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Showing posts from 2024

खिल रही चेहरे की कली

 खिल रही चेहरे की कली, मन क्यों तू गा रहा राज कुछ मन में छिपा, चेहरा तेरा बतला रहा।। ख्वाब जो मन में पले, सच क्या वो रहे,  देख तेरे चेहरे की खुशी, माहौल भी इतरा रहा।।  गीत खुशी के गा रहा,कोई शायर हो गया,  दिल दिवाना हो गया, मन मस्ताना हो गया।।  हवाओं में तू उड़ रहा, बादलों सा घिर रहा,  आज फिर नयी कहानी कहने को तू बहक रहा।।  चहक रहा, बहक रहा, पांव जमीं पर ना धर रहा,  चल उड़ चले नये जहां मे,मोहब्बत का होआसमां।। चांद - तारों पर लिखेगें, मोहब्बत की नयी दास्तान,  आसमां से नूर बरसे, प्रेम हो दिल में भरा।। 

चहत सबकी मोहब्बत

चाहत सबकी मोहब्बत है, फिर भी..  ना जाने क्यों नफरत की पगडंडियाँ बनाते हैं। अपनों से ही मोहब्बत है.. जाने कहाँ से गलतफहमियां ढूढ लाते हैं। जीवन की कश्ती में,अंहकार का चापू चलाते हैं। स्वार्थ में अंधों की तरह अकेले ही महल बनाते हैं, और महल की दिवारों से अकेले ही बातें करते हैं।  फिर घबराकर जमाने में लौट आते हैं  और अकेलेपन का गान गाते हैं।  मंजिल सबकी एक है, चाहत सबकी एक है ,  चलो फिर हंस के रास्ते काटते हैं,  कुछ गीत गुनगुनाते हैं, कुछ ठहाके लगाते हैं।  जीने के खूबसूरत अंदाज बनाते हैं  जमाने को परस्पर प्रेम का पाठ पढाते हैं।  तेरे-मेरे की दूरियां मिटाते हैं  स्वार्थ को भूल जाते हैं,  परमात्मा नहीं किसी को कम-या  किसी को अधिक देता, प्रकृति से यह बात सीख जाते हैं,  नदियाँ, सागर, वृक्ष, खेत-खलिहान  सभी तो एक सामान सबकी क्षुधा मिटाते हैं  चाहत सबकी मोहब्बत है  चलो फलदार वृक्ष लगाते हैं,  प्रेम के दरिया से जीवन को रसमय बनाते हें। 

संवेदनाओं का क्रंदन

मानव मन की सुन्दर कोमल  भावनाओं का दाह संस्कार होते देख  मेरी संवेदनाऐं जागृत हो ह्रदय रुदन करने लगीं आततायी संवेदन शून्य हो,  भावन रहित हो गये थे.. क्रूरता पशुता  राक्षस वृति को अपनाकर , आंतक  का घिनौना गंदा खेल रहे थे  घायल हुये थे कुछ लोग,  कुछ इस दुनिया से चले गये थे,  एक बार फिर तहलका मचा था मर गयी थी,करूणा, दया,संवेदना  मची थी तबाही,सब कुछ अस्त -व्यस्त था सब सहमें हुये से डरे हुये थे  बच्चे घरों में कैद थे,घरों में सन्नाटा पसरा हुआ था, हर कोई भयभीत था  मनुष्य के भीतर पशुता, राक्षसवृत्ति जन्म ले  अत्याचार पर अत्याचार कर रही थी   मां की ममता कराह रही थी, दुहाई दे रही थी  उस मां की जो जगतजननी है, सबकी मां है..  कह रही थी मनुष्य जाति का मान रख..  निसर्ग से प्राप्त कोमल संवेदनाओं का  क्रन्दन मचा रहा है तबाही... अंहकार  किस बात का अंत तो सबका एक ही है। 

नयी - नवेली

 समय की रफ्तार के साथ  मैं भी बह गयी, रोकना चाहा पर जल की धारा थी आगे की  ओर बहने लगी।  बहना मेरा स्वभाव है, बहुत कुछ समाया स्वयं में  पर कुछ ना एकत्र किया  जब-जब हलचल हुई  सब किनारे पर लगाती गयी वक की रफ्तार के साथ बहती चली गयी, हर दिन नूतन नवेली पर समय की रफ्तार के साथ मैं बहती रही  रुकी नहीं, रुकती तो बासी हो जाती विकार उत्पन्न हो जाते मुझमें  मैं बदली नहीं, हर दिन नयी नवेली आगे की और बढती जल धारा की तरह... 

करूण संवेदना

आज फिर जागी थी संवेदना, आंखों में चमक थी, दूर हूई थी वेदना  चेहरे पर खुशी थी,जीवन में नयी आस दिखी थी आज फिर से घर के दरवाजे खुले थे  रसोई घर से पकवानों की सुगंध महक रही थी  घर के आंगन पर जो तख्त पड़ा था,  उस पर नयी चादर बिछी थी,  आज दो कुर्सियां और लगीं थीं  चिडियां चहक रही थीं.. दादी की नजरें दरवाजे पर टिकी थीं।  आंगन में कुछ पापड़ वडियां सूख रही थीं  आज दादी ने नयी धोती पहनी थी।  दादी उम्र से कम दिख रही थी  साठ पार आज पचास की लग रही थीं  सारी बिमारियां दूर हुई थी.. आज दादी की बात  पोते से हुई थीं, इंतजार की घडियां  करीब थीं आज फिर पोते के दिल में  दादी के प्रति संवेदना जगी थीं  नेत्रों से प्रेम की अश्रु धारा प्रवाहित थी,  आज फिर करूण संवेदना हर्षित थी।।  जिन्दगी फिर जी उठी थी।। 

संवेदना का दम घुट रहा...

 संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..  अंहकार के पैरों में गिरी  स्वार्थ ने कुचल दी..  संवेदना बिचारी सहम गयी  संवेदना घुट-घुट दम तोड़ रही..  मृग तृष्णा सी दुनियां में, अंध छलावा हो रहा हासिल कुछ नहीं होगा, भाग रहा है हर कोई। नाटक में नाटक चल रहा,जाने क्यों मानव भटक रहा। ऊंचाई पर पहुंचने की खातिर,मानवता है गिर रही, संवेदन शून्य हुआ मानव, मैं का दम्भ भर रहा गिनता कागज की कश्तियां, पानी में सब बह रहा। समाजिक मेलजोल है ज्यादा,बुजुर्ग माता-पिता से कटा.. घर की दिवारें रो रहीं, बाहरी रुतबा खूब बड़ा  कर्मों में कर्मठता जागी. भीतर से सब टूट रहा  संवेदना शून्य हुआ मानव, राक्षस वृत्ति जाग रही।  एक दिन जब संवेदना जागेगी..  सब होगें मौन.. आंखों से अश्रु धारा बह रही होगी  ह्रदय होगा द्रवित.. जीवन का यह गणित।।  जीवन का यह गणित।। 

संवेदना की बाती

  सहयोग मीठा एहसास है ह्रदय में संवेदना  परस्पर प्रेम को जीवन का गणित बना।।  स्वार्थ बना सर्वोपरी, संवेदना मानों मरी कौन किसका है यहां, स्वार्थ ही सब कुछ हुआ।। मैं-मैं सब कर रहे, हम तो जाने कहाँ गया मेरा -मेरा का घमंड हुआ,समर्पण जाने कहाँ गया।। मैं-मैं की शोर मचा, बांध गठठ्रर सब खड़े मानों ले जायेगें सब साथ यह,इतरा रहे बड़े-बड़े।।    स्वप्न में स्वप्न दिखे हर्षा रहे, सब स्वप्न में,  नींद में सब थे दिखे, जाने क्यों लड़ रहे।।     अंहकार किस बात का ,आये शहंशाह बडे-बडे। महल ऊंचे सब .. धरे यहीं, दौलत पर संग्राम हुआ मिट गये नामोनिशान यहीं।।    जी गये जो जिन्दादिल थे, संवेदना थी जिनमें बची  त्याग, प्रेम दया सहानुभूति की बाती जगा रोशन किया जग सभी...  सहयोग की मशाल जला, जग होगा रोशन तभी।। 

संवेदना की आस

संवेदना की आस पर, जी रहे हैं सब यहां  एक दूजे के प्रेम से जीवन का यथार्थ यहां  वसुन्धरा का उपकार बढा, भार जो सबका सहा  मुझमें हो जो संवेदना,धरती मां को संरक्षण करूं।।  वृक्षों ने हमें फल दिये,शीतल छाया की शरण मिली  प्राण वायु जो दे रहे,वृक्षों के उपकार बढे.. संवेदना  मुझ में जगा..  क्यों प्राण उनके संकट में पड़े, कंक्रीट के महल  खड़े किये.. कहां गयी संवेदना प्राण अपने भी  दाव पर लगे..  जल ही जीवन तो कहा.. पर उस जल पर ही संकट पड़ा..  स्वार्थ की धुंध में सब कुछ थुमिल हुआ..  आंधियों की उठापटक, सब कुछ तितर-बितर हुआ  अपना ही सब समेट रहे.. रो रहा कोई दूजी और खड़ा.. पेट किन्हीं के फट रहे, कोई भूख से तड़फ रहा।  कहाँ गयी संवेदना कोई देखो तो जरा..  ऊंच-नीच के भेद में अंहकार का तांडव बड़ा  कराह रही मानवता.. संवेदना तू जाग जरा..  आस में तेरी यहाँ, मानवता को जगा, त्याग, दया प्रेम भाव की संवेदना की मशाल को जला।। 

संवेदनाओं का सौन्दर्य

संवेदनाऐं ही मनुष्य जाति का वास्तविक सौन्दर्य है। संवेदनाऐं मन के कोमल भाव हैं।  संवेदनाऐं मनुष्य मन का सौन्दर्य है संवेदनाओं से मनुष्य, मनुष्यता को प्राप्त करता है..  संवेदनाऐं ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है।  संवेदनाऐं ही इस संसार को सुन्दर बनाती हैं... दया, प्रेम, करूणा का पाठ पढाती हैं।  संवेदना विहीन मनुष्य पशु समान है.. संवेदना ना हो तो दुनिया में जंगल राज बढ जायेगा..मनुष्यता काअंत हो जायेगा.. मनुष्य ही मनुष्य का भक्षण कर जायेगा।। संवेदनाओं का जीवंत रहना अति आवश्यक है... संवेदनाऐं ही मनुष्य जीवन का मनुष्य मन का वास्तविक सौन्दर्य है।। 

संवेदनाओं का भव्य संसार

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम संवेदनाओं का भव्य संसार। लंका का राजा रावण,सवंदेन विहीन पशुवत व्यवहार।  कौशल्या,सुमित्रा ममतामयी दिव्य स्वरूप  मंथरा भयी संवेदनविहीन,प्रभाव कैकयी बनी विवेकशून्य।  संवेदनाओं का पतन, दिया श्रीराम को वनवास गमन।  भरत दिव्य रुप,संवेदनाओं का भव्य स्वरूप,  भ्रात प्रेम से ह्रदय व्याकुल.. संवेदनाओं की विरह पीड़ा।  मन व्यथित, ह्रदय द्रवित वन गमन, लक्ष्मण गंभीर  राम अमृत मन सुख देने वाला,भ्रात मिलन का भाव मिलन... संवेदनाओं से भरपूर तन - मन।  रामचन्द्र जी के खड़ाऊं.. पूजे जो अमृत पुंज पाऊं  अमर है, संवेदनाओं का दिव्य,संसार श्री राम,सीता लक्ष्मण भरत माताओं का व्यवहार - - -  संवेदन विहीन रावण का राक्षसी व्यवहार.. करता था जो अत्याचार..  अमर है संवेदनाऐं, नष्ट सब संवेदविहीन।।।। 

