सहयोग मीठा एहसास है ह्रदय में संवेदना परस्पर प्रेम को जीवन का गणित बना।। स्वार्थ बना सर्वोपरी, संवेदना मानों मरी कौन किसका है यहां, स्वार्थ ही सब कुछ हुआ।। मैं-मैं सब कर रहे, हम तो जाने कहाँ गया मेरा -मेरा का घमंड हुआ,समर्पण जाने कहाँ गया।। मैं-मैं की शोर मचा, बांध गठठ्रर सब खड़े मानों ले जायेगें सब साथ यह,इतरा रहे बड़े-बड़े।। स्वप्न में स्वप्न दिखे हर्षा रहे, सब स्वप्न में, नींद में सब थे दिखे, जाने क्यों लड़ रहे।। अंहकार किस बात का ,आये शहंशाह बडे-बडे। महल ऊंचे सब .. धरे यहीं, दौलत पर संग्राम हुआ मिट गये नामोनिशान यहीं।। जी गये जो जिन्दादिल थे, संवेदना थी जिनमें बची त्याग, प्रेम दया सहानुभूति की बाती जगा रोशन किया जग सभी... सहयोग की मशाल जला, जग होगा रोशन तभी।।