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Showing posts from 2021

आशा दीप

भीतर भर एक आशा  स्वयं का स्वयं पर विश्वास  भर आस‌ जला एक आशा दीप  भीतर एक विश्वास  मन की आवाज़  जीत का आगाज ‌‌ आशाओं का चिराग  दीप प्रज्जवलित कर  प्रयासों के आधार ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌से  रच जायेंगे इतिहास  स्वयं से कर आगाज  बेहतरीन ‌‌‌‌‌होगे काज  जितायेगा तुझे तेरा ही विश्वास .... कर्मनिष्ठता संग आत्म बल की भर आस   भरोसा स्वयं का स्वयं पर विश्वास .... 

कायनात

सारी कायनात का मालिक है तेरा क्यों दर ब दर भटकता है  जो उसका है वो तेरा है  क्यों उससे जुदा होकर  फकीरों ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌सी ज़िन्दगी बसर करता है  दुनियां में सबसे अमीर हो जायेगा  है‌ , क्यों बूंद बनकर बरसता है  माना की गुलाब पर मोती बनकर चमकता है  धूप में भाप से अपना अस्तित्व पल में खत्म करता है‌  क्यों दर ब दर भटकता है समुन्दर तेरा अस्तित्व  सारा आकाश ही तेरा है तेरा वजूद चांद - तारों से रोशन हुआ करता है ।

शब्द अराधना

शब्द अराधना, शब्द तपस्या ‌ शब्द शक्ति शब्द ध्वनि गूंज  विद्युत तरंग तेज‌ माध्यम ध्वनि संदेश  शब्दों में अदृश्य असंख्य अद्भुत भेद  संयम की परख विचारों का चयन  वाणी से फूटे अमृत रस वेग   शब्दों के उपयोग की साधना  वाणी की सभ्यता सरस्वती की अराधना   विचारों को तराशना तोल- मोल के शब्दों के बोल  शब्द ब्रह्म ,शब्द देव, शब्द रचियता  शब्दों में अदृश्य कई अद्भुत भेद‌  शब्द शक्ति,‌‌ शब्द शाश्वत सृष्टि के तत्व  शब्द ध्वनि शब्द एक गूंज  भावों के रहस्यों में शब्द ब्रह्मांड का तेज  जिह्वा से वाणी का प्राधुभाव  अमृत रस प्रवाह  वाणी प्रज्ज्वला शब्द  अग्निप्रकाश‌  शब्दों का उपयोग अग्नि परीक्षाओं का तेज  शब्दों को तोल- मोल फिर बोल  शब्दों के नगिनों में रहस्य मणि अनेक  शब्द वही निकले दिव्य अर्थ सभ्यता के भेद संस्कृति के रहस्य निहित अनेक 

ठहराव से भराव

ठहरी थी क्योंकि खाई गहरी थी  रुकी थी ..पर थमी नहीं  मन में एक आस थी  मुश्किल था पर नामुमकिन नहीं  ठहराव से भराव  तक का सफर  गहरा था इस कदर  पीड़ा का दर्द था भयंकर  जाने कहां से हौसलों को उड़ान  मिलने लगी ठोकरें खायी इतनी  कि हर- पल सम्भल कर चलने ‌‌‌‌‌लगी  भीतर एक गहराई स्थितरता के सद्भाव  ने जन्म ले लिया  सरलता के भाव  से आत्मा की ओजस्विता बढ़ने लगी बहाव  के संग ठहराव भी आवश्यक लगा जीवन की उपयोगिता ज्ञात होने लगी  परहित धर्म अपना कर स्वभाव  में सरलता पनपने लगी  सभ्य संस्कारों का आधार  जीवन में मधुरता दया प्रेम रस श्रृंगार  जीवन का आधार बन गया  सभ्यता जीवन का श्रृंगार ‌‌‌‌बन गया  आत्मा का शुभ विचार बन गया ।     ‌