संवेदना मर रही

मर रही संवेदनाऐं..  वेदना चहूं ओर है..  भागने की होड़ है.  आगे बढने की दौड़ में ..   मानवता कुचल रही..  कंक्रीट का शोर है..  प्रकृति का दमन हो रहा..  प्राण वायु घट रही..  संवेदना है मर रही..  पनप रही पाषाणता  मानवता है रो रही..  मानवता पर दानवता  सिर चढ कर चिल्ला रही  पाषाणता है बढ़ रही, मानवता है  रो रही, संवेदना कराह रही,  भावनाओं के पुष्प मुरझा रहे  सौन्दर्य भी अब लुप्त हुआ  संवेदनाओं का कत्ल हुआ  मानवता पर दानवता सिर चढ़कर  बोल रही.. कंक्रीट की मीनारों में  आधुनिकता बोल रही...  प्रकृति की सौम्यता अब कहाँ रही  सौन्दर्य प्रसाधन अब बढ रहे  लीप पोत कर सब खड़े.. भीतर से अभद्र हुये  संवेदना है रो रही, भाव शून्य सब हुये  सौन्दर्य अब लुप्त हुआ, पाषाणता के युग में  शूल सा मानव हुआ... 

रामनवमी की शुभकामनाएं

रामनवमी की शुभकामनाएं  हर्षित हैं सभी दिशाऐं  राम नाम से शुभ आशायें   राम नाम मिश्री सा मीठा मुख जापे तन प्रफुल्लित दीखा  ह्दय आनन्दित ,मन हर्षित भीगा  नयन की चमक.. चंद्रमा सी शीतल  मन चंचल स्थिर सा दीखा  तन नाचे  मुख राम नाम मीठा सा जापा  तन-मन का वियोग.. दूर हुये सब भ्रम के रोग  चहूं ओर सब शुभ संयोग  राम नाम अमृत का प्याला  पीवें जो मन हर्षित हो मतवाला  राम नाम है.. मन सुख देने वाला राम नाम अमृत का प्याला  पिये जो मन हर्षित हो नाचे मतवाला  राम राज्य का शंखनाद  दूर हो सब संवाद  राम नाम का बिगुल बजाओ  शंखनाद करवाओ  आरती थाल करो तैयार  श्री राम आये हैं घर - घर आज 

ऋषिकेश गंगा आरती की भव्यता

ऋषिकेश त्रिवेणी घाट संध्याकाल आरती का भव्य चित्र यह दर्शाता है की यहां मां गंगा  की आरती कितने भाव और भक्ति से की जाती है..।गंगाजी की आरती में सभी लोग बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं। देश - विदेश से भक्त आकर गंगा आरती पूजन.. से मन को भक्ति मय रंग से सरोबार कर मन को संतुष्ट करते हैं...  गंगा आरती के बाद होने वाले भजन भक्तों को मंत्रमुग्ध कर भक्ति के रंग में रंग नाचने को बाध्य कर देते हैं।   उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री धाम स्थित है.. वहां के बर्फीले पहाड़ों से कुछ किलोमीटर की ऊचाईय पर गौमुख से भागिरथी नदी निकलती है...  .

ऋषिकेश की विरासत

☺☺☺  ऋषिकेश की विरासत - - - मां गंगा का अमृतमयी पवित्र जल... गंगा का जल... मात्र जल नहीं अमृत है... भारतीयों के लिये,समस्त संसार के लिये.... वरदान है औषधि है।  तन-मन को पवित्र करने वाली मां गंगे का अमिय जल अद्भुत है अतुलनीय विरासत है ऋषिकेश के लिए...   ऋषिकेश.... ऋषियों की भूमि... दिव्य शक्तियों की भूमि... ऋषिकेश की महिमा... मां का गंगा का अमृत जल... बद्रीनाथ.. केदारनाथ का आशीर्वाद... गंगोत्री - यमुनोत्री की शीतलता.. जो तन मन को शांति प्रदान करती है.... *त्रिवेणी घाट* - - - मां का पवित्रतम घाट... त्रिवेणी - - तीन नदियों का संगम... जहां तीन नदियों का जल *मां अलकनंदा* मां सरस्वती *भागीरथी का जल एक साथ मिलकर मां गंगा के अमृतमयी जल के रुप में प्रसाद देता है... 

