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अभ्युत्थानम भारतम्
















                                       ( हिन्दी) 




ज्ञानदेवी माँ शारदा इत्यस्याः आशीर्वादेन, बुद्धि-  प्रज्ञा-दात्री भगवान् गणेशस्य च प्रेरणा सह   समाजाय शुभ-सकारात्मक-विचारान् समर्पयामि...  ये समाजस्य मार्गदर्शने सहायकाः भविष्यन्ति" 


"अभ्युत्थानं सकारात्मक विचार वर्धते सद्विचार समर्पितुं" 



भारत भूमि का इतिहास सत्य सनातन एवं सर्वश्रेष्ठ है, वेद, उपनिषद, पुराण मनुस्मृति रामायण, महाभारत आदि अनेको ग्रंथ भारत की उच्च संस्कृति की धरोहर हैं.... भारत भूमि की विषेशता.... उच्चत्तम संस्कार श्रेष्ठतम व्यवहार है। अर्थव्यवस्था का विकास एवं प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान है। आचार्य कौटिल्य भारत के महान अर्थशास्त्री एवं कौटिल्य अर्थशास्त्र पुस्तक के महान विद्वान थे। 


  "मेरी दोस्ती आपको कभी निराश नहीं होने देगी" 

 दोस्ती करोगे मुझसे .... चलो कर ही लो... कभी घाटा नहीं होगा... फायदे में ही रहोगे.... जब कभी मन उदास हो, हताश हो... निराश हो....चले आना मेरे पास... मैं हल दूंगी ...  उदास मन में उम्मीद की नयी किरण जगा दूंगी ..... सब दुविधाओं का हल है मेरे पास....साकारात्मक विचारों का अद्भुत भंडार है....  जीवन के अनुभवों के आधार पर... मुझमें जीवन जीने की कला की अलौकिक सीखें हैं.... जिसमें परमात्मा की दिव्यता का प्रकाश है... मैं जीतना सिखाती हूं.... आगे की बढने के रहस्य बताती हूँ..... 


हां मैं एक अचछी किताब आपकी हमसफर  बनने के काबिल हूं.... मैं वादा करती हूं.... मैनै  दोस्ती का हाथ बढाया है.... मेरी तरफ से दोस्ती पक्की है.... सोचना आपको है.... क्या मुझ किताब से दोस्ती करोगे...... 


  दोस्ती को कभी हल्के में मत लेना...... दोस्ती हर रिश्ते से ऊपर होती है... दोस्ती फायदे या नुकसान के लिए नहीं होती.... दोस्ती दो दिलों की आवाज... आत्मा का आत्मा से सम्बंध होती है। दोस्ती फरिश्तों की नियामत होती है। 


 अपने हिस्से की जमीन अपने हिस्से का आसमान स्वयं बनाना पडता है....  लक्ष्य पर पैनी नजर..मुश्किलों की डगर,  दुनियां रहे बेखबर.. मिलते ही लक्ष्य चला दो तीर..  निश्चित ही मिलेगी जीत... 

आत्मबल को जगाना पड़ता है... स्वयं का स्वयं पर विश्वास जरूरी है स्वयं के ही हाथों लिखनी है अपनी तक़दीर सुनहरी है। 


*विरासत की संपत्ति*

     मेरे देश की संस्कृति अदभुत ,अतुलनीय,भारत भूमि के आभा मंडल मे अद्वितीय संस्कारों रूपी रत्नोंकी भरमार है ,बाल्मीकि ,कालिदास सूरदास ,एकलव्य ,ध्रुव ,कबीर आदि इसके उदाहरण हैं। मेरे देश की संस्कृति के तो क्या कहने यहां विरासत में उच्च संस्कारों वाली शिक्षा का धन दिया जाता है यह धन अमूल्य है. और यह कभी नष्ट नहीं होता ।  भारतीयों के  हौसलें  तूफानों और आंधियों मेंऔर बुलंद हो जाते हैं उच्च विचारों की संपत्ति से चहरे पर स्वाभिमान ,और आत्मविश्वास की चमक आ जाती है। नहीं सीखा हमनें विचारों में जहर घोलना हम हिन्दुस्तानी आतंक की जहरीली खेती नहीं करते ,परंतु जो जो आंतक फैलाते हैं उन्हें जड़ से उखाड़ फैंकते हैं ।हम उस देश के वासी हैं जहां नदियों में अमृत बहता है , वृक्षों और,पर्वत भी पूजे जाते है यज्ञ की अग्नि को साक्षी मां जब -जब पूर्ण श्रद्धा से आहुतियां डाल स्वाहा किया जाता है तब -तब बुराई का अंत निश्चित ही नहीं सुनिश्चित हो जाता है।


  (1)    प्राकथान---

  आगे बढने की जिद्द हो... कुछ बेहतर कर दिखाने का जूनून हो तो... रास्ते मंजिल खुद ब खुद ढूंढ लेते हैं... भला नदिया के बहते पानी को कौन रोक पाया है.... अगर बांध भी बना दिया जाये तो, वो विद्युत  पैदा करने लगता  है... यानि आप में काबिलियत है, और आप प्रयास करते हैं तो निसंदेह सफलता जरूर मिलेगी। 

यानि आपके अंदर काबिलियत है, कुछ कर दिखाने का जूनून हो तो.. आपका हूनर बोलेगा.... 

बचपन से मुझे प्रकृति का सामिप्य मिला... जन्म से लेकर मेरी शिक्षा पहाड़ों की रानी मसूरी हुई... ऊंची-ऊंची पर्वत शिखाएं. हिमालय की गोद में बसा यह बहुत ही रमणीय है... शीतल, स्वच्छ, शुद्ध हवा तन और मन दोनों को आनन्दित कर जाती है।


(2)   सफर की तैयारी 

 स्कूली शिक्षा के दौरान, महान लेखकों कवियों की जीवनी उनकी रचनाएं पड़ते समय मन में भाव उठते.... यूं तो छोटा मुंह बड़ी बात होगी ... मैं भी कभी कुछ ऐसा लिखूं.दिल कहता.. 

मन के भाव निरंतर मुझे प्रेरित करते... लिखने को.... 

मां शारदे की कृपा से कई प्रयास किये... यदाकदा जब मौका मिलता लिखने को प्रयासरत रहती सर्वप्रथम मैंने लोकल अखबार के लिए एक लेख लिखा जिसे सराहना मिली... फिर तो मानों विचारों को पंख लग गये... 

  मेरे लिखने के शौंक को देखते हुए... मेरे मित्र द्वारा इंटरनेट पर ब्लाग बना दिया गया... अब तो जब मन में भाव आते बस लिखना... लिखना और लिखना... आज मेरे ब्लाग पर 500 से अधिक कविताएं और कहानियां हैं। 

आश्चर्य तो तब हुआ जब प्राचीडिचिल द्वारा Best blogger award मिला... 

मैने दस से ऊपर साझा संकलन में मेरे द्वारा लिखित रचनाएं प्रकाशित हैं ... 

मेरी दो एकल किताबें प्रकाशित.. (1)नाम "ऋषिकेश की विरासत"  (2) "साकारात्मक विचारों की सम्पत्ति". 