दुकानदार की उम्मीदें

सुबह-सुबह का समय था , अभी लगभग सुबह के साढ़े दस बजे होंगे । अभी कोई बोनी भी नहीं हुयी थी , दुकानदार की निगाहें सड़क पर चलते लोगों पर टिकीं थी कि कब कोई ग्राहक आये ‌‌‌‌और बोनी हो ।    पहला इंसान बड़ी उम्मीदें ,और फिर क्या हुआ ,वो लड़की आकर बोली, भाई साहब ,नहीं चाहिए आपका सामान,एक तो इतना मंहगा ऊपर से बेकार क्वालिटी ,रखो अपना सामान अपने पास.....   दुकानदार बहुत मायूस हो गया,वैसे तो दुकानदार के साथ ऐसा अक्सर होता ही रहता था,‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌लेकिन इतनी सुबह-सुबह और वो भी पहला ग्राहक दुकानदार बहुत उदास हो गया .....  दुकानदार उदास मन से उस लड़की   जरा बैठकर देखो दुकानदार की तरह ,सारा दिन एक - एक ग्राहक का इंतजार करना ,उस पर भी यह पक्का नहीं की ,ग्राहक कुछ लेकर भी जायेगा या नहीं ,सारा हाल झांटने के बाद कहना हमें पसंद नहीं आया ..... सोचिए और उस दुकानदार की तरह उसकी गद्दी ‌‌‌‌पर बैठकर देखिये , फिर आपको पता चल‌ जायेगा आटे - दाल का भाव ,आपने तो बड़ी आसानी से कह दिया , आपको पसंद नहीं आया मार अच्छा नहीं है ,नकली है मिलावटी है‌ । बहन जी आपने तो बड़ी आसानी से कह दिया , यहां हर कोई अपने और अपने परि

रफ्तार को सम्भाल ‌

 रफ्तार को सम्भाल  चल सम्भल,उतार-चढाव     को पहचान ... अटक मत,भटक मत  अटका तो थम जायेगा  भटका तो बिखर जायेगा  चहूं और नजर दौड़ा  स्वयं की और सब की फ़िक्र कर औरों को क्षतिग्रस्त होने से बचा  गया वक्त लौट कर नहीं आता  अटक मत,भटक मत, बस सम्भल  अटका तो थम जायेगा  भटका तो बिखर जायेगा बिखरा तो टुकड़ों में बंट जायेगा धारा बनकर सरल स्वभाव से कर्म करता चल ,  निर्मल जल की तरह बहता चल आगे बढ़ता चल...... स्वार्थ से परमार्थ को कर सफल ...

आज और कल

आज -आज है कल की खबर नहीं  आज को भी भरपूर जी लो  क्योंकि कल किसी ने देखा नहीं सम्भालो कल के‌ लिए भी  क्योंकि, वक्त एक सा नहीं होता  किन्तु आज को‌ मत गंवाना कल‌ के लिए  आज‌ का पता है....कल की खबर नहीं  बस थोड़ा सम्भालो कल के लिए भी  वक़्त एक सा नहीं होता .....

स्वागतम् शुभ स्वागतम्

 स्वागतम् शुभ स्वागतम्  आओ - आओ बंदनवार सजाओ‌  आंगन - आंगन पुष्प‌ बिछाओ  दीप जलाओ अंधियारा हटाओ  अमावस्या की रात्रि  चांदनी जगमगाओ‌  त्यौहार जीवन का सौहार्द  परम्पराओं की सौगात   संस्कृति का संसार   संस्कारों का अद्भुत संगम आनन्द ,उत्सव प्रेम सरोवर   जीवन उत्साह नव चेतना  नव प्राण उर्जा ,नव विश्वास नव रंग नव उत्साह  नव आशा की किरण  अमावस्या में चांदनी की चमक  कनक,चमक,धनक चमकीली रंगीली  सुख-समृद्धि की वृद्धि , रिद्धि संग समृद्धि ।।