नये रंग

मेरी मित्र अराधना जो बहुत ही खुशमिजाज इंसान थी।  लेकिन कुछ समय से गुमसुम, चुपचाप रहने लगी थी... यूं तो वो किसी से कुछ कहती नहीं थी... लेकिन मेरे बहुत कहने पर वो फूट-फूटकर रोने लगी...  फिर अराधना ने बताया कि जिसे वो अपना समझ रही थी... वो अपना नहीं निकला..  मेरा उपयोग किया जा रहा था, जब मुझे पता चला, तब मैं बहुत दुखी हुई.... दुख की बात थी.. अराधना को लगने लगा था, उसकी भी अहमियत है.. उसे भी कोई पसंद करता है। जब कोई आपको अपनापन दे.. आपका ध्यान रखे.. आपको पल-पल समझाता रहे... कि आपके लिए अच्छा क्या है बुरा क्या है.. तो निसंदेह आप उस व्यक्ति को अपना अजीज समझने लगते हैं। आप कई सपने देखने लगते हैं... आपके जीवन के तार आपके उस अजीज से जुड़ जाते हैं... फिर तो जागते - उठते हर पल आप उस अजीज व्यक्ति से संबंधित अपने जीवन की खुशियां ढूढ़ने लगते है। स्वर्ग सा सुंदर रामराज सा लगने लगता है सब कुछ.... किन्तु यह भी सच है कि, रामराज में भी मंथरा थी...  फिर यह तो कलयुग है... कलयुग में अनगिनत मंथरायें हैं... अब मर्याद की बात तो कहानियों में ही मिलती है... कैकयी तो हर कोई है यहाँ ...  बस अराधना का दिल भी बहुत द

शुभ संजोग नववर्ष मंगलमय

चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष नव वर्ष नव आगमन  मां के शुभ नवरात्रों की  शुभकामनाएं,मां देने आयीं हैं दुआएं लेने आयीं हैं बलायें, मां के आशीर्वाद  की आ रही हैं सदायें.. स्वस्थ रहो  मस्त रहो... मां के आशीर्वाद से भर लो झोलियां  आ रही हैं भक्तों की टोलियां  लगा रहे हैं भक्त माता के जयकारों की बोलियां  आयो सब मिल माता की ज्योत जलायें  मन का अंधियारा दूर भगायें  शुभ मंगल बेला का लगा है रेला  खुशियों का लगा है मेला  जागृति की शुभ मंगल बेला  शुभ का दर्शन  शुभ कर्मों का लगा दो योग होगा जीवन में शुभ संजोग..  मां ही सृष्टि की पालनहार  मां की ममता से भरपूर रहे समस्त संसार।। 

सत्य की खोज

जानते तो सब हैं... पर जानना नहीं चाहते... भ्रम में ही रहना पंसद है सबको... जब भ्रम बेहद खूबसूरत हो... तो खूबसूरती में ही कुछ पल रह लेना बेहतर है.. हाथ में खिलौना पकड़ा कुछ पल बच्चों का दिल बहलता है... बेहतर है... बस ऐसे ही जीवन कट रहा है हम मनुष्यों का....   *सत्य की खोज... निकल पड़ी सत्य की खोज में... जाना *सत्य तो मौन है*... सत्य शांति का महासागर ** सत्य प्रदर्शन नहीं करता.. *सत्य तो स्वयं सिद्धा स्वयं में पूर्ण है.... आकर्षणों की भीड़ मे... उजालों की चकाचौंध में सत्य नहीं है..  यह सब तो नश्वर है.. दिखावा है, मन को बहलाने का साधन है... सत्य तो अजन्मा है...  सत्य मात्र किरणों का प्रकाश नहीं.... उजालों काअम्बार ही नहीं... **सत्य स्वयंमेव सूर्य है **जिसके  आगे हम सब राख हैं.... अस्तित्व मनुष्य का धरती पर... तन के पिंजरे में प्राण... प्राणों ने छोड़ा तन मिटा इंसान का नामोंनिशान...  इंसान के शुभ कर्म ही उसकी पहचान है... रह जाना भावों का समुंदर विचारों का कौलाहल... रसायनों का उठता कोहराम है.... माना की रसायनों की शक्ति.... शक्ति में ऊर्जा...  ऊर्जाओं का संतुलन... शक्तियों का स्रोत है...  ज

हर रंग कुछ कहता है

रं रं रं  रं  र      हर रंग कुछ कहता है  रंगों की भी अपनी कहानी होती है  लाल रंग सौन्दर्य का प्रतीक स्वस्थ जीवन का देता संदेश  हरा रंग सुख समृद्धि सम्पन्नता प्राण वायु का भण्डार  सफेद रंग सूख शांति  सौम्यता सरलता से भरपूर  गुलाबी रंग नम्रता एवं मासूमियत से पूर्ण  रंग जीवन को खूबसूरत बनाते है रंग बेहतरीन हो तो हर दिन एक त्यौहार है।  रंग ही प्रकृति का सौंदर्य है  रंगो के सुन्दर तालमेल सेआकर्षक रंगोली बनती है  यूं ही हर रंग को थोप देना रंगों का अपमान है  हर रंग अपनी विषेशता लिये होता है  लाल रंग माथे पर यश कीर्ति का संदेश देता है  हरा रंग गालों पर सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है  रंगों का त्यौहार होली.. रंगों का सुन्दर सामंजस्य होता है...  रंगों से बनी यह दुनियां  फिर क्यों ना हर रंग से प्यार करें  प्रकृति ने भी तो स्वयं को रंगों से सजाया है  रंग-बिरंगे पुष्प वसुंधरा की शोभा बढाते हैं  रंगो से जीवन की खूबसूरती है..  रंगों को थोप देना रंगों का त्यौहार होना  बल्कि हर रंग मे प्रेम पूर्वक रच बस जाना  रंगों के त्यौहार होली का मकसद है...  रंग ही इस संसार को भव्य एवं आकर्षक बनाते हैं  प्रकृति भी स

सद्भावनाऐं

अभी सद्भावनाओं से भरा है झोला भर लो,बटोर लो, कल किसने देखा  अभी मन मे दुआएं हैं,शुभकामनाएं हैं  भर लो, बटोर लो, व्यर्थ ना जाने दो इन्हें...  नित प्रातः विचारों की बगिया से  शुभ साकारात्मक विचारों के बीज  चुनकर काव्य रस धारा का अमृतमयी  रस छिड़क कर समाज को समर्पित कर  देती हूं, जिससे शुभ साकारात्मक विचारों  के प्रवाह से सबका मन हर्षित रहे...  मन में नव ऊर्जा का संचार होता रहे  मन में सदा साकारात्मक विचार आयें  परमात्मा से वरदान मांगती हूँ  की खूबसूरत और शुभ विचारों का चयन  कर स्वयं का और समाज मार्गदर्शन करती रहूं।   

