धरती हुयी पानी -पानी
ज्यों सुनाई अपनी कहानी
शायरों की जुबानी
आकाश की आंख मिचौली
सूरज संग हंसी ठीठौली
मेघों की घिर आयी बड़ी टोली
सूरज और आकाश को ढक कर बोली
वसुन्धरा की तपिश कम करने आयी हूं
सूखी पड़ी धरा, प्रकृति और हमजौली
घने मेघों ने की गर्जना दामिनी का चमकना
फिर बरसा आसमान से झरना
पूर्ण करने धरती की सुख-समृद्धि का सपना
सावन की लगी झड़ी थी धरती पर हरियाली खूब सज रही थी वसुन्धरा और आकाश का रिश्ता
पल-पल देखता धरा को ,आकाश का फरिश्ता
ए मानव वसुन्धरा मां केआंचल पर कदम रख थोड़ाआहिस्ता
वसुन्धरा मां के आंचल पर तू खड़ा मां का उपकार बडा है
वसुन्धरा से तेरा रिश्ता अनन्त है जिससे तू जीवंत है
स्वयं पर धरती मां पर कर उपकार ,बसा सुख समृद्धि का संसार कर यथोचित उपकार ।
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