पर्वत राज हिमालय

पर्वत राज हिमालय विशाल  अडिग खड़ा विहंगम  असंख्य झुंडों में ऐरावत संग सिंघम  हिमालय राज का शासन देखो  रक्षा प्रहरी सा अडिग विहंगम  भारतवर्ष की शान बढ़ाता  हिम खण्डों‌ का अद्भुत वक्षस्थल  असंख्य भुजाऐं फैला  पर्वत राज हिमालय    हिम+आलय   ओढे चांदनी की चादर   ‌‌  कांति से चमचमाता आभामंडल में साकारात्मकता फैलाता   सूर्य किरणों से सुनहरा बन  स्वर्णिम -रजत कांति से मन मोह  दिल लुभाकर हर्षित कर जाता   पर्वत राज हिमालय भारतवर्ष की शान बढ़ाता   ढाल बन दुविधाओं के प्रहार को  कठोर वक्षस्थल से टकरा-टकरा  दम तोड़ चूर -चूर कर जाता  भारत भूमि को सुख समृद्धि से  खुशहाल बना गिरीराज हिमालय  भारत का ताज बन भारतवर्ष का गौरव बढाता‌।

हिंदी हिन्दुस्तान की आत्मा

हिन्दूस्तान की आत्मा ,आन -बान और शान मातृभाषा "हिंदी" हिन्दूस्तान‌ के प्राण मातृभाषा "हिंदी " हिन्दूस्तान की आत्मा हिन्दू संस्कृति  संस्कृत से जन्मी मातृभाषा "हिंदी ‌‌‌‌" मातृभाषा गौरव है ,इतिहास है अपनी मातृभाषा से ही हिन्दुस्तान सम्पूर्ण है । सनातन धर्म का परिचय देती वेद, उपनिषद, पुराण रामायण आदि धर्म ग्रंथों में अपने अस्तित्व को समाती हिंदी.... देश,काल ़़और समय के अनुसार हिंदी भाषा के रुप, बोल-चाल और लिखने के ढंग में परिवर्तन होता रहा लेकिन मातृभाषा तो हिंदी ही रही क्योंकि मां तो मां ही होती है और प्राणों से भी अधिक प्रिय होती है क्योंकि ‌‌‌‌‌‌मां तो एक ही होती है ।   जो अपनी मातृभाषा यानि अपनी मां को मां कहने में छोटा महसूस करता है ,वह यह नहीं जानता की अपनी से बढ़कर अपनापन कोई और मां नहीं दे सकती ।  जिस भाषा को बोलकर मैंने सर्वप्रथम अपने भावों को प्रकट किया , जिस भाषा से मुझे मेरी पहचान मिली उस मां तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत-शत नमन 🙏🙏              जब -जब आत्मस्वाभिमान की बात आती है तब-तब  मातृभाषा "हिंदी" के‌ सम्मान की स्वयं की भाषा के गौर

रास्ते

रास्तों के बिना सफर अधूरा है रास्ते हैं तभी सफर पूरा है रास्ते कैसे भी हों चलने का हुनर तो इन्हीं रास्तों से सीखा जाता है।    घायल हुआ तो क्या हुआ ,चोटों के निशान भी बाकी हैं ‌‌  मेरे संघर्ष के साथी, रास्ते ही तो मेरे अपने साकी हैं ।। कैसे भूल जाऊं इन रास्तों को इन रास्तों ने मेरा साथ तब  निभाया है जब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था ।। चलते-चलते रास्तों में कई मुकाम ‌‌‌‌‌आये -तरह -तरह के नजारे दिखाकर इन्हीं ‌रासतों ने दिल बहलाया है। माना की टेढ़े -मेढें हैं ,पथरीले कंकड़ों से भरे हैं रास्ते  जिन पर चलकर मैंने मंजिल को पाया है । सफर के साथी हैं रास्ते जिन्होंने गिरते -समभालते मुझे बहुत आजमाया है। इन रास्तों ने मेरा पूरी शिद्दत से साथ निभाया है इन रास्तों से मैने दर्द भरा मीठा सा प्यारा रिश्ता पाया है । 