   (3) "देवों की भूमि ऋषिकेश"

सौभाग्य से विवाह उपरांत ऋषिकेश की पावन धरती मिली... पहाड़ों ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा.. हिमालय की तलहटी में मुझे पुनः वास मिला... 

पतित पावनी मां गंगा की अमृतमयी जलधारा... नित मां गंगा के दर्शनों से लाभान्वित होने का सुअवसर... निसंदेह सोने पर सुहागा जैसा हुआ...मंदिरों में गूंजते शंखनाद... महात्माओं के मुख से सुनते प्रवचन 

 *ऋषिकेश* यह वास्तव में देवों की धरती है गौमुख से प्रवाहित गंगोत्री जिसका धाम ,अमृतमयी निर्मल गँगा माता को मेरा शत-शत प्रणाम, देवों की भूमि है,अमृतमयी गँगा की अमृत धारा है * ये जो शहर हमारा है "ऋषिकेश इसका बड़ा ही रमणीय नज़ारा है ,हिमालय की पहाड़ियों का रक्षा कवच है ,*नीलकण्ठ महादेव का वास है बद्रीनाथ, केदारनाथ,का आशीर्वाद है,*लक्ष्मण झूला का भी प्रमाण है। मन्दिरों में गूँजते शंखनाद हैं । महात्माओं के मुख से सुनते सत्संग का प्रसाद है ।निर्मल,शान्त,अध्यात्म से परिपूर्ण सत्संगी वायुमंडल सारा है वास्तव में प्रकृति और परमात्मा ने इसे खूब सवांरा  है अद्भुत अतुलनीय ,स्वर्गमयी ये ऋषिकेश शहर हमारा है। 

    

  (4)  *भूमिका*

 जीवन में बहुत उठापटक रही... 

तुमसे नहीं होगा.... 

तुम्हारे बस का कुछ नहीं.... 

जब आपको यह वाक्य सुनने को मिलते हैं .... आत्मा में चोट लगती... क्योंकि भगवान ने सबको बहुत कुछ दिया है, माना सब एक से नहीं... परन्तु हर किसी के अंदर कुछ ना कुछ विशेषता अवश्य होती है। मेरे पास डिग्रियों का भणडार नहीं... लेकिन जीवन के हर पहलू से बहुत कुछ सीखा है। जरुरी नहीं हम जैसा चाह रहे हैं वैसा ही हमें मिले.. कभी - कभी जो हमें मिलता है, वो वैसा नहीं होता जैसा हम चाहते हैं, लेकिन उससे बेहतर होता है जो हम चाह रहे होते हैं... 

मैं तो यही कहूगी निकल पड़ो मंजिल की तलाश में,, भटकोगे, अटकोगे.. पर निराश मत होना... अपनी मंजिल अपने जूनून के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयत्न करते रहना... छोटी सी भी  जीत पर भी जश्न मनाना... आपका आत्मविश्वास ही आपकी ताकत बन आपको एक दिन आपकी मंजिल तक पहुंचा देगा। 

मुस्कराना पड़ता है.. हम सिर्फ अपना दुखड़ा लेकर रो भी तो नहीं सकते... कोई नहीं रोता किसी के साथ बस दो पल की हमदर्दी.. फिर कौन किसका.... 

हमदर्दी की उम्मीद बिल्कुल नहीं... जब हमदर्दी चाही लोग बेचारा.. लाचार कह चलते बने... 

बेचारा - - - शब्द इस शब्द से बहुत चिढ होती है... 

परमात्मा की कृपा रही... यूं तो परमात्मा की कृपा सब पर रहती है.. पर शायद मैने वक्त रहते मन की बात मान ली ... 

स्वयं में ही सामर्थ्य है स्वयं को समझाने की.. स्वयं को सम्भालने की... मन की प्रेरणा ने मेरा आत्मविश्वास बढाया... 


    (5) प्रेरणा 

बचपन से मन में भाव थे, कुछ अच्छा करना है,इस दुनियाँ में रहते हुये कुछ ऐसा काम करना है, जिससे लोग मुझे मेरे इस दुनियां से चले जाने के बाद भी याद करें... 

प्रकृति ने मुझे सदा से प्रेरित किया है... 

वृक्षों ने मुझमें सदा कुछ ना  देते रहने के भाव जगाये.... 

नदिया का बहता जल  सदा आगे बढते रहने की प्रेरणा देता रहता है... निस्वार्थ सेवा करने की प्रेरणा देता रहा ... नदिया का जल सब कुछ बहा ले जाता है संग अपने और किनारे लगा देता है। बिल्कुल माता-पिता की तरह मानों सारी गलतियां माफ कर आगे की ओर बढते रहने की सीख देता रहता है। 


(6). साहित्य 

  मन में सदा से भाव रहे हैं... कुछ अच्छा करना है..समाज को कुछ अच्छा देना है.. इस दुनियां में आना और जाना प्रकृति का नियम है.. कल मैं रहूं या नहीं .. तो कोई बात नहीं, मेरे बाद मेरी, कविताओं कहानियों लेखन के माध्यम से मैं जानी जाऊं..  मेरा लिखा एक भी विचार अगर किसी के मन मस्तिष्क में अपना साकारात्मक प्रभाव डालने में सक्षम होता है तो मेरा लिखा सफल है। 

 

   साहित्य...यानि सा+ हित.. यानि जो  सबके हित में हो... 

"साहित्य एक फलदार वृक्ष के सामान है ।जिसका लाभ आने वाली पीढ़ी को मिलता है"साहित्य वो पौधा है ,जिसके बीज़ किसीकवि, लेखक के मन मस्तिक्ष में कविता,कहानी, लेख, निबन्ध ,दोहे,इत्यादि के रूप मे पनपते हैं । जिसे कवि, लेखक सुन्दर शब्दों, की माला में पिरोकर कुछ ,मनोरंजक, प्रेरणादायक सूत्रो मेंएकत्र कर समाज के हित में समर्पित करता है 

एक अच्छा साहित्य वही है, जो सभ्य सुन्दर समाज की नींव रखने में सहायक हो ।

अगर आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं ,तो कुछ अच्छे विचार भी समाज को समर्पित कर सकते हैं 


(7) मेरा मीत ...... 

मैने देखा है.... यकीन है मैने देखा है...... मेरे मीत को.... वृक्षों की ओट में एक आहट... पक्षियों चहकने की मीठी आवाज...... समीर संग गुनगुनाने  की आवाज....मैं वहां से कभी निराश होकर नहीं लौटी.... मन सदा आनन्दित होता है..... कल-कल करते नदिया का जल घंटों  किनारे पर बैठ जो सुख मिलता है..... वो अकथनीय है। 

मुझे प्रकृति के सानिध्य में हमेशा मित्रता के भाव  मिले .... निशब्द शब्दों की सुनहरी भाषा है प्रकृति.... प्रकृति निस्वार्थ भाव से बस देती है.... सर्वप्रथम जीने के लिये शुद्ध हवा, क्षुधापूर्ति के फल, अन्न प्यास बुझाने के लिए जल अमृत... मेरे लिए प्रकृति से प्यारा और सच्चा मित्र और कोई नहीं..... निशब्द रहकर भी बहुत कुछ कह जाती है प्रकृति....

