निसर्ग के लावण्य पर, व्योम की मंत्रमुग्धता श्रृंगार रस से पूरित ,अम्बर और धरा दिवाकर की रश्मियां और तारामंडल की प्रभा धरा के श्रृंगार में समृद्ध मंजरी सहज चारूता प्रेम जगत की रीत है, प्रेम मधुर संगीत है सात सुरों के राग पर प्रेम गाता गीत है प्रेम के अमृत कलश से सृष्टि का निर्माण हुआ श्रृंगार के दिव्य रस से प्रकृति ने अद्भूत रुप धरा भाव भीतर जगत में प्रेम का अमृत भरा प्रेम से सृष्टि रची है, प्रेम से जग चल रहा प्रेम बिन कल्पना ना,सृष्टि के संचार की प्रेम ने हमको रचा है, प्रेम में हैं सब यहां प्रेम की हम सब हैं मूरत प्रेम में हम सब पले प्रेम के व्यवहार से, जगत रोशन हो रहा प्रेम के सागर में गागर भर-भर जगत है चल रहा प्रेम के रुप अनेक,प्रेम में श्रृंगार का महत्व है सबसे बड़ा - श्रृंगार ही सौन्दर्य है - सौन्दर्य पर हर कोई फिदा - - नयन कमल, मचलती झील, अधर गुलाब अमृत रस बरसे उलझती जुल्फें, मानों काली घटायें, पतली करघनी मानों विचरती हों अप्सराएँ... उफ्फ यह अदायें दिल को रिझायें प्रेम का ना अंत है प्रेम तो अन...
भारत वर्ष की विजय पताका सभ्यता संस्कृति. की अद्भुत गाथा । भारतवर्ष देश हमारा ... भा से भाता र से रमणीय त से तन्मय हो जाता, जब-जब भारत के गुणगान मैं गाता । देश हमारा नाम है भारत,यहां बसती है उच्च संस्कृति की विरासत । वेद,उपनिषद,सांख्यशास्त्र, अर्थशास्त्र के विद्वान। ज्ञाता । देश मेरे भारत का है दिव्यता से प्राचीनतम नाता । हिन्दुस्तान देश हमारा सोने की चिङिया कहलाता। भा से भव्य,र से रमणीय त से तन्मय भारत का। स्वर्णिम इतिहास बताता । सरल स्वभाव मीठी वाणी .आध्यात्मिकता के गूंजते शंखनाद यहां ,अनेकता में एकता का प्रतीक भारत मेरा देश विश्व विधाता । विभिन्न रंगों के मोती हैं,फिर भी माला अपनी एक है । मेरे देश का अद्भुत वर्णन ,मेरी भारत माँ का मस्तक हिमालय के ताज सुशोभित । सरिताओं में बहता अमृत यहाँ,,जड़ी -बूटियों संजिवनियों का आलय। प्रकृति के अद्भुत श्रृंगार से सुशोभित ...
मोहब्बत ही केन्द्र बिन्दु चलायमान यथार्थ सिन्धु धुरी मोहब्बत पर बढ रहा जग सारा मध्य ह्रदय अथाह क्षीर मोहब्बत ना जाने क्यों मोहब्बत का प्यासा फिर रहा जग सारा अव्यक्त दिल में मोहब्बत अनभिज्ञ भटक रहा जग सारा मोहब्बत है सबकी प्यास फिर क्यों है दिल में नफरतों की आग जाने किस कशमकश में चल रहा है जग सारा मोहब्बत ही जीवन की सबकी खुराक संसार मोहब्बत,आधार मोहब्बत मोहब्बत की कश्ति में सब हो सवार मोहब्बत ही जीवन मोहब्बत ही सबका अरमान मोहब्बत ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु भव्य भाव क्षीर सिंधु,प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु मध्यवर्ती हिय भीतर एक जलजला, प्राणी हिय प्रेम अमृत कलश भरा । मधुर मिलन परिकल्पना, भावों प्रचंड हिय द्वंद आत्म सागर भर-भर गागर,हिय अद्भुत संकल्पना संकल्पना प्रचंड हिय खण्ड -खण्ड मधुर मिलन परिकल्पना,मन साजे नितनयीअल्पना प्रेम ही सर्वस्व केन्द्र बिन्दु
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