नवांकुर

सीधे हैं और सच्चे हैं  भोले हैं किन्तु बेवकूफ नहीं  कोमल हैं पर कमजोर नहीं  नये युग की नयी परिभाषा  दिल में लिए नयी आशा  बदली सी  है भाषा  बदला -बदला सा नजर आता हैै सब कुछ ,रुप बदला है, चाल बदली है  ढाल बदला है नये बीज हैं नयी पौध है  नये युग की नयी परिभाषा  नयी फसलों का इरादा  खट्टी -मीठी कोमलता संग  मजबूत कठोर प्रतिज्ञा  साधना से साध्य की परिभाषा  लिखने को आतुर नये युग की नयी परिभाषा ।।

धारा प्रवाह

नदिया का किनारा  मन की शांति को सहारा    ए नदिया ले चल मुझे भी अपने बहाव संग  कहीं दूर मैं रह जाऊं इधर  मेरा मन चंचल निकल जाये कहीं दूर  मैं होकर भी ना रहूं, फिर भी रहूं यहीं पर  मुझे भी बना दे धारा बस तेरा हो इशारा  नित नूतन नयी नवेली बुझो कोई पहेली   बहते जल की तरह बढ़ते बस बढ़ते जाऊं निर्मल, निरंतर अग्रसर फिर भी एक ठहराव  तरलता और निर्मलता का भाव  हरी-भरी वसुन्धरा पर्वतों की कंदरा रुक ए मन रुक जरा मेघों का झुंड घिरा  मानों उतर रही हो कोई अप्सरा  धीमें से सुनहरी रंग-बिरंगी तितलियों का  झुंड कोमल पुष्पों से ले रहा हो पराग का  रस अमृत रस भरा ... फसलों की बालियां वृक्षों की कतार  जल है तो जीवन हैं,वृक्षों में प्राण भरे जल अमृत, जल पूजनीय है जल अमृत भण्डार  भरा जल का सदुपयोग करो जल ना होने से सूखे  में तड़फ कर मर जाओगे  जल की अधिकता प्रलयकारी सब जलमग्न कर जायेगी  जल ही जीवन ‌‌‌‌‌, जल से तरलता , जीवन में निर्मलता  पवित्र , पूजनीय जल देव अवतार जल से समृद्ध समस्त संसार ‌बड़ना और आगे की ओर बढ़ना लक्ष्य  पर्वतों को चीर कर अपनी राह बनाना  पाषाणों से टकराना फिर भी आगे बढ़ते जाना  जल से चलता सुं

दस्तक एक आहट

एक दस्तक ,एक आहट मन की आवाज़  जिसमें छिपे होते हैं गहरे राज  इशारों की बात भी सुनना सीखो मेरे  अपनों उसमें छिपे होते हैं गहरे राज ‌ इशारा मन का आत्मा को  एक अनसुनी आवाज जो दिल को  हरपल दस्तक देती है इशारों में समझाती है  पर हम ही सुन कर अनसुना कर देते हैं  दिल की बात सुने या फिर दुनियां को देखें  कैसे ,कैसे अनदेखा कर दूं दुनियां को  जो हर पल मुझे ताकती है  गिरता हूं ठोकरें खाकर तो हंसी उड़ाती है  ऊपर उठता हूं तो भी बातें बनाती है  फिर भी मैं दुनियांदारी में उलझ जाता हूं  जिसे मेरे होने या होने से कोई फर्क नहीं पड़ता  जिसके लिए मैं हरपल एक किस्सा हूं  इशारा जो आत्मा का मन को होता  एक पहली अनकही आवाज जो  बस सवयं को ही समझ आती है  उस आवाज का इशारा हमेशा सही होता  जिसमें अच्छे -बुरे सही और ग़लत का विवेक भी होता है  समझना आवश्यक है इशारे का इशारा किधर होता  इशारे में भी गहरा राज छिपा होता है ।।