 परमात्मा द्वारा बनायी इस सृष्टि में प्राणीयों के लिए प्रकृत्ति से बेहतरीन कुछ भी नहीं.... ये वृक्ष,फल,फूल नदियाँ, झरने, पहाड़ इत्यादि.....सृष्टि की अनमोल संपदा हैं.... प्राणियों की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं...... अतः प्रकृति मनुष्यों की सबसे बड़ी सहयोगी एवं मित्र है.... 

मुझे प्रकृति का सामिप्य बहुत ही प्यारा लगता है.... लगता है मानों प्रकृति के रुप में परमात्मा का आशीर्वाद मिल रहा हो.... लगता है वो दुआओं से हमारी झोली भर रहा हो। वो मौन रहकर भी बहुत कुछ कह रहा हो। 

 वायुमंडल की तरंगों में रचता-बसता है संगीत
तभी तो वाद्य यंत्रों की ध्वनि से बजता है संगीत
सरगम के सुरों से बन कर कोई गीत ,गुनगुनाता है
जब कोई मीत तब सफ़र का साथी बन जाता है संगीत
होठों पर गीत ,प्रकृति से प्रीतक कभी ध्यान से सुनना वायु में वीणा के तारों की सुमधुर झंकार होती है,वृक्षों की डालियों पर महफ़िल सजती है पक्षियों की अंत्राक्षी होती है, कव्वाली होती है ,मैंने सुना है कोयल की मीठी बोली तो मन ही मोह लेती है जब सावन की झडी लगती है वर्षा की बूंदों से भी संगीत बजता है
आसमां में जब बादल घुमड़ता है तब आसमां भी रोता है धरती को तपता देख उसे अपने अश्रुओं से ठंडक देता.... तब मेघ मल्हार का राग बजता है धरती तब समृद्ध होती है वर्षा के जल से धरती का अभिषेक आसमां करता है हरी घास के कालीन पर विहार होता है। प्रकृति की सुंदरता परहर कोई मोहित होता है वृक्षों की डालियां भी समीर के रिदम पर नृत्य करती हैं। 
वृक्षों से टकराकर वायु विहार करते हुए जब सांय-,सांय की आवाज करती है तब प्रकृति भी गाती है गुनगुनाती है। वायु से जो ध्वनि संगीत के रूप में निकलती है प्रकृति को आनंदित करती है ,प्रफुल्लित कर जाती है ।






(8)  


अनोखा प्यार *

    *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *

    
     यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।
   मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था ।
जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ......
क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।
  वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।
 अरे विशिष्ट अपनी आंखो से देख, अपने चाचा की बनाई बातों की झुठी पट्टी हटा ,गांधारी मत बन आंखें खोल और सच को पहचानने कि कोशिश कर....

   विशिष्ट अपने मित्र वैभव से कहने लगा ,नहीं वैभव मैं आज जो कुछ भी हूं अपने हुनर और प्रयासों के कारण मेरे पिता का मुझे कोई सहयोग नहीं है तू रहने मेरे पिता की तारीफ करना छोड़ दे ।

  मेरे चाचा भी कहते हैं कि मेरा पिता बहुत कठोर है और पत्थर का कलेजा है मेरे पिता का
  मेरे चाचा के साथ भी मेरे पिता ने यही किया था मेरे चाचा ने मुझे बताया है मेरे चाचा मेरे पिता अपने बड़े भाई को पिता समान मानते थे ,और मेरा पिता पत्थर का कलेजा है उसका ,मेरे चाचा को भी घर से बेघर कर थोड़े से पैसे देकर घर से अलग कर दिया था मेरे पिता ने कहा था जा अपना काम खुद कर कमा खा जो भी कर मेरा चाचा बताता है इतने थोड़े पैसों में क्या होता है ,बस मेरे चाचा की तो हिम्मत थी और मेहनत जो आज मेरे चाचा इतने बड़े व्यपारी हैं ।

  वैभव वाह विशिष्ट वाह तू और तेरा चाचा तो बहुत बड़े आदमी बन गए हो ,पैदा होते ही तुम दोनो अपना काम खुद करना शुरू कर दिया था तुम तो भगवान हो तुम महान हो बाकी सब बैकार........

 इतने में विशिष्ट की चाची आ गई उसने सबको शांत करते हुए कहा दोनो चुप हो जाओ ,विशिष्ट तुम्हारा मित्र वैभव जो कह रहा है सही कह रहा है ।
तुम्हारे पिताजी चाहते थे कि उनका भाई यानी चाचा अपने बल भूते पर कुछ करे आगे बड़े इसलिए तुम्हारे पिताजी ने अपने छोटे भाई को एक मौका दिया आगे बढ़ने का तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लिए और तुम्हारे चाचा के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं तुम आजमा के देख लो ।
  उन्होंने मुझे सब बताया है ,बस तुम्हारे पापा का तरीका थोड़ा अलग है ,उन्हें अपना प्यार जताना नहीं आया उन्हें अपनापन समझाना नहीं आया ।
 आज तुम बड़े हो गए हो समझदार हो ,मैंने तुम्हे जो समझाया वो सच है ,अब तुम्हारी मर्जी ....आगे तुम खुद समझदार हो। 

विशिष्ट बगीचे में रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गया ,दिमाग में विचारों की कश्मश थी ...
जीवन का बीता एक-एक लम्हा जो विशिष्ट का उसका पापा के साथ बीता था आंखो के आगे घूमने लगा ..... आंखो से अश्रुओं की धारा बह रही थी
उठकर गाड़ी में जाकर बैठ गया गाड़ी जाकर पापा के घर के आगे रोकी , पापा थोड़े अस्वस्थ थे आराम कुर्सी पर बैठे थे , विशिष्ट पापा के पास जाकर बैठा शब्द निशब्द थे ,पापा बैठे थे पापा के घुटनों पर सिर रखकर आज विशिष्ट ने अपना दिल हल्का किया
पापा ने भी बेटी के सिर पर हाथ फेरा और खा बेटा खुश रहो .... विशिष्ट पापा मुझे माफ कर दो मैं आज जो भी हूं आपकी वजह से .....
पापा ,नहीं बेटा मैंने तो तुम्हारे हुनर को पहचानने में तुम्हारी मदद की ,तुम्हारे प्रयासों के बल पर ही आज तुम जो हो वो सब कुछ हो ।
 आज शायद दिन  ब हुत अच्छा था छोटा भाई भी आ गया था , अपने बड़े भाई के प्रोत्साहन और और जीवन में आगे बड़ने का श्रेय अपने छोटे भाई को दिया ।

* कई बार स्थितियां जो होती हैं उन्हें ही सच मान लेना ठीक नहीं  होता उनके आगे जो छिलन रूपी परत का सच होता है ,उसे हटाकर देखना चाहिए असली फल तभी ंनजर आता है   *




(9) 

 परिक्षायें किसकी ..... बेटी की या मां की ?

