ऊपर उठना मेरा शौंक है. मुझे झुकना भी अच्छा लगता है, जहां मेरे झुकने से किसी का भला हो... अपने विचारों से मैं हमेशा ऊपर की ओर ही उठना चाहती हूँ.. ऊंचा उठने के लिये किसी वस्तु या संसाधन की आवश्यकता नहीं होती.. अनमोल वस्तुएं आपके जीवनयापन का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती हैं.. आप अधिक से अधिक सुविधाओं से भरपूर जीवन जी सकते हैं.. आपको कोई कष्ट नहीं होता... आप महाराजाओं सा जीवन जीते हैं... लेकिन मन में शायद फिर भी कोई कमी रहती है.. मन को ओर कुछ की चाह होती है। विचारों के प्रवाह को उपयोगी विचारों की तरफ लगाना होता है.. जहां लेने की नहीं देने की प्रक्रिया शुरू होती है.. जो आप देगें, उसी की ही वापिसी आपको मूल के रुप में होगी... तो फिर स्वयं आप क्या वापिस लेना चाहेगें । माना की एक गुफा है, द्वार का मुंह छोटा, और गुफा में अनमोल खजाना, अगर आपको वो खजाना चाहिए तो आप क्या करेंगे.. खजाना चाहिए तो झुक कर ही जाना पढेगा... झुकने में कोई बुराई नहीं... लेकिन जहां आत्मसम्मान की बात हो, वहां कभी नहीं झुकना चाहिए... तेज आंधियां चलती है, तूफान आता है तो...