निकला था सफर पर
ठहरा आशियाना में
व्यस्त हो गया जमाने में
महत्वाकांक्षाओं की ऊंचाइयां पाने में
सफर पर था व्यस्त हुआ किस्से गुनाने में
उलझा बंधनों में लगा शिकवे- शिकायतें सुलझाने में
जिन्दगी भर भटकता रहा जिन खुशियों को पाने में
वह जीवन ही बीत गया ठोकरें खाने में ,
सफर पर था भूलकर,समय गंवाता रहा
आज को गंवाकर अनदेखे कल को सूकून पाने के लिए
सारे सफर उलझा रहा कल को सुलझाने में...
सफर के हर पल का आनंद लो
निसंदेह आये हो लौट जाने के लिए
उतार-चढाव ज़िन्दगी का हिस्सा हैं
ठोकरें जीवन की परीक्षाओं का किस्सा हैं
अनुभव से जीवन जीने का सीखो ढंग
जीवन में बहुतेरे हैं रंग तुम स्वयं के
जीवन के चित्रकार हो ,मनचाहा रंग
जीवन को आकार दो ,चलो आगे बढ़ो
जीवन के सफर के हर पल को संवार लो
ऊंचा उठने को तैयार हो,संकल्पों की सामर्थ्य को
स्वीकार लो, बन प्रेरणा आने वाले समाज को
भी नया आयाम दो ,जीवन के सफर पर
बेहतर संस्मरणों को बांध लो
हौसलों का ऊंचा मुकाम दो,सफर को कलाओं की
सुनहरी किरणों की स्वर्णिम पहचान दो,
यादगार अमिट प्रेरणास्पद उच्च व्यक्तित्व की सकारात्मक
उड़ान दो गर्वानुभूति का पैगाम दो
सफर पर हो परिस्थिति कैसी भी
जीने की कला का आधार दो
विवेक बुद्धि कौशल से जीवन को सुन्दर आकार दो
आखिर तुम सफर के चित्रकार हो
चलो जीवन के केनवास को सुन्दर सरल स्वर्णिम आकार दो ......
सीख दे जाये जो जीवन के
किसी भी मोड़ पर गिर कर
सम्भलना सचेत रहना सिखा दे
गुरुर का अंत कर गुणों से पहचान
करा दे गुरु वही, जो अहमं का अंत कर
आत्मा को सच्ची राह दिखा दे
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