इतने दिनों से मैं तेरी परिक्षाओं के कारण घर में कैद हूं कई जरुरी काम रुके हुए हैं मेरे ......
बेटी अपनी मां से....मां आप बताओ परीक्षायें मेरी थी या आपकी .......
मां बेटी से ,माना की परीक्षाएं तुम्हारी थी , किन्तु मेरी भी परीक्षाएं ही थी ।
बेटी ,वो कैसे ?
मां बेटी से ,अच्छा बेटा जी ,परीक्षाओं के समय तुम्हें सब कुछ एक जगह बैठे बिठाए कौन देता था ,थोड़ी भी देर मैं ‌इधर उधर जाती तो तुम मुझे पुकारने लगती । तुम्हारा पूरा ध्यान तुम्हारी पढ़ाई पर हो इसलिए मैं यही रही तुम्हारी सेवा में हाजिर ।
बेटी ,अपनी मां से ओ मां तुम कितनी अच्छी हो .....
मां अच्छा चल अब ज्यादा मक्खन ना लगा । पहले मैं बाज़ार जाऊंगी ,फिर मीना मौसी के यहां कब से नहीं आती उससे मिलने हम ही तो हैं उसके अपने .....
बेटी मां से ,बेचारी मीना मौसी कितने अच्छे परिवार में की थी उनके मां बापू ने उनकी शादी ,‌पर शादी जो आप लोगो के लिए सब कुछ है ,आज मीना मौसी ,कल किसी और के साथ भी कुछ भी हो सकता है ,इससे अच्छा तो अगर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर कोई काम करने देते यानि वो कोई अपना काम या सर्विस कर रही होती तो उन्हें इस तरह अकेलेपन और मोहताजगी की जिंदगी ना झेलनी पड़ती ।
मां निशब्द थी मानों आंखों ही आंखों में कह गयी थी जी लेना बेटी तू अपनी मन मर्जी से  ....तुझे कोई नहीं रोकेगा..... जिससे कल तुझे किसी का मोहताज ना होना पड़े.... बेटी तुम अपनी जिंदगी के फैंसले स्वतंत्रता से लेना सीखना... 
  







( 10)

 (लेखनी भाव सूचक)

"लेखनी"अक्सर यही कहा जाता है ,की लेखनी लिखती है
जी हां अवश्य लेखनी का काम लिखना ही है ।

या यूं कहिए लेखनी एक साधन एवम् हथियार की भांति अपना काम करती है।
लेखनी सिर्फ लिखती ही नहीं ,लेखनी बोलती है ,लेखनी कहती है ,लेखनी अंतर्मन में छुपे भावों को शब्दों के रूप में पिरोकर कविता,कहानी,लेख के रूप में परोस्ती है।
समाजिक परिस्थितियों से प्रभावित दिल के उद्गारों के प्रति सम भावना लिए लेखक की लेखनी -- वीर रस लिखकर यलगार करती है,लेखनी प्रेरित करती है देश प्रति सम्मान की भावना जो प्रति जन-जन में छिपी  देश प्रेम की भावनाओं को जागृत कर देश के शहीदों के प्रति सम्मान और गर्व का एहसास कराती है ।
वात्सल्य रस, प्रेम रस,हास्य रस,वीर रस ,लेखनी में कई रसों के रसास्वादन का रस या भाव होते हैं ।

महापुरुषों के जीवन परिचय को उनके साहसिक एवम् प्रेरणास्पद कार्यों को एक लेखक की लेखनी स हज कर रखती है ,और समय -समय महापुरुषों के जीवन चरित्र पड़कर जन समाज का मार्गदर्शन करती है ।

लेखनी का रंग जब एहसासो के रूप में

भावनाओं के माध्यम से काग़ज़ पर संवरता है

और जन-मानस के हृदय को

झकझोर कर मन पर अपनी छाप छोड़ता है ,

तब समझो एक लेखक की लेखनी का रंग अमिट हो अमर हो जाता है ।



 ( 11)

अच्छा सोचने की आदत डालें

"आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है और गन्दगी भी बहुत है, तो इसका मतलब क्या ?

 हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?  

 जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।

 बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच ,अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें‌ और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।


 अपनी सोच और अपने विचारों को‌ को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराईयों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें। 

नज़रों का खेल है सारा दुनियां में अच्छाई भी है 

बुराई भी, किन्तु मनुष्य की विडम्बना तो देखो .कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया

वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है अनेकों खूबियों के बावजूद 

एक बुराई ग़लत सोचने को‌ विवश कर देती है, बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है

या यूं कहिए किसी और की होती है और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के 

बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही

गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है


(12 ) जीतना सीखें

           * जीतना सीखें*


कई बार ऐसा होता है की हमें किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । हमारी जी तोड़ मेहनत के बावजूत हमें अपनी मंजिल नहीं मिलती ,हम अन्दर से बुरी तरह टूट जाते हैं हर रास्ता अपना लिया होता कोई और रास्ता नजर नहीं आता।


हम निराशा के घने अन्धकार में घिरने लगते हैं,हमारा किसी काम में दिल नहीं लगता ।हम स्वयं को निठल्ला समझने लगते हैं यहाँ तक की दुनियाँ वाले भी हमें बेकार का या किसी काम का नहीं है ,समझकर दुत्कारते रहते हैं। 


और यही निराशा हमें बुरी तरह से तोड़ कर रख देती है।
और हम आत्महत्या तक के बारें में तक सोचने लगते हैं

1. सबसे पहले तो अपनी हार से निराश मत होइये


2, हार और जीत तो जीवन के दो पहलू हैं ।


3.हार की वजह ढूंढने की कोशिश करिये ।


4.अगर फिर भी सफलता नहीं मिलती तो रास्ता बदल लिजीये।


5.प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग पहचान होती है


6.सारे गुण एक में नहीं होते ,अपनी विशेषता पहचानिये।


7.आप में जो गुण है उसे निखारिये अपना सौ प्रतिशत लगा दीजिये सफलता निश्चित

 आपके कदम चूमेगी ।


8.बार -बार प्रयास करने पर भी अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो काम करने का तरीका बदल कर देखिये ।


9.नकारात्मक विचार जब भी आप पर हावी होने लगें तो तुरन्त अपने विचार बदल लीजिये ।


10 हमेशा सकारात्मक सोचिये ।और कभी भी किसी के जैसा बनने की कोशिश मत करिये ।


11.आप अपने स्वभाव में जियें और अपने आन्तरिक गुणों को पहचान कर उन्हें निखारिये।


12.अपने रास्ते खुद बनाईये।


13. कभी भी लकीर के फ़कीर मत बनिये ।


14. हमेशा अच्छा सोचिये ।


15.अपनी नयी पहचान बनाइये अपने रस्ते अपनी मंजिले स्वयं तैयार कीजिये ।


16.याद रखिये चलना तो अकेले ही पड़ता है ,सफलता पाने के लिए ।


16.दुनियाँ की भीड़ तो तब इकठ्ठी होती है ,जब रास्तें तैयार हो जाते है ।


17.सफलता के बाद तो हर कोई पहचान बढाना चाहता है ।


8.सकारात्मक सोच ही हमें आगे बड़ाने में सहायक होती है।


19 .नकारात्मक सोच अन्धकार से भरे बंद कमरे मे बैठे रहने के सिवा कुछ भी नहीं ।


20.उजियारा चाहिये तो अँधेरे कमरे में प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।
21.यानि  नकारात्मक विचारों रुपी अन्धकार को दूर करने के लिये सकारात्मक विचार रुपी उजियारे की व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