शिक्षक एक वरदान

शिक्षक समाज का वरदान ज्ञान का अक्षयपात्र  शिक्षक सभ्य सुसंस्कृत समाज निर्माता शिक्षा को ना व्यापार बनाओ संस्कारों की पहचान  शिक्षा सक्षमता का आधार  शिक्षा से पहचान बनाओ जग में ऊंचा नाम बनाओ  शिक्षक का करो सम्मान शिक्षक शिष्य का भगवान ।     संग अपने ज्ञान का दीपक हर पल रखता। शिक्षाओं से भटके हुओं का मार्गदर्शन करता।। शिक्षक एक वरदान देकर विद्यार्थियों को ज्ञान । विषय विशेष का दीप जलाता रहस्यों को सुलझाता ।। विषय विशेष का अद्भुत ज्ञान  अभ्यास  कसौटी परखता शिक्षक रचता नूतन आयाम ।। शिक्षक अमृत कलश अक्षय सम्पदा  जिसने जितना खोजा, रहस्य ज्ञान वो पाया।।  नींव सभ्यता की शिक्षक, पथ-प्रदर्शक      उजियारा वर्तमान समाज का दर्पण भविष्य का  शिक्षक पद सर्वोच्च, सर्वोपरि शिक्षक सदैव पूजनीय  शिक्षक सभ्य ,सुसंस्कृत समाज निर्माता शिक्षक स्थान सर्वोच्च,एवं सर्वोत्तम शिक्षक ज्ञान का दीपक लेकर चलता   मन में छिपे अंधकार को दूर भगाता भटके जो कोई शुभ संस्कारों के बीज डालकर अच्छे -बुरे की पहचान कराता  शिक्षक तराशता ज्ञान की कसौटी पर तब निखर कर सभ्यता की अनूठी मिसालें तैयार होती अंतरिक्ष में उड़ाने भरती अविष्कार

जीत का बिगुल

सदा-सर्वदा सृष्टि पर शाश्वत सत्य से जीवन चलता  परस्पर प्रेम के बीज डालकर अपनत्व की जो फसल उगाता धरा पर स्वर्ग बन जाता    मानव प्रकृति, उदार स्वभाव   दानव प्रवृत्ति ,राक्षस वृत्ति,पशु स्वभाव  पशु स्वतंत्रता, ‌‌‌‌‌हावी पशुता,मचाती उपद्रव  जंगल राज, पशुता मचाती हाहाकार,मानव संहार  सृष्टि प्रकृति का ताल-मेल, दैविय गुणों से रचता-बसता संसार , प्रकृति शाश्वत सत्य का आधार  जब -जब बढा क्रोध संग अहंकार  प्रकृति ने लिया प्रतिकार  देव अवतार मानव, वसुन्धरा पर करने को उपकार  धनुष बाण करके धारण, सुदर्शन चक्र धारी आते दिव्यता के करवाते दर्शन....  मानव जीत का बिगुल बजा  पशुता को सही राह दिखा  आत्मसम्मान जगा धरती पर हो  मनुष्य सम देवों का राज ऊंची कर आवाज  दैविय गुणों से ही है धरा पर फैलेगा सुख साम्राज्य ।।    

अच्छा लगता है

 उम्र की परतों ने मुझे बड़ा बना दिया  अभी कहां हुई हूं मैं बड़ी  बचपन का अल्हड़ पन  मौज मस्ती में रमता मन  आज भी अच्छा लगता है  सखियों संग लड़कपन आज भी लौट जाना चाहता है  जाने क्यों बचपन में मन  अभी भी जीता है मुझमें मेरा बचपन  मिलते-जुलते रहा करो सखियों तुमसे मिलकर लौट आता है मुझमें मेरा जीवन .... तुम्हारे- हमारे दिल की आपबीती एक जैसी  उम्र की ऐसी की तैसी...उम्र की लकीरें  खींचती हैं लक्ष्मण रेखायें....अनदेखा कर सब लकीरों को  हां बस एक खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं हम  मरने से पहले तिल-तिल मरना नहीं मंजूर मुझको  उम्र की दहलीज पर नये खूबसूरत  रंग सजाना चाहते हैं हम    उम्र की आखिरी सांस तक मुस्कुराना चाहते है हम  और सारे जहां के लिए मुस्कुराने की वजह बनना चाहते हैं हम ,बस सवयं के लिये स्वयं की शर्तों पर जीवन जीना चाहते हैं हम  ।।

हम सरल हैं सरल ही रहने दो ..