स्वर्णिम शब्द

 

समुंदर हो जाने तक

आज फिर कुछ लायी हूँ  मीठी मुस्कान के साथ,कुछ मीठे शब्द,  कुछ मीठे बोल,बस यही रह जायेगी यादें  जब मैं समुद्र हो जाऊँगीं.  अभी नदिया की चंचल धारा हूं   बह रही हूँ, सागर हो जाने पर  लहरों के संग आया -जाया करूंगी  अभी नदिया की चंचल धारा हूँ  समुंद्र हो जाने तक रही हूँ मचल  समाज को कुछ बेहतरीन देने  की चाह में, शुभ,सुन्दर,साकारात्मक विचारों  को एकत्रित कर कभी गद्य,कभी पद्य में समाज को समर्पित कर देती हूं, बेहतरीन पाने और  देने की चाह में बस बेहतरीन विचारों की  श्रृंखला बनाती हूँ.. क्रम में सब  अनुशासित हों  सभ्य हों, बेहतरीन हों....  खूबसूरत हों, साकारात्मक की महक से महकते  रहें  सदैव बगीचों की शोभा बढती रहे  मेरा समाज मुस्कराता रहे शुभ की ओर कदम बढाता रहे  मेरे विचारों की बगिया के कुछ फूल  समाज की सुन्दरता बढाने में अपना सहयोग प्रदान करते हैं तो सफल होगा जीवन मेरा... 

उम्मीद

उम्मीद से हौसला बढता है,  हौसलों से साहस, साहस से  आत्मविश्वास जन्म लेता है ..  वही आत्मविश्वास असंभव को  सम्मभ करने की क्षमता रखता है।  छोटी-छोटी किरणों से मन में आशाओं के नये दीप जलते हैं  जग भले ही रोशन ना हो तत्काल  मन उम्मीद के नये उजालों से भर  जाते हैं .. उन उजालों की किरणों से,  जग रोशन हो जाता है।  एक उम्मीद ही तो है. जो चीटियों  को पहाड़ पर चढने को प्रेरित करती है  उस उम्मीद की किरणों से आशा का एक दीप  हौसलों का भव्य आसमान  तैयार करता है और फिर कहीं  जाकर आकाश में असंख्य  तारे जगमगाते हैं... अपने  अस्तित्व पर मुहर लगाते हैं।।। 

बंसत पचंमी

 * बंसत पचंमी * *ऋतु बसंत,समीर चले  मधुर – मधुर सवंच्छद* नव पल्लव अंकुरित पुष्प मरकंद.. मन प्रफुल्लित सूर्य प्रकाश अद्भुत प्रसन्न अंतर्मन आयो ऋतु बसंत ज्ञानामृत बुद्धि, विवेक का भण्डार हो, मां शारदे तुमको नमन प्रकाश,ज्ञान कलश अनन्त  धन, वैभव सुख-सम्पत्ति लक्ष्मी की पवित्र – पावन रश्मियां नमों मां सरस्वती मां देवी बुद्धि, वैभव सुख-समृद्धि का प्रकाश हो.. आयो ऋतु बंसत...
जज्बा है सेवा का, मन में एक आस है, विश्वास है, कुछ कर गुजरने का जूनून है.. होगा हर काम बेहतरीन जो होगा आप सबका संग है...  जहाँ कोशिशों के कद ऊंचे होते हैं वहाँ सफलता के कदम आसमान तक उडान भरते हैं  मंच पर उपस्थित अतिथि. मेरे समक्ष बैठी बोर्ड member बड़ो एवं छोटी मित्रों नमस्कार  नमस्कार.. आप सब लोगों ने मुझे मौका दिया, इस लायक समझा मैं आप सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूगीं... हो सकता है बहुत ज्यादा ना कर पाऊं.. पर जो भी करूगीं बेहतरीन और उपयोगी करने की कोशिश करुँगी... इससे पहले अध्यक्षा सीमा अग्रवाल जी  द्वारा भी बेहतरीन कार्य किये गये जो निसंदेह प्रशंसनीय हैं... कोशिश करूंगी की मैं आप सबकी उम्मीदों पर खरी उतर पाऊं... मुझे और मेरी टीम को आप सबका सहयोग और समर्थन चाहिए.. जो आप सब से निरंतर मिलता रहेगा उम्मीद करती हूं।।। Hello.. You all gave me a chance, I consider it worth it, I will try to full fill   your expectations... I may not be able to do much... but whatever I do, I will try to do it best and useful.. Before this, excellent work has also been done by President Seema Aggar

जादूई रस है संगीत

जादूई रस है संगीत  वायुमंडल मे समाहित है संगीत  आओ मिलकर सुरीले गीत गायें आओ सुर से सुर मिलायें सुन्दर ताल पर सुमधुर धुन बजायें रियास की ओर कदम बढायें चलना होगा कदम से कदम मिलाकर ताल से ताल का मेल हो राग हो रागिनी हो मन में सुन्दर भावों की चांदनी हो फिर बनेगा गीत सुहाना हम सबके दिलों का तराना बने जिसका हर दिल दिवाना ऐसे गीत को है आवाज देना सुमधुर सुर हों,ताल हों सुंदर भावों का तालमेल हो जिन्दगी गाये ऐसा गीत जो हर दिल जाये जीत*।।।