21.याद रखिये दूनियाँ में अन्धकार भी है ,और प्रकाश भी   ! तय हमें करना  है की हमें क्या चाहिए ।

22 . हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के संकल्पों की शक्ति है।
23.इस धरती पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है ,जो अपने संकल्पों से अनहोने काम कर सकता है ।

24.कोई भी व्यक्ति शरीर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है ।

25.परन्तु शुभ संकल्पों की शक्ति बहुत ही श्रेष्ठ और अद्वितय होती है ।

 (13)




      थोडा सा प्रोत्साहन"""""

थोङा सा प्रोत्साहन टानिक का काम करता है ।


  सफलता और असफ़लता जीवन के दो पहलू हैं। एक ने अपने जीवन में सफलता का भरपूर स्वाद चखा है उसकी सफलता का श्रेय सच्ची लगन ,मेहनत ,दृढ़ -इचछाशक्ति ,उसका अपने कार्य के प्रति पूर्ण- निष्ठां व् उसके विषय का पूर्ण ज्ञान का होना था।

 और उसके व्यक्तित्व में उसकी सफलता के आत्मविश्वास की छाप भर -पूर थी। 

 वहीं दूसरी तरफ़ दूसरा वयक्ति जो हर बार सफलता से कुछ ही कदम दूरी पर रह जाता है ,उसके आत्म विश्वास के तो क्या कहने, परिवार व् समाज के ताने अपशब्द निक्क्मा ,नक्कारा ,न जाने कितने शब्द जो कानों चीरते हुए आत्मा में चोट करते हुए ,नासूर बन दुःख के  सिवा कुछ नहीं देते।

   उसे कोई चाहिये था जो उसके आत्म विशवास को बड़ा सके, उसे उसके विषय का पूर्ण  ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करवाये । 

  जीवन  में आने वाले उतार -चढ़ाव कि पूरी जानकारी दें ,और सचेत रहने की भी पूरी जानकारी दे। उसे  सरलता का भी  महत्व भी समझाया  गया, सरलता का मतलब मूर्खता कदापि नहीं है। 

  सरलता  का तात्पर्य  निर्द्वेषता ,किसी का अहित न  करने का भाव है। 

  अकास्मात मुझे ज्ञात हुआ, कि किसी के आत्मविश्वास  को बढ़ाना ,बस थोडा सा प्रोत्साहन देना टॉनिक का काम करता है.... और यही  सच्ची सफलता  के भी लक्षण है। 

 अपनी सफलता  से तो सभी खुश होते हैं ,परन्तु किसी को  सफलता कि और  आगे बढ़ाने में सहायता  करना भी  सच्ची सफलता के लक्षण  हैं। 

 बस थोड़ा सा  प्रोत्साहन का  टॉनिक  और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

  अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होने पर  आत्मविश्वास की जड़े मजबूत  होती हैं ,तब दुनियाँ कि कोई भी आँधी आपकी सफलता में बाधक  नहीं बन सकती। 





(14).

*अर्जुन सा लक्ष्य*

कौन भटकायेगा हमें हमारी राहों से 

हम सत्य प्रेम की करूणा की शिक्षा से शिक्षित हैं श्रीकृष्ण के वंशज अर्जुन सा लक्ष्य रखते हैं 

लक्ष्य हमारा सत्य धर्म हैध्येय हमारा निस्वार्थ प्रेम है दुविधाओं से बचकर निकलना हमारा नित नियम है ..लाख प्रलोभन मन को भटकाते  हैं ..

कल किसने देखा भरमाते हैं ..हम भी बस मन ही मन मुस्कराते हैं..... सत्य धर्म के रक्षक आज भी पूजे जाते हैं ..

सुनकर  सबकी करते मन की हैं विवेक की चाबी भी संग रखते हैं ..

स्वार्थ  की राहें भरमाती हैं हमें हमारे लक्ष्य  से डगमगाती हैं हम भी द्रोणाचार्य के वंशज हैं.... 

अर्जुन से शिष्य हैं एकलव्य से प्रेरित हैं कर्ण से दानवीर  हैं भरें हैं कूट- कूट कर हम में भी 

मर्यादापुरुषोत्तम, श्रीकृष्ण  भगवान के 

चरित्र हैं .. कैसे टूट  जायेगें भीतर  है 

बहुत  ठूके हैं ..तभी तो आज बाहर से निखरे  हैं कौन भटकायेगा हमें हमारी राहों से 

सत्य  प्रेम की करूणार्द्र की शिक्षा से शिक्षित  हैं प्राण जाये पर वचन ना जाये सत्य कर्म ही पूजा से प्रेरित  स्वर्णिम साहित्य सम्पदा से मालामाल हैं ..गिरते हैं सम्भलते हैं सम्भल- सम्भल कर  अपने हौसलो बुलंद  करते हैं । कौन किस के हक की बात करता है अपने कर्मों की खेती स्वयं ही करनी पड़ती है, स्वयं ही स्वयं को प्रोत्साहित करना पड़ता है काफिले में सर्वप्रथम तुम्हें अकेले ही चलना, पड़ेगा जीत तो उसी की होती है ,जो स्वयं ही स्वयं कानेतृत्व करता है।** मैंने उस वक्त चलना शुरू किया था जब सब दरवाजे बंद थे ,पर मैं हार मानने वालों में से कहाँ था कई आये चले गए ,सब दरवाजे बंद हैकहकर मुझे भी लौट जाने की सलाह दी गयी ।पर मैं भी जिद्दी ,सोचा यहां से वापिस नहीं लौटूंगा टकटकी लगाये दिन-रात दरवाजा खुलने के इन्तजार मैं पलके झपकाए बिना बैठा रहता ,बहुतों से सुना था,यह दरवाजा सालों से नही खुला है ,पर मेरी जिद्द भी बहुत जिद्दी थी । एक दिन जोरों की तूफ़ान आने लगा ,आँधियाँ चलने लगी मेरी उम्मीद ए जिद्द थोड़ी-थोड़ी कमजोर पड़ने लगी पर टूटी नहीं ,नजर तो दरवाजे पर थीतीर कमान में तैयार था, अचानक तेज हवा का झौंका   आया मेरे चक्षुओं में कोई कंकड़ चला गया ,इधर आँख में कंकड़ था, उधर आँधी से जरा सा दरवाजा खुला आँख कंकड़ से जख्मी थी ,पर मैंने निशाना साधा मेरा तीर दरवाज़ा खुलते ही लग गया ,जीत मेरी जिद्द की थी  या मेरे विश्वास की जीत हुई मेरे संयम की । इरादे अगर मजबूत हों और स्वयं पर विश्वास हो और आपके कर्म नेक हों तो दुनियाँ की कोई ताकत आपको जीतने से रोक नहीं सकती कोई भी रास्ता आसान नही होता ,उसे आसान बनाना पड़ता है ,अपने नेक इरादों सच्ची मेहनत लगन , निष्ठा और संयम से ।