सत्यम शिवम सुन्दरम  सत्य पर मुखौटे लगाना  आपना अस्तित्व मिटाना जैसे है  हम सरल हैं सरल ही रहने दो  चालाकियों का झूठा मुखौटा पहन  अपनी वास्तविकता छिपा स्वयं को कुरूप नहीं बनाना  सच को झूठ  .. झूठ को सच बनाना हमें नहीं भाता  सच को सच और गलत को गलत कहने की अदा ही  हमने नियति से सीखी है...  चालें चल अभी तो चल जायेगा . लेकिन जब ऊपर  वाला अपनी चाल चलेगा तो  सब बेहाल  हो जायेगा .. सत्य में सरसता ,सत्य में सरलता  सत्य ही शाश्वत ,सत्य हो सकता है आहत  किन्तु नहीं होता कभी पराजित  सत्य में निहित अदृश्य दिव्यता  पशुता का उपद्रव ,करता सब अस्त-वयस्त  मचती हाहाकार मानवता का तिरस्कार  चक्रधारी अवतरित होता  धनुष बाण तीर निशाना  विष का अंत होता  अमृत बरसता सत्य अमर है अमर रहता  शाश्वत सत्य ही जीवन आधार  सत्य से बंधा रचा-बसा समस्त संसार ..

भारत माता की जय

    *भारत माता की जय * *मेरा देश महान * *भारत भूमि *की आन में  और शान में   ये महज शब्द नहीं   मेरे मन के भाव हैं  देश प्रेम के प्रति   दिल में सुलगतीआग है   देश प्रेम की आग जो   मुझे भीतर ही भीतर   सुलगाती है आत्मा रोती है जब मेरे देश की जनता धर्म जाति और राजनीति के आड़ में हिंसा फैलाती है मेरे हृदय की आग मुझमें धधकती है जब किशोरियों की अस्मिताएं लूटी जाती हैं मेरे हृदय की आग ज्वाला बनकर मुझे मुझमें ही जलाती है जब सरहद पर तैनात भारत का वीर सपूत भारत भूमि की आन में शहीद हो जाता है मेरे भीतर देश प्रेम की आग मुझे मेरे देश की शान में कुछ लिखने को कुछ कहने को और भारत माता के सम्मान में भारत माता की जय बोलने को प्रेरित करती है । मेरे भीतर की आग मुझे भारत की आन में और शान में एक सभ्य सुशिक्षित मनुष्य  बनने को प्रेरित करती है ।

भारत माता का यशगान तिरंगा

मातृभूमि की शान में तिरंगा जब लहराता है  गीत खुशी के गाता है  भारत माता के यशगान गुनगुनाता है   प्राकृतिक सम्पदाओं की गोद में  सुख-समृद्धि से हर्षाता है  *भारत माता की जय *  यशगान गाता है‌  भारत माता की शान तिरंगा  भारत माता का अभिमान तिरंगा  हिमालय सिर का ताज , गोद में अमृतजल गंगा वास  तरक्की का आगाज,  स्वतंत्रता की खुशियों का हमराज तिरंगा  सुख-समृद्धि का प्रतीक तिरंगा  बलिदानों का गर्व तिरंगा  संस्कृति का हर्ष तिरंगा  भारत माता की आन तिरंगा    स्वतंत्रता की पहचान तिरंगा  बलिदानों का इतिहास तिरंगा  स्वतंत्रता की पहचान तिरंगा  भारत माता का‌ अभिमान तिरंगा । सुख-समृद्धि का इतिहास तिरंगा ।। भारत माता की शान में तिरंगा  लहरा रहा है गीत खुशी के गा रहा है  चांद पर आशियाने बना रहा है  अंतरिक्ष में अपनी कामयाबी के शिखर पा रहा है ।।