मैं एक महाकाव्य बनना चाहूंगी

*मैं एक किस्सा नहीं,एक महाकाव्य बनना चाहूँगी बातें बड़ी ही सही,परन्तु सागर की स्याही, कलम मैं खुद बनना चाहूँगी * * आयी हूँ दुनियां में  तो  कुछ करके जाऊंगी सुंदर तरानों के कुछ गीत सुहाने छोड़ जाऊंगीं * *यूं ही नहीं चली जाऊंगीं परस्पर प्रेम के रंगों से सारा जहां सजाऊंगी कुछ मीठे जज्बातों से हर दिल में घर बनाऊंगी* कोई याद ना करे फिर भी  याद आऊंगीं, क्योंकि अपने तरानों के कुछ अमिट निशान छोड़ जाऊंगी * *अपने लिये तो सब जिया करते हैं मैं कुछ –कुछ दुनियां के लिये भी जीना चाहूँगी मैं किस्सा नहीं एक महाकाव्य बनना चाहूँगी मैं मेरे जाने के बाद भी, अपने शब्दों मे जीना चाहूँगी.... 

हंस लिया करो जब मन करे 🤣

यूं ही बेवजह मुस्कराया करो  माहौल को खुशनुमा बनाया करो  हंसना नहीं आता तुम्हें थोड़ा तमीज से हंसा करो जहां दखो वहाँ दांत दिखा कर हंसने लगती हो  अरे भई! हंसना तो हंसना होता है, उसमें कैसी तमीज..  यह तो देख लिया करो  कहाँ हंस रही हो..!  यह तुम्हारा घर नहीं है..  घर पर.. कौन सा हंसने  का समय मिलता.. काम व्यस्तता  फिर बचे-हुये समय में आराम..  हंसना तो मन की प्रसन्नता से आता है  किसी बात से मन खुश हुआ तो हंस लिया अब मन की प्रसन्नता पर हंसी के फूल खिलना चाहते हैं  तो उन्हें खिलने दो.. हां किसी का मजाक बनाकर हंसना  गलत है... हंसने से खुश रहने से साकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है... एक को हंसता देख दूसरा भी हंसने लगता है  हंसना तो अच्छा ही हुआ ना - -  खिलते फूलों को देखकर सबको प्रसन्नता होती है...  हंसों भई! जब मन करे जी भरकर हंस लिया करो  वैसे भी आजकल हर काम पर आधुनिकता का पैबंद लग रहा है.. हंस लो जी भर... महफिलों में ठहाके नहीं लगाये जाते.. 

मैं तो ऐसा नहीं

लहरों का काम है सारा  जो चैन से जीने नहीं देती मुझे  इसके लिए मुझे जिम्मेदार नहीं ठहराना  भीतर का कौतूहल है जो टिकने नहीं देता लहरों का आना-जाना लगा रहता है  लहरें बहुत उझाल मारती हैं  दूर तक जाकर पलट देती हैं  डर लगता है, जाने यह लहरें मुझसे  क्या चाहती.. मैं जो हूं, उससे जुदा होने के  लिये मजबूर करती हैं  अद्भुत विडम्बना तो देखो  जो पास है,उसके लिए खुश  होने की बजाय,जो पास नहीं है  उसके लिए रोने को मजबूर करती हैं ।। 

शायद मेरा दर्पण

शायद मेरा दर्पण मैला है,यह सोच मैं उसे बार-बार साफ करता रहा, दाग दर्पण में नहीं मुझमें है,यह सोच मैं घबराया, अपना चेहरा बार-बार साफ करने लगा, दाग चेहरे पर प्रतिबिंब था मेरे विचारों का-- दाग मेरे मन में था.. मैं अचंभित था..  भावों का प्रतिबिंब...!  परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है,मेरा पथप्रदर्शक मेरा मार्गदर्शक है,  मुझे गुमराह होने से बचाता है! उसने मुझे समझाया.. मन के मैल को साफ करने का ध्यान उपाय बताया...  परन्तु मैं मनुष्य अपनी नादानियों से भटक जाता हूँ,  स्वयं को समझदार समझ ठोकरों पर ठोकरें खाता हूँ,  दुनियां की रंगीनियों में स्वयं को इस कदर रंग लेता हूं,कि अभद्र हो जाता हूँ, फिर दर्पण देख पछताता हूं,और रोता हूँ..  फिर लौटकर मसीहा के पास जाता हूँ,  और उस परमपिता परमात्मा के आगे शीश झुकाता हूं, उस पर अपनी नादानियों के इल्जाम परमपिता पिता पर लगाता हूं..  वह परमपिता परमात्मा हम सबकी गलतियां माफ करता है...  वह मसीहा हम सबकी आत्मा में बैठा परमपिता परमात्मा है।।     परन्तु एक मसीहा जो हमेशा मेरे साथ चलता है , मुझे अच्छे बुरे का विवेक कराता है ,मेरा मार्गदर्शक है , मुझे गुमराह ह

राममय हुई धरती सारी

राममय हुई धरती सारी  हर्षित हैं खग, मृग, नर- नारी  महा उत्सव की करो तैयारी  आरती थाल करो तैयार  श्री राम आयेगें हमारे द्वार  मिष्ठानों के भोग बनाओ  दीप जलाओ घर - द्वार  जगमग- जगमग हो संसार  राम आये हैं अयोध्या धाम  शंखनाद से करो आगाज  स्वागत का करो ऐलान   युगों - युगों के बाद हैं लौटे राम अयोध्या धाम हैं आयें राममय हुआ समस्त संसार.... रामराज की हो जय-जयकार सतयुग सम होगा समस्त संसार  रामराज की जय - जयकार 

