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अल्हड़ मन

अल्हड़ मन की आस, मन ना पाये विश्राम 

राह निहारे सर्वदा, नयनों से झलकती नर्मदा।। 


दीदार नयन होता रहे, प्रेम को अनकहा करे

 कसक मन की ना थमें , दिल कहीं भी ना रमें


अल्हड़ मन चंचल चपल, निष्ठुर बेमानी 

सजाता सपनों की कहानी, करे सदा मनमानी।। 


प्रेम परिभाषित करुं, निर्मल मन की कसक 

प्रेम में समर्पण, ज्यों भीतर करे देवत्व दर्शन।। 


प्रेम जीवन उपसंहार, प्रेम जीवन का सारांश 

प्रेम को भटके सभी, प्रेम को तरसे सभी।। 


प्रेम मन की मीठी ठसक, अनकही सी कसक 

प्रेम मर्यादा में बंधी,  लक्ष्मण रेखा ना भटक।। 


सरल मासूम बालक, सा मन  करता नादानी 

बन पंछी भरता उडान, मन ज्ञानी भ्रम अज्ञानी  ।। 




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लेखक

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