नदिया का किनारा मन की शांति को सहारा
ए नदिया ले चल मुझे भी अपने बहाव संग
कहीं दूर मैं रह जाऊं इधर
मेरा मन चंचल निकल जाये कहीं दूर
मैं होकर भी ना रहूं, फिर भी रहूं यहीं पर
मुझे भी बना दे धारा बस तेरा हो इशारा
नित नूतन नयी नवेली बुझो कोई पहेली
बहते जल की तरह बढ़ते बस बढ़ते जाऊं
निर्मल, निरंतर अग्रसर फिर भी एक ठहराव
तरलता और निर्मलता का भाव
हरी-भरी वसुन्धरा पर्वतों की कंदरा
रुक ए मन रुक जरा मेघों का झुंड घिरा
मानों उतर रही हो कोई अप्सरा
धीमें से सुनहरी रंग-बिरंगी तितलियों का
झुंड कोमल पुष्पों से ले रहा हो पराग का
रस अमृत रस भरा ...
फसलों की बालियां वृक्षों की कतार
जल है तो जीवन हैं,वृक्षों में प्राण भरे
जल अमृत, जल पूजनीय है जल अमृत भण्डार
भरा जल का सदुपयोग करो जल ना होने से सूखे
में तड़फ कर मर जाओगे
जल की अधिकता प्रलयकारी सब जलमग्न कर जायेगी
जल ही जीवन , जल से तरलता , जीवन में निर्मलता
पवित्र , पूजनीय जल देव अवतार जल से समृद्ध समस्त संसार बड़ना और आगे की ओर बढ़ना लक्ष्य
पर्वतों को चीर कर अपनी राह बनाना
पाषाणों से टकराना फिर भी आगे बढ़ते जाना
जल से चलता सुंदर संसार ......जल मे अदृश्य दामिनी ,रूप ऐसा सरल निर्मल शीतल कामिनी .....
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