सदा-सर्वदा सृष्टि पर शाश्वत सत्य से जीवन चलता
परस्पर प्रेम के बीज डालकर अपनत्व की जो फसल उगाता धरा पर स्वर्ग बन जाता
मानव प्रकृति, उदार स्वभाव
दानव प्रवृत्ति ,राक्षस वृत्ति,पशु स्वभाव
पशु स्वतंत्रता, हावी पशुता,मचाती उपद्रव
जंगल राज, पशुता मचाती हाहाकार,मानव संहार
सृष्टि प्रकृति का ताल-मेल, दैविय गुणों से
रचता-बसता संसार , प्रकृति शाश्वत सत्य का आधार
जब -जब बढा क्रोध संग अहंकार
प्रकृति ने लिया प्रतिकार
देव अवतार मानव, वसुन्धरा पर करने को उपकार
धनुष बाण करके धारण, सुदर्शन चक्र धारी आते
दिव्यता के करवाते दर्शन....
मानव जीत का बिगुल बजा
पशुता को सही राह दिखा
आत्मसम्मान जगा धरती पर हो
मनुष्य सम देवों का राज ऊंची कर आवाज
दैविय गुणों से ही है धरा पर फैलेगा सुख साम्राज्य ।।
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