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अपने मालिक स्वयं बने

अपने मालिक स्वयं बने, स्वयं को प्रसन्न रखना, हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है..किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी ना होने दें। 

परिस्थितियां तो आयेंगी - जायेंगी, हमें अपनी मन की स्थिति को मजबूत बनाना है कि वो किसी भी परिस्थिति में डगमगायें नहीं। 

अपने मालिक स्वयं बने,क्यों, कहाँ, किसलिए, इसने - उसने, ऐसे-वैसे से ऊपर उठिये... 

किसी ने क्या कहा, उसने ऐसा क्यो कहा, वो ऐसा क्यों करते हैं... 

कोई क्या करता है, क्यों करता है,हमें इससे ऊपर उठना है.. 

कोई कुछ भी करता है, हमें इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. वो करने वाले के कर्म... वो अपने कर्म से अपना भाग्य लिख रहा है। 

हम क्यों किसी के कर्म के बारे मे सोच-सोचकर अपना आज खराब करें... 

सोचता तो हर पल कोई ना कोई कुछ ना कुछ रहता ही है ....फिर क्यों ना अपनी सोच  को सही सोच की तरफ मोड़ें सामने ऊंचे पहाड़ या गहरी खाई आ जाये तो क्या आप रुक जायेगें .... आप ही को बदलना पढेगा अपनी सोच को अपनी राहों को ... नहीं बदलोगे तो जिन्दगी भर रोते रहो ...या फिर बदल लो अपने रास्तों को ..और बढ जाओ आगे की ओर... 

 **** जब-जब हमारी गाङी गलत मोङो की तरफ मुङने लगे....तुरन्त अपनी सोच के स्टेयरिंग को सही.दिशा की ओर मोङ  दीजिए....

चाइस हमारी है.. हम कौन सी राह चुनते हैं.....।

सुन्दरता तो मन की ही होती है ,तन का क्या समय के साथ  परिवर्तनशील है ..  मन सुन्दर हो तो वो सुन्दर विचारों को जन्म देता है ..जिससे समाज को सकारात्मक संदेश मिलते हैं ।

  




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