  (15 ) हर दिन उत्सव मनाये - - - 

   *बडे़ भाग मानुष तन पाया* फिर क्यों ना जीवन में हर दिन हर पल उत्सव मनाएं *जीवन जीना भी एक कला है*

 समयानुसार मौसम भी बदलता है,तब भी तो मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालता है और स्वयं की रक्षा करता है।

ठीक उसी तरह जीवन में भी उतार -चढाव आते हैं ,बजाय परिस्थितियों का रोना रोने की उन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने की कला सीखें ,जिससे आपका जीवन अन्य मनुष्यों के लिए भी प्रेरणास्पद बन जाएं और आप स्वयं के जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकें ।

परिस्थितियां तो परीक्षाओं के समान है कहते हैं कई लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है ,समस्त प्राणियों में मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है,क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि ,विवेक के द्वारा धरती पर बडे़ -बडे़ अविष्कार कर सकता है ,चाहे तो अपने कर्मों द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है चाहे तो नर्क परमात्मा ने यह धरती मनुष्यों के रहने के लिए प्रदान की,मनुष्यों को चाहिए की वह इस धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएं ।

परमात्मा द्वारा प्रदत प्रकृति की अनमोल संपदाएं, जल स्रोत,सुन्दर प्रकृति वृक्षों पर लगने वाले फल,फूल हरे -भरे खेतों में उगते अनाज विशाल पर्वत श्रृंखलाएं आदि अंनत उत्तम व्यवस्था की है, परमात्मा ने इस धरती पर मनुष्यों के जीविकोपार्जन के लिए, किन्तु मनुष्यों ने अपने स्वार्थ में अंधा होकर इस धरती का हाल बुरा कर दिया है,संभालो मनुष्यों यह धरती तुम मनुष्यों के लिए ही है, इसे संवारों बिगाड़ नहींअभी भी समय है..धरती पर प्राप्त प्राणवायु में जहर मत घोलो ।

   प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाओं क्योंकि प्रत्येक नया दिन एक नए जन्म जैसा होता है ,जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवा कर आया है जो एक कड़वा सत्य है। तो फिर क्यों ना धरती पर प्राप्त इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें ,अपने जीवन को सार्थक बनाएं। क्यों ना धरती पर कुछ ऐसा कर जाएं जिससे स्वयं का और समाज के भला हो और हमारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बन जाए ।

   लोग क्या कहेंगे ,इस बारे में सोचकर अपने जीवन के अनमोल पल व्यर्थ ना गवाएं ,लोग तो कहेंगे लोगों के काम है कहना ,किसी भी व्यक्ति का जीवन उसकी स्वयं की धरोहर है ,अपनी इस अनमोल जिन्दगी  में खुशियों के सुन्दर सतरंगी रंग भरे ,उदास अभावों का दर्द छलकाते रंगों वाली बेरंग तस्वीर किसी को नहीं भाती ,अतः अपने जीवन को सदैव इंद्रधनुषी रंगों को सुन्दर छवि दें । 

 *यूं ही बे वजह मुस्कराया करो माहौल को खुशनुमा बनाया करो *

 यानि हर पल जीवन का उत्सव मनाते रहें ।बुरे और नकारात्मक विचारों से स्वयं को बचाएं जिस प्रकार धूल गंदगी मैले वस्त्रों को हम दिन-प्रतिदिन बदलते हैं ,उसी प्रकार समाज में फ़ैल रही नकारात्मक प्रवृतियों को स्वयं को बचाते हुए उस दिव्य शक्ति परमात्मा का नित्य स्मरण करते हुए,परमात्मा से दिव्यता का वरदान प्राप्त करते रहें । व्यर्थ की चिन्ता से स्वयं को बचाएं जीवन में उतार -चढाव तो आते रहेंगे जीवन में निरसता को स्थान नए दें । प्रत्येक दिन एक नई शुरुआत करें ।एक महत्वपूर्ण सत्य,अपने जीवन में हर कोई सुख-शांति और खुशियां चाहता है अगर किसी कारण वश आप खुश नहीं है आप शान्ति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो खुशियों के पीछे भागिये मत,क्योंकि जितना हम किसी को पाने के लिए भागते हैं, वह चीज हमसे और दूर जाती रहती है।

 अतः जिस चीज की चाह आपको अपनी जिन्दगी में है ,उसे बांटना सीख लीजिए यकीन मानिए जितना आप खुशियां बांटेंगे उतनी आपकी जिन्दगी में खुशियां बडेंगी    कभी किसी भूखे को खाना खिलाकर देखिए  कभी किसी रोते को हंसा कर देखिए आपको सच्ची खुशियों की सौगात मिलेगी बेसहारों का सहारा बनकर देखिए जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव होगा। 

किसी निराश हताश के मन में आशा के दीप जलाकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कीजिए.. 

दिखायेगा अमुक व्यक्ति के दिल से निकली दुआएं आपका जीवन सफल बना देंगी। 

* तो चलिए आइए जीवन को बेहतरीन से बेहतरीन ढंग से जिएं*

*आओ हर दिन हर पल को एक उत्सव की तरह जिएं जीवन में नित नए आशा के दीप जलाये* अपने संग औरों के घर भी रोशन कर आएं ,उम्मीद की नयी किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें ,आओ हर दिन प्रेम के रंगों का त्यौहार मनाएं दिलों में परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**


  (16)  मुश्किलों से डरना नहीं 

क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

अच्छों की दुनियाअच्छी ही होती है ऐसा नहीं की  

मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।

जो सच्चा होता है वो सरल होता है निर्मल होता है और हल्का होता है । 

आओ हर दिन एक उत्सव की तरह मनाएं ,जीवन में नित नए आशा के दीप जलाएं उम्मीद की किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाएं।           हे मानव तुम अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं होने देना आत्मशक्ति मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। 

 जीवन में भले ही धन-दौलत कम हो जाए  लेकिन अगर आपके पास शिक्षा धन और आत्मविश्वास एवम् आत्मबल की शक्ति है तो आपके पास आपके जीवन में सब कुछ प्राप्त है  अतः आत्म शक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

हार का श्रृंगार कर

हार एक त्यौहार 

जीत का आगाज है 

जश्न का ऐलान है 

हौसलों की उड़ान है 


जीत का बिगुल बजा 
दीप जो भीतर छिपा 
संकल्प से उसको जला
धैर्य रख दृढ़ विश्वास रख
उम्मीद का दीपक  जला
आंधियों का शोर है 
तूफान की उठापटक 
मत अटक मत भटक 
वक्त यह भी टल जायेगा 
परिक्षाओं का दौर‌ 
भागने की होड़ है‌ 
तू भाग मत सम्भल कर चल 
मंजिल थोड़ी दूर है 
हर रात की होती 
अवश्य भोर है‌   