कहानी

आकाश ने सुनाई अपनी कहानी  घिर आया मेघों का घेरा काले घने ‌‌  मेघों से छाया घोर अंधेरा लुप्त हुआ सवेरा  रौद्र रुप धारण किया मेघों ने फिर घर्षण हुआ  दामिनी जब चमकी भय से कितनों का दिल ‌‌‌‌‌दहला    फिर बरसा आकाश से पानी अंतहीन अश्रुओं का सैलाब‌  वसुन्धरा हुई पानी -पानी ,प्यासी थी मानों कब से  समा गई  स्वयं में, आकाश से बरसता जल अमृत  हरी-भरी समृद्ध हुई वसुन्धरा ओढ़ी हरियाली की ओढ़नी  जलाशयों में भरा पानी , वृक्षों की ऊंची शाखाएं  शीतल समीर का झोंका पत्ता -पत्ता बजाता ताली मन हर्षाता , वृक्षों की डालियों पर पड़ गई पींगे  झूला झूलन को सखियों का मन रीझे ‌‌ आओ हरियाली का उत्सव आया  खुशहाली का सावन‌ आया मौसम यह मनभावन आया  देख वसुन्धरा पर हरियाली आकाश ने सतरंगी इन्द्रधनुष सजाया , नील गगन में उमड़ -घुमड़ कर फिर मेघों का समूह बनाया ‌,बरस-बरस‌कर सावन में सुख-समृद्धि की हरियाली ‌‌‌‌‌लाया।  वसुन्धरा पर आ गया था हरियाली उत्सव  आकाश से बरसता जल अमृत ‌ मौसम वर्षा का था नील गगन में मेघों का राज था मेघों का समूह गगन में उमड़-घुमड़ कर रहा था विभिन्न आकृतियां बना-बना कर मानों अठखेलियां कर रहा था जी भर के

धरती और आकाश

  **धरती और आकाश ** ***आकाश ,और धरती का रिश्ता तो देखो कितना प्यारा है । ज्येष्ठ में जब धरती तप रही थी कराह रही थी ,सिसक रही थी तब धरती माँ के अश्रु रूपी जल कण आकाश में एकत्रित हो रहे थे।। 💐💐वर्षा ऋतु मैं.......... आकाश से बरस रहा था पानी लोग कहने लगे वर्षा हो रही है पर न जाने मुझे क्यों लगा आकाश धरती को तपता देख रो रहा है अपने शीतल जल रूपी अश्रुओं से धरती माँ का आँचल धो-धोकर भिगो रहा है धरती माँ को शीतलता प्रदान कर रहा है। धरती माँ भी प्रफुल्लित हो ,हरित श्रृंगार कर रही है वृक्षों को जड़ें सिंचित हो रही हैं। प्रसन्नता से प्रकृति हरियाली की चुनरिया ओढे लहलहा रही हैं । फल फूलों से लदे वृक्षों की लतायें रिम-झिम वर्षा के संग झूल रही हैं विभिन्न  आकृतियों वाले मेघ भी धरती पर अपना स्नेह लुटा रहे हैं। धरती और आकाश का स्नेह बहुत ही रोमांचित कर देने वाला

ऊंचाईयों की ओर बढ़ते कदम

निकला था सफर पर  ठहरा आशियाना में  व्यस्त हो गया जमाने में  महत्वाकांक्षाओं की ऊंचाइयां पाने में  सफर पर था व्यस्त हुआ किस्से गुनाने में  उलझा बंधनों में लगा शिकवे- शिकायतें सुलझाने में  जिन्दगी भर भटकता रहा जिन खुशियों को पाने में वह जीवन ही बीत गया ठोकरें खाने में , सफर पर था भूलकर,समय गंवाता रहा   आज को गंवाकर अनदेखे कल को सूकून पाने के लिए  सारे सफर उलझा रहा कल को सुलझाने में... सफर के हर पल का आनंद लो  निसंदेह आये हो लौट जाने के लिए  उतार-चढाव ज़िन्दगी का हिस्सा हैं ठोकरें जीवन की परीक्षाओं का किस्सा हैं  अनुभव से जीवन जीने का सीखो ढंग  जीवन में बहुतेरे हैं रंग तुम स्वयं के  जीवन के चित्रकार हो ,मनचाहा रंग  जीवन को आकार दो ,चलो आगे बढ़ो जीवन के सफर के हर पल को संवार लो  ऊंचा उठने को तैयार हो,संकल्पों की सामर्थ्य को  स्वीकार लो, बन प्रेरणा आने वाले समाज को  भी नया आयाम दो ,जीवन के सफर पर बेहतर संस्मरणों को बांध लो हौसलों का ऊंचा मुकाम दो,सफर को कलाओं की  सुनहरी किरणों की स्वर्णिम पहचान दो, यादगार अमिट प्रेरणास्पद उच्च व्यक्तित्व की सकारात्मक उड़ान दो गर्वानुभूति का पैगाम दो  सफर पर