राम नाम अमृत के जैसा

राम नाम मीठा रस ऐसा,  मन बोला अमृत के जैसा  जिह्वा में मीठा रस  घोला  राम नाम ले मनवा बोला  राम सियाराम, सियाराम  जय- जय राम...  राम नाम ह्रदय से बोला  वाणी पवित्र मनवा डोला  दिव्य उजाले हुये जगत में  राम नाम जब जब मुख से बोला  राम नाम सत्य आधार  राम नाम दिव्य प्रकाश  मन मंदिर हर्षित हो बोला  आओ सुंदर बंदनवार सजायें  कोमल पुष्प लडी सजायें  रंगोली सुन्दर बनायें  चित्रकला भी खूब बनायें  मिष्ठानों के थाल सजायें  दीपोत्सव की मंगल बेला  सब रल - मिल मंगल गीत सुनायें राम नाम ले हर जन बोला राम सियाराम सियाराम जय-जय राम - 2 

लोहड़ी एवं मकर संक्रांति

*लोहड़ी आयी है ध्योडी  अग्नि की लगाई फेरी  मूँगफली, गजक, रेवड़ी  अग्नि में डाली थोड़ी -थोड़ी  प्रसाद से भरकर झोली  मुंह में मिठास घोली  खुशियों से भरपूर रहे सबकी झोली ** भारत त्यौहारों का देश है विज्ञान और त्यौहारों का गहरा संबंध है प्रकृति, परिवर्तन नयी फसल की खुशियां  हर ऋतु परिवर्तन में भारत में कोई ना त्यौहार आता है  यह त्यौहार मात्र परम्परा नहीं..  इनके पीछे गहरे विज्ञानिक तथ्य भी निहित हैं जो त्यौहारों के कारण मनाये जाते है  सर्दी का मौसम. अग्नि देव का पूजन जो  हमें सर्द मौसम की गलन से मिटाती हैं  लोहड़ी, एवं मकर संक्रांति.. सूर्य का मकर राशि मे प्रवेश  तन और मन की स्वस्थता अग्नि एवं खिचड़ी संक्रांति अद्भुत  आओ अलाव जलायें जाड़े की गलन मिटायें  पूज्य अग्नि देव को मिष्ठान गुड़ का भोग लगायें  मन हर्षित,तन स्वस्थ हो यही सुख मनायें  सब मिल गपशप की कडियों में  करारी मूँगफली, गजक, रेवड़ी अलाव का स्वाद बढायें  उदर क्षुधा को खिचड़ी का भोग लगायें 

चलना बेहतर है

रुके रहने से बेहतर है चलना   मैं पैदल चला हूं  चल रहा हूँ खुश हूं  नहीं दौड़ना मुझको पैदल ही चलना मंजूर है मुझको  पग- पग रास्ते नापना अच्छा लगता है  जल्दी किस बात की.  थोड़ा रुककर सफर का आनन्द लेना भाता है मुझको  भागना क्यों? आगे बढने की इतनी जल्दी नहीं वक्त तो बढ ही रहा है. उसे कौन रोक पाया है हम तो रुक सकते हैं ना.. माना की सांसो की गिनती चल रही है जो पल मिले हैं उन्हें तो आनन्द से जी लें  कहीं आवश्यकता से अधिक रफ्तार से चलने में  जो पल वर्तमान मे मिला है वो भी ना गवां बैठे  आगे क्या होगा ज्ञात नहीं, आगे बेहतर होगा उत्तम है  परन्तु वर्तमान में जो है वो सर्वोत्तम है  फिर क्यों ना पैदल चल लूं और पल- पल का आन्नद लूं  पैदल चल रहा हूं, आंखो में पट्टी बांधकर नहीं भागना मुझे  पैदल हूं, चल रहा हूं, रुका नहीं हूं खुश हूं..  की तरल हूँ पाषाण नहीं... 

हिन्दी मेरी मात्र भाषा

  हिंदी हिंदुस्तान का गौरव  "हिन्दुस्तान" का गौरव ,हिंदी मेरी मातृ भाषा, हिंदुस्तान की पहचान हिंदुस्तान का गौरव "हिंदी" मेरी मातृ भाषा का इतिहास सनातन ,श्रेष्ठ,एवम् सर्वोत्तम है । भाषा विहीन मनुष्य पशु सामान है ,भाषा ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को शब्दों और वाक्यों के माध्यम से एक दूसरे से अपनी बात कह सकते हैं और भव प्रकट कर सकते हैं । हिंदी मात्र भाषा ही नहीं, हिंदी संस्कृति है,इतिहास है,हिंदी इतिहास की वह स्वर्णिम भाषा है जिसमें अनेक महान वेद ग्रंथो के ज्ञान का भण्डार संग्रहित है ।  अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को अपनाना स्वयं का एवम अपने माता - पिता  के अपमान जैसा हैं । मातृ भाषा से मातृत्व के भाव झलकते है । हिन्दी मेरी मातृ भाषा मां तुल्य पूजनीय है । जिस भाषा को बोलकर सर्वप्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया उस उस मातृ भाषा को मेरा शत-शत नमन । जिस प्रकार हमें जन्म देने वाली माता पूजनीय होती है उसी तरह अपनी मातृ भूमि अपनी मातृ भाषा भी पूजनीय होनी चाहिए । मातृ भाषा का सम्मान ,यानि मां का सम्मान मातृ भूमि का सम्मान ।  मां तो मां होती ,और म

