजते रहेंगे  बहारों मेरे घर आंगन में कुछ कलियां  गेंदें की भी खिलाते रहना  गुलाब से भी आंगन महकाना एक वृक्ष आम का अमरूद  का उगाना, फल ,फूलों से मेरा घर आंगन भरपूर रखना  मेरे घर को सुनसान ना रखना चिड़ियों की चहचहाहट  कोयल की मधुर आवाज़ भी गूंजा न बहारों मेरे जाने के बाद भी मेरा घर

अध्ययन जरूरी है

 स्व+ अध्याय स्वयं पर अध्ययन  स्वाध्याय यानि स्वयं पर अध्ययन जरुरी है  स्वयं को सही से समझ लिया तो किसी  अन्य को समझने में समय और ऊर्जा व्यर्थ करने से बच जायेंगें .....  विश्वास + एक आस स्वयं का स्वयं पर विश्वास सर्वप्रथम स्वयं पर विश्वास करना सीखिए जब आप सम्पूर्ण होंगे तो किसी अन्य पर अविश्वास का कोई तात्पर्य ही नहीं रहेगा.. .... उपयोग + यानि एक उत्तम योग शुभता से किया गया कोई भी कार्य, समय एवं परिस्थिति को बेहतर बनाना जीवन का उपयोग ..... परमार्थ + पर यानि स्व से ऊपर उठकर दूसरों ‌‌‌‌‌के हित के लिए कार्य करना साधन जुटना  अपना जीवन पर हित में लगाना । 

मां शारदे तुम ज्ञान का प्रकाश हो‌

मां शारदे तुमको नमन  शत्-शत नमन बारम्बार नमन  मां शारदे तुम धरती का आप ओज हो  प्रेम की रसधार हो दया भाव की चेतना  तुम ह्रदयों में वेदना भटके ना कोई देना सदा संवेदना मां शारदे वरदान दो‌ सद्बुद्धि संयम का भी दान दो  भले‌- बुरे में भेद कर सके विवेक दो‌  सदमार्ग पर चलते रहे  खिलता रहे बुद्धि का चमन‌  तुम बुद्धि में विकास हो  तुम ओज हो तुम ज्योत हो  तुम बुद्धि में विवेक हो‌  मां शारदे तुमको नमन बारम्बार नमन नतमस्तक हो नमन‌  मां शारदे तुम रसधार हो ह्रदयों में ज्ञान जयोत प्रवाह हो‌

मां शारदे तुमको नमन

मां शारदे तुमको नमन  शुद्ध बुद्धि का वरदान दो मां शारदे क्या करुं तुम्हें मैं अर्पण  निर्मल रहे सदा मन का दर्पण  मां शारदे सदा-सर्वदा करती रहो कृपा  करते हैं हम बस यही दुआ  निर्मल बुद्धि विवेक का का सद ज्ञान दो  विचारों में सरल विचारों का प्रवाह रहे  साकारात्मक का दिव्य प्रकाश सदा मिलता रहे  दान दो‌ दयाभाव, त्याग,समर्पण से कर्म करें ऐसा मान दो  हाथ जोड़ करूं मैं वन्दन मां शारदे तुमको नमन बारम्बार नमन‌   हे मां क्या करुं तुम्हें मैं अर्पण  नतमस्तक हो करूं स्वयं को समर्पण  मां शारदे तुम्हीं ही जीवन आधार हो  भावों का अद्भुत संचार हो,विचारों का अद्भुत संसार हो  तुम्हीं से जीवन प्रवाह है तुम्हीं से सब अविष्कार हैं  तुम्हीं से उन्नति तुम्हीं से प्रगति तुम्हीं विचारों में शक्ति  मां सरस्वती आप दिव्य हो, बुद्धि का श्रृंगार हो  विचारों का तेज हो, उत्साह का आगाज कर्मों में प्रत्यक्ष हो  तुम शाश्वत हो मां शारदे जीवन का वरदान हो  मां शारदे तुमको नमन नतमस्तक हो बारम्बार नमन ‌ ज्ञान का अमृत दिया विवेक की तुला अक्षय भंडार बुद्धि का कलश दिया  मां शारदे करना इतनी कृपा‌, सत्य मार्ग पर सदा चलें ‌‌  अभिमा

कोहरा

रात थी कोहरे भरी‌  देख कर आंखें रूकीं कुछ बात थी कोहरे में  चला मैं कोहरे में कुछ ढुढने  राहों में बादल थे भरे पड़े  यूं लगा मेरे कदम आसमान पर पड़ रहे  आसमां जमीन पर उतर आया  राहों ने ओढ़ी कोहरे की चादर ‌ गुम हुआ वादियों में कहीं  दुसरी दुनियां हो शायद कोई मानों तिलस्मी दुनिया की सैर पर   कुछ हसीन सपने सजाने  कुछ रहस्यमयी पाने‌ कोहरे की कहानी  अदृश्यता की निशानी  ज्यों अंखियों में रुका पानी  मैं भी गुम हुआ आंखों में धुआं हुआ  कोहरे के अश्रु मेरे संग आ गये मेरे वस्त्रों को सिराहाना बना गये ।।