वसुन्धरा और आकाश

 धरती हुयी पानी -पानी  ज्यों सुनाई अपनी कहानी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ शायरों की जुबानी  आकाश की आंख मिचौली  सूरज संग हंसी ठीठौली  मेघों की घिर आयी बड़ी टोली  सूरज और आकाश को ढक कर बोली  वसुन्धरा की तपिश कम करने आयी हूं  सूखी पड़ी धरा, प्रकृति और हमजौली  घने मेघों ने की गर्जना दामिनी का चमकना  फिर बरसा आसमान से झरना  पूर्ण करने धरती की सुख-समृद्धि का सपना  सावन की लगी झड़ी थी धरती पर हरियाली खूब सज रही थी वसुन्धरा और आकाश का रिश्ता  पल-पल देखता धरा को ,आकाश का फरिश्ता  ए मानव वसुन्धरा मां केआंचल पर कदम रख थोड़ाआहिस्ता  वसुन्धरा मां के आंचल पर तू खड़ा मां का उपकार बडा है‌  वसुन्धरा से तेरा रिश्ता अनन्त है जिससे तू जीवंत है  स्वयं पर धरती मां पर कर उपकार ‌,बसा सुख समृद्धि का संसार कर यथोचित उपकार ‌।

एकांत में थकान से वार्तालाप

 सुप्रभात 🙏🌹🙏  नव दिवस नव प्रभात  नव पल्लव ‌‌‌‌‌‌‌‌नवसृष्टि  मुरझाना अंत तो नहीं  रात्रि मन का विश्राम  मन साध कर एक नयी शुरुआत  एकांत में थकान से वार्तालाप  मन को मिलेगा विश्राम  सुलझेंगी उलझनों की गांठें  तनाव रहित होंगी दिन और रातें ‌‌ निश दिन देगा जो मन को विश्राम  सुधरेंगे जीवन के कई बिगड़े काम  जीवन हर पल देता एक नया आयाम  बुझे चिराग़ों को श्रद्धांजलि ‌‌‌‌‌‌‌‌देकर नव दीपकों का प्रकाश ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌रोशन कर क्योकि समाज में ना रहे ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अंधियारा  ।।   

वसुन्धरा

  वसुन्धरा** जिस धरती पर मैंने जन्म लिया , उस धरा पर मेरा छोटा सा घर मेरे सपनों से बड़ा ।। बड़े -बड़े अविष्कारों की साक्षी वसुन्धरा ओद्योगिक व्यवसायों से पनपती वसुन्धरा । पुकार रही है वसुन्धरा ,कराह रही है वसुन्धरा । देखो तुमने ये मेरा क्या हाल किया मेरा प्राकृतिक सौन्दर्य ही बिगाड़ दिया । हवाओं में तुमने ज़हर भरा में थर-थर कॉप रही हूँ वसुन्धरा अपने ही विनाश को तुमने मेरे दामन में फौलाद भरा तू भूल गया है ,ऐ मानव मैंने तुझे रहने को दी थी धरा । तू कर रहा है मेरे साथ जुल्म बड़ा मेरे सीने में दौड़ा -दौड़ा कर पहिया मेरा आँचल छलनी किया । मै हूँ तुम्हारी वसुन्धरा मेरा जीवन फिर से कर दो हरा -भरा उन्नत्ति के नाम पर धरा पर है प्रदूषण भरा जरा सम्भल कर ऐ मानव प्राकृतिक साधनों का तू कर उपयोग जरा तुमने ही मेरा धरती माता नाम धरा ये तुम्हारी ही माँ की आवाज है ,सुन तो जरा ।।।।।