अमृतकाल का आगाज

अमृतकाल का आगाज  ह्रदय प्रफुल्लित मन हर्षित  राम राज्य का शंखनाद श्री राम अयोध्या वास  सतयुग का आगाज  श्री राम अयोध्या वास युग परिवर्तन की सौगात  श्री राम अयोध्या वास  जपते हैं जिनको आठों पहर  वो ही तो श्रीराम हैं आये  दिव्य शक्तियों का आगाज  श्री राम अयोध्या वास  सत्य,सनातन रख विश्वास  शाश्वत अनन्त अमर इतिहास  सत्य धर्म की अनहद आवाज  सत्य विजयी धर्म पताका  अयोध्या रामराज सुख - समृद्धि  संतुष्टता का अमृत काल  सत्य सनातन शाश्वत अमर इतिहास  भविष्य. वर्तमान बस यही रख विश्वास।। 

अक्सर दुआओं में कहता है यह मन

 सर्वप्रथम परमपिता परमात्मा दिव्य  शक्ति को मेरा शत- शत-शत नमन  अक्सर दुआओं में कहता है यह मन  थोङा आप मुस्कराओ थोङा हम मुस्कराये   एक दूजे शुभचिंतक बन जाये  ऊपर वाले ने भेजा है देकर जीवन   फिर क्यों ना पुष्पों सा जीवन बिताएं हम  फलदार वृक्ष बन जायें हम नदियों का जल बन जायें हम ..  आंगन की शोभा बन बागों की रौनक बढायें हम  हवाओं में घुल- मिल सुगन्धित संसार कर जायें हम अक्सर दुआओं में मागता है यह मन  खुशियों से मालामाल रहे सबका जीवन   आप भी मुस्कराये हम भी मुस्करायें  बागों में फिर  से बहार  आये  जीने की अदा सबको सिखाये  बगीचों की शोभा बन हर एक के चेहरे  पर रौनक ले आये हम..परमपिता की दिव्य दृष्टि का प्रसाद निरंतर पाये हम   आसमान से आता है,कोई  फरिश्ता   दुआओं से भर जाता है मेरा दामन   एक रुहानी एहसास अवश्य पाता हूं    उस फ़रिश्ते की महक , मेरा घर आँगन महका जाती है मेंरे चेहरे पर बिन बात के मुस्कराहट आ जाती है । मैं चल रही होती हूँ अकेली  ,परन्तु कोई मेरे साथ चल रहा होता है । मैं उसे देख नहीं पाती पर वो मेरा मार्गदर्शन कर रहा होता है , मुझे अच्छे से अच्छा कार्य करने को प्रेरित कर रहा होता

श्रीराम सतयुग वाले

 युगों - युगों के बाद हैं आये  श्री राम सतयुग वाले  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  रामायण के श्री सीता राम  आलौकिक दिव्य निराले  सत्य धर्म पर चलने वाले  सूर्यवंश की धर्म पताका ऊंची लहराने वाले  मर्यादा  से जीवन जीने का  संदेशा देते श्री राम सतयुग वाले  निश दिन जिनका नाम हैं जपते श्री राम ईष्ट हमारे...  पुष्पों की वर्षा करवाओ मंगल गीत सुनाओ  श्री राम अयोध्या धाम आयें मीठी शहनाई बजाओ  श्री राम अयोध्या धाम हैं आये  शंख ध्वनि बजवाओ  जपते हैं जिनको आठों याम  श्री राम वो ही हैं आये  स्वागत में पलके बिछाओ  मंगल धुन बजाओ  सुंदर बंदनवार सजाओ   रंगोली सतरंगी बनाओ  स्वागत में श्री राम प्रभु के अपनी पलके बिछाओ  नयनों के दर्पण मे श्रीराम छवि ही बसाओ 

श्रीराम अयोध्या धाम आये

युगो - युगों के बाद हैं आये श्रीराम अयोध्या धाम हैं आये  अयोध्या के राजा राम, रामायण के सीताराम  भक्तों के श्री भगवान  स्वागत में पलके बिछाओ, बंदनवार सजाओ  रंगोली सुन्दर बनाओ, पुष्पों की वर्षा करवाओ.  आरती का थाल सजाओ अनगिन  दीप मन मंदिर जलाओ...दिवाली हंस -हंस मनाओ...  श्रीराम नाम की माला  मानों अमृत का प्याला  राम नाम को जपते जपते  हो गया दिल मतवाला....  एक वो ही है रखवाला  श्री राम सतयुग वाला...  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  रामायण के श्री सीता राम  आलौकिक दिव्य निराले  सत्य धर्म पर चलने वाले  सूर्यवंश की धर्म पताका ऊंची लहराने वाले  मर्यादा  से जीवन जीने का  संदेशा देते श्री राम सतयुग वाले  प्राण जाये पर वचन ना जाये  अदभुद सीख सिखाते  मन, वचन, वाणी कर्म से  सत्य मार्ग ही बतलाते....  असत्य पर सत्य की जीत कराने वाले  नमन, नमन नतमस्तक हैं समस्त श्रद्धा वाले... 

शुभमंगल दिशायें

शुभ मंगल होती सभी दिशाऐं भारत भूमि की विषेशताऐं  अमिय जल निर्मल सरिताऐं  विभिन्नता में एकता की परिभाषाऐं सभ्य संस्कारों की कथाऐं संस्कृति से ओत- प्रोत वेद ऋचाएं  रक्षा को अडिग भुजाऐ फैलाऐं खड़ी हिम शिखाऐं फलों - फूलों से लदी वृक्षों की लताऐं  रक्षाप्रहरी बन अडिग खड़ी चट्टान बालाऐं भारत की क्या बात कहूँ  जो भी कहूँ मैं दिल से कहूं  भारत मेरी आत्मा  भारत मेरा प्राण  भारत मेरा अभिमान  भारत मेरा सम्मान  भारत भूमि की दिशाऐं  पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण  विभिन्नता में एकता की परिभाषाऐं  स्वछंद. निर्भीक बलवान, देश प्रेम से  ओत - प्रोत भारत भूमि की सभी दिशायें....