सफर पर है तू सफर ‌‌‌‌कर
सफर का मजा ले मगर 
धूप हो या सहर 
हर रात के बाद होती 
अवश्य भोर है। 




(17 )

आत्मविश्वास👍

*आत्मविश्वास*

     " आत्म विश्वास यानि स्वयं का स्वयं पर विश्वास

       अद्वित्य,अदृश्य, आत्मा की आवाज़ है ,आत्मविश्वास"

       आत्मविश्वास मनुष्य में समाहित अमूल्य रत्न मणि है।

       आत्मविश्वास एक ऐसी पूंजी है

       जो मनुष्य की सबसे बड़ी धरोहर है।


      आत्म विश्वास ही चींटी को पहाड़ चढ़ने को प्रेरित करता है ,
       वरना कहाँ चींटी  कहाँ पहाड़।
      आत्मविश्वास विहीन मनुष्य मृतक के सामान है ।

       तन की तंदरुस्ती माना की पौष्टिक भोजन से आती है 
       परन्तु मनुष्य के आत्मबल को बढ़ाता है 
       उसका स्वयं का आत्मविश्वास ।

     आत्म विश्वास ही तो है जिसके बल पर बड़ी-बड़ी जंगे            
      जीती जाती हैं ,इतिहास रचे जाते हैं ।
   
      आत्मविश्वास, यानि, स्वयं की आत्मा पर विश्वास
       स्वयं का स्वयम पर विश्वास जरूरी है ,वरना हाथों
       की लकीरें भी अधूरी हैं।
       कहते हैं हाथों की लकीरों में तकदीरें लिखी होती है 
       बशर्ते तकदीरें भी कर्मों पर टिकी होती हैं ।

       आत्म विश्वास यानि स्वयं में समाहित ऊर्जा को                   
       पहचानना और उसे उजागार करना ।
       तन की दुर्बलता तो दूर हो सकती है 
       परन्तु मन की दुर्बलता मनुष्य को जीते जी मार 
       देती है ।

       इसलिए कभी भी आत्म विश्वास ना खोना 

       मेरे साथियों ,क्योंकि आत्मविश्वास ही तुम्हारी 

       वास्तविक पूँजी है , जो हर क्षण तुम्हें प्रेरित करती है।

       निराशा से आशा की और ले जाती है ।


         

  ( 18)

   *आत्म यात्रा*

      दो अक्षर क्या पड़ लिये ,मैं तो स्वयं को विद्वान समझ बैठा ।

वो सही कह रहा था ,चार किताबें क्या पड़ लीं अपने को ज्ञानी समझ बैठे ।


उनका क्या जिन्होंने शास्त्रों को कंठस्थ किया है ,जिन्हें वेद ,ऋचाएँ ज़ुबानी याद हैं ।

ज्ञानी तो वो हैं ,जिन्होंने अपना सारा जीवन शिक्षा अध्ययन में लगा दिया जिनके पास शिक्षा की डिग्रियों की भरमार है। 

निसंदेह बात तो सही ,जिन्होंने अपना सारा समय,अपना सारा जीवन अध्ययन कार्यों में लगा दिया ।
    दिल में ग्लानि के भाव उत्पन्न होने लगे, बात तो सही है , मैं मामूली सा स्नातक क्या हो गया, और शास्त्र लिखने की बात कहने लगा ,बात तो सही थी ,कौन सी डिग्री थी मेरे पास कोई भी नहीं .....चली लेखिका बनने .....
कुछ पल को सोचा मामूली सा लिखकर स्वयं को विद्वान समझने का भ्रम हो गया था मुझे ।
  भले ही मैं विद्वान ना सही पर ,परन्तु मूर्ख भी तो नहीं ।

परन्तु बचपन से ही चाह थी , अपने मनुष्य जीवन काल में कुछ अलग करके जाना है ,जीवनोपर्जन के लिये तो सभी जीते हैं। 
हबस यूँ ही खाया -पिया कमाया जमा किया ,और व्यर्थ का चिंतन ,जब ज्ञात ही है कि जन्म की ख़ुशियों के संग ,   जीवन की कड़वी सच्चाई मृत्यु भी निश्चित ही है ,उस पर भी भीषण अहंकार ,लोभ ......किस लिये.....जाना तो सभी ने है ,
फिर क्यों ना कुछ ऐसा करके जायें जिससे हमारे इस दुनिया से चले जाने के बाद भी लोग हमें याद रखें ।

  समाज के कुछ नियम क़ायदे हैं ,प्रत्येक का अपना परिवेश अपना दायरा है , और आवयक भी है नहीं तो समाज में उपद्रवऔर हिंसा की स्तिथि उत्पन्न हो सकती है ,मेरे भी दायरे सीमित थे ।
  समाज में अपनी छाप छोड़नी थी कुछ अच्छा देना था  समाज को ।   अपने विचारों को शब्दों में ढाल कर लिखना शुरू कर दिया ,सब कहने लगे  फ़ालतू का काम हैकिसी को पड़ने का शौक़ नहीं है ,इतना अच्छा भी नहीं लिखा है की लोग पड़े ।
परन्तु मन मैं जनून था  ,सिर्फ़ कोई पड़ता ही रहे ऐसा सोचा ही नहीं बस लिखना  था ,आत्मा को विश्वास था की अगर मेरा लिखा कोई एक भी पड़ता है ,उसका मार्गदर्शन या मनोरंजन होता है तो ,मेरा लिखा सफल है ।

 कहते हैं ना,करते हम हैं ,कारता वो है ,यानि परमात्मा तो रास्ता दिखता है ,भाव देता है कर्म हम मनुष्यों को करना है ,

  यह बात भी सत्य है की संसार एक मायाजाल है ,परन्तु जो इस मायाजाल से ऊपर उठकर कर्म करता है , आत्मा की बात मान कर निस्वार्थ भाव से सही राह पर चलता है , वो कभी निराश नहीं होता ,वह स्थायी ख़ुशी और सफलता पाता है ।

  ज्ञान तो अंतरात्मा की एक आवाज़ है ,जो जितना गहरा गया ,उसने उतना पाया ,।
बशर्ते हमारी सोच क्या है ,हमारी सोच का दायरा जैसा होगा ,हम वैसा ही पायेंगे। हमारी सोच जितनी निस्वार्थ  और सत्य होगी हम उतना ही गहराई से अंतरात्मा की यात्रा कर  पायेंगे,मन की पवित्रता और निस्वार्थता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
      
 आधुनिक समाज की भागती-दौड़ती जिन्दगी.. में संवेदनाऐं तो मानों दफन हों गयी हैं.. बस बाहरी दिखावा ही जीवन का सत्य रह गया है.. चाहे भीतर कोई बिल्कुल खोखला हो.. 

