ठहरी थी क्योंकि खाई गहरी थी
रुकी थी ..पर थमी नहीं
मन में एक आस थी
मुश्किल था पर नामुमकिन नहीं
ठहराव से भराव
तक का सफर
गहरा था इस कदर
पीड़ा का दर्द था भयंकर
जाने कहां से हौसलों को उड़ान
मिलने लगी ठोकरें खायी इतनी
कि हर- पल सम्भल कर चलने लगी
भीतर एक गहराई स्थितरता के सद्भाव
ने जन्म ले लिया सरलता के भाव
से आत्मा की ओजस्विता बढ़ने लगी
बहाव के संग ठहराव भी आवश्यक लगा
जीवन की उपयोगिता ज्ञात होने लगी
परहित धर्म अपना कर स्वभाव
में सरलता पनपने लगी सभ्य संस्कारों का आधार
जीवन में मधुरता दया प्रेम रस श्रृंगार
जीवन का आधार बन गया
सभ्यता जीवन का श्रृंगार बन गया
आत्मा का शुभ विचार बन गया ।
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