         (19 )

    "कथानक" 

    "दिखावा" 


    नये घर का शुनभागमन करना था तो कोई शुभ कार्य भी करना था, इसलिए हमने *मां जगदम्बा माता रानी* के जागरण का आयोजन किया था ।
 सभी रिश्तेदारों सगे-संबंधियों को और मित्रों को न्योता दिया गया था ।
 रात्रि जागरण सर्दियों का मौसम सभी व्यवस्था यथोचित हो आखिर हमारे अतिथि हमारे देव होते हैं  
   और उनका ध्यान रखना हमारा कर्तव्य, अपनी और से हमने सभी व्यवस्थाएं अच्छे से सुनियोजित की थीं।
 लगभग सभी अतिथि मातारानी के जागरण में उपस्थित हुए जिन्हें हमने बुलाया था सभी ने बहुत उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया सब बहुत प्रसन्नचित्त थे की उनका स्वागत अच्छे से हुआ और नए घर की बधाइयां देते हुए घर सुन्दर बना है उपमा देते रहे ।
 अगला दिन था सब कुछ मातारानी का जागरण सभी कुछ अच्छे से हो गया था मैंने मातारानी को शुक्रिया अदा किया ।

 आखिर एक परम्परा और निभानी थी कौन -कौन लोग आए थे क्या-क्या उपहार लाए थे देखने का सिलसिला शुरू हुआ ,लगभग सभी मेहमान आए थे जिनको हमने बुलाया था ।
तभी एक एक कीमती उपहार पर नजर पड़ी ... अरे ये मेरा बचपन का मित्र है आज बहुत बड़ा आदमी बन गया है,फिर भी इसका बड़पन्न है ये हमारे घर  आया ये मेरा मित्र बचपन से ही दिल का बहुत अच्छा है, तभी तो इतने आगे निकल गया आज क्या नहीं है इसके पास हम तो इसके आगे कुछ भी नहीं... ये ना जाने कितनी दौलत का मालिक है ,वास्तव में इसकी अच्छाई और सादगी ही इसे इतने आगे लेकर गई है ।   सके घर जाकर कुछ उपहार देना चाहिए और इसका शुक्रिया भी अदा करूंगा की ये हमारे घर अपना कीमती समय लेकर आया,कल ही जाऊंगा इसके घर ।
 अगले दिन मैं अपने मित्र के घर जाने के लिए अच्छे से तैयार हो गया और एक सुन्दर सा उपहार भी लिया उसके लिए ...

 मैं खुश था और स्वयं में गर्वानवित महसूस कर रहा था की शहर का इतना बड़ा आदमी मेरे घर के मुहूर्त में आया ,आखिर रास्ता तय हुआ मैं अपने मित्र के घर के बाहर खड़ा था जहां पहले से ही दो सुरक्षाकर्मी मौजूद थे ,उन्होंने मुझे मेरा नाम ,पता और वहां आने का कारण पूछा ,मैंने कहा वो मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं ,और कल वो मेरे घर के मुहूर्त पर माता का जागरण था वहां भी आए थे ,और तुम्हें तो सब पता होगा ,वो सुरक्षाकर्मी बोले हां पता है वो गए थे अच्छा तो वो तुम हो बड़े भाग्यशाली हो जो साहब तुम्हारे घर आए वो ऐसे ही किसी के घर नहीं जाते ,अब बोलो तुम्हे उनसे क्या काम है ।
मैं उनसे बोला उनका मित्र हूं उनसे मिलना है ।

एक सुरक्षा कर्मी ने अपने कैबिन म से फोन किया ।
फोन पर उत्तर मिला वो आज बहुत व्यस्त हैं जरूरी काम हो तो या तो शाम तक इंतजार करे या फिर किसी दिन आये।

अब मैं थोड़ा सकुचाया धनी सेठ का मिजाज समझ आया मैंने सुरक्षा कर्मी को बोला कि वो बोले मैं उनका बचपन का मित्र रमेश हूं ।
सुरक्षाकर्मी देखो हमें पता है अगर साहब ने मना कर दिया तो समझो मना कर दिया फिर चाहे उनका कोई भी रिश्तेदार हो....

फिर भी तुम कहते हो तो देखता हूं एक बार फिर फोन करके ,सुरक्षाकर्मी ने फोन किया ,उत्तर मिला मैं कोई कृष्ण नहीं हूं और ना ही वो सुदामा ।
मन में हजारों प्रश्न थे अगर कुछ नहीं तो फिर वो मेरे घर उस आयोजन में क्यों आया ....
 सुरक्षाकर्मी अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था उसने मुझे पानी पिलाया ,फिर बात करने लगा ,अच्छा तो आप और साहब बचपन में साथ पड़ते थे बहुत अच्छे मित्र थे ,मैंने सिर हिला कर उत्तर दिया हां ....

सुरक्षाकर्मी बोला तुम एक सज्जन व्यक्ति हो इसलिए तुमसे कह रहा हूं ,जब इंसान के पास पैसा आ जाता है ना तब उसका सब कुछ उसका पैसा उसकी हैसियत होता वो किसी का नहीं होता बस वो को भी करता है ना दिखावे के लिए  ऐसे वो कई जगह जाते हैं समाज को दिखाने के लिए और तुम्हारे घर भी आए समाज को दिखाने के लिए की देखो मैं कितना समाजिक और व्यवहारिक हूं सब कुछ अपना रुतबा बढ़ाने के लिए ।
कल को ये भी हो सकता है ,की अगर तुम कहीं रास्ते में दिखो तो वो तुम्हे पहचानने से भी इंकार कर दें। 

ये दिखावे की दुनिया है भैय्या इनके लिए पैसे बड़ा कुछ भी नहीं ।
दिखावे की दुनिया से बेहतर मैंने अपने घर लौट जाना समझा और मैं उल्टे पांव घर लौट आया।


(20)

 


"प्रतिस्पर्द्धा" 

प्रतिस्पर्द्धा के युग में दौड़ता भागता मनुष्य सुधारने को अपना भविष्य अपना वर्तमान दाव पर लगाता
कल किसने देखा सर्वप्रथम अपने वर्तमान को संवार
जी ले जरा.. हार और जीत जीवन के दो पहलू
जीवन की सबसे बड़ी पूंजी आत्मविश्वास
हारता वो है जिसने प्रयास ही नहीं किया जिसने प्रयास किया और कर्म किया वो नसंदेह जीत गया
प्रथम, द्वितीय या अन्य कोई भी स्थान ये सबकी अपनी-अपनी कार्य क्षमता का प्रारूप
इसका संबंध नहीं जीत या हार से.. अपने आत्मविश्वास को जगाए रखो.. कार्यक्षमता में वृद्धि करो
जीवन में कभी अपने विश्वास को निराश मत करना
स्वयं पर पूर्ण रूपेण विश्वास से.. बढ़ती है ही आत्मा की शक्ति आत्म विश्वास यानि स्वयं पर विश्वास.. 
विश्वास ही मनुष्य की सबसे बड़ी जीत है और स्वयं की ही आत्मशक्ति पर 'अविश्वास 'निराशा को जन्म देताहै यहीं से प्रारम्भ होती है अपनी सबसे बड़ी हार आत्मविश्वास यानि स्वयं का स्वयं पर विश्वास भरोसा जिससे वृद्धि को पाता है किसी भी मनुष्य का आत्मबल अतः आत्म शक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

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