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अनोखा प्यार

 

अनोखा प्यार *

    *आव्यशक नहीं जो सामने है वो सत्य ही है किसी भी फल की पहचान ऊपरी परत हटाने पर ही पता चलती है *

    
     यार तू रहने दे ,मैं इस दुनियां में अकेला था ,और अकेला ही ठीक हूं मेरा इस दुनियां में कोई नहीं।
   मेरी मां तो पहले ही इस दुनियां से चली गई थी और मेरा पिता वो तो जीते जी ही मेरे लिये बहुत पहले ही  मर गया था ।
जब मैं आठ साल का था मेरे बाप को शौंक चड़ा था मुझे तैराकी सिखाने का ......
क्या कोई पिता अपने बच्चे को ऐसी तैराकी सिखाता है , धकेल दे दिया था मुझे स्विमिंग पुल में और छोड़ दिया था अकेला मरने के लिए,मैं चिल्ला रहा था पापा मुझे निकालो मैं मर जाऊंगा मुझे तैरना नहीं आता है पर मेरा पापा टस से मस नहीं हुआ ,आखिर दस मिनट बाद बहुत मशक्त करने के बाद मैंने हाथ -पैर मार के तैरना ही सीख लिया।
  वैभव बोला हां और आज तू तैराकी चैंपियन भी है और कई अवार्ड भी ले चुका है,जानता है इसके पीछे कौन है ,तेरे पिताजी अगर उस दिन तेरे पिताजी तुझे अकेला ना छोड़ते तो तू आज तैरना ना सीख पाता और इतना बड़ा चैंपियन ना बनता ।
 अरे विशिष्ट अपनी आंखो से देख, अपने चाचा की बनाई बातों की झुठी पट्टी हटा ,गांधारी मत बन आंखें खोल और सच को पहचानने कि कोशिश कर....

   विशिष्ट अपने मित्र वैभव से कहने लगा ,नहीं वैभव मैं आज जो कुछ भी हूं अपने हुनर और प्रयासों के कारण मेरे पिता का मुझे कोई सहयोग नहीं है तू रहने मेरे पिता की तारीफ करना छोड़ दे ।

  मेरे चाचा भी कहते हैं कि मेरा पिता बहुत कठोर है और पत्थर का कलेजा है मेरे पिता का
  मेरे चाचा के साथ भी मेरे पिता ने यही किया था मेरे चाचा ने मुझे बताया है मेरे चाचा मेरे पिता अपने बड़े भाई को पिता समान मानते थे ,और मेरा पिता पत्थर का कलेजा है उसका ,मेरे चाचा को भी घर से बेघर कर थोड़े से पैसे देकर घर से अलग कर दिया था मेरे पिता ने कहा था जा अपना काम खुद कर कमा खा जो भी कर मेरा चाचा बताता है इतने थोड़े पैसों में क्या होता है ,बस मेरे चाचा की तो हिम्मत थी और मेहनत जो आज मेरे चाचा इतने बड़े व्यपारी हैं ।

  वैभव वाह विशिष्ट वाह तू और तेरा चाचा तो बहुत बड़े आदमी बन गए हो ,पैदा होते ही तुम दोनो अपना काम खुद करना शुरू कर दिया था तुम तो भगवान हो तुम महान हो बाकी सब बैकार........

 इतने में विशिष्ट की चाची आ गई उसने सबको शांत करते हुए कहा दोनो चुप हो जाओ ,विशिष्ट तुम्हारा मित्र वैभव जो कह रहा है सही कह रहा है ।
तुम्हारे पिताजी चाहते थे कि उनका भाई यानी चाचा अपने बल भूते पर कुछ करे आगे बड़े इसलिए तुम्हारे पिताजी ने अपने छोटे भाई को एक मौका दिया आगे बढ़ने का तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लिए और तुम्हारे चाचा के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं तुम आजमा के देख लो ।
  उन्होंने मुझे सब बताया है ,बस तुम्हारे पापा का तरीका थोड़ा अलग है ,उन्हें अपना प्यार जताना नहीं आया उन्हें अपनापन समझाना नहीं आया ।
 आज तुम बड़े हो गए हो समझदार हो ,मैंने तुम्हे जो समझाया वो सच है ,अब तुम्हारी मर्जी ....आगे तुम खुद समझदार हो। 

विशिष्ट बगीचे में रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गया ,दिमाग में विचारों की कश्मश थी ...
जीवन का बीता एक-एक लम्हा जो विशिष्ट का उसका पापा के साथ बीता था आंखो के आगे घूमने लगा ..... आंखो से अश्रुओं की धारा बह रही थी
उठकर गाड़ी में जाकर बैठ गया गाड़ी जाकर पापा के घर के आगे रोकी , पापा थोड़े अस्वस्थ थे आराम कुर्सी पर बैठे थे , विशिष्ट पापा के पास जाकर बैठा शब्द निशब्द थे ,पापा बैठे थे पापा के घुटनों पर सिर रखकर आज विशिष्ट ने अपना दिल हल्का किया
पापा ने भी बेटी के सिर पर हाथ फेरा और खा बेटा खुश रहो .... विशिष्ट पापा मुझे माफ कर दो मैं आज जो भी हूं आपकी वजह से .....
पापा ,नहीं बेटा मैंने तो तुम्हारे हुनर को पहचानने में तुम्हारी मदद की ,तुम्हारे प्रयासों के बल पर ही आज तुम जो हो वो सब कुछ हो ।
 आज शायद दिन  ब हुत अच्छा था छोटा भाई भी आ गया था , अपने बड़े भाई के प्रोत्साहन और और जीवन में आगे बड़ने का श्रेय अपने छोटे भाई को दिया ।

* कई बार स्थितियां जो होती हैं उन्हें ही सच मान लेना ठीक नहीं  होता उनके आगे जो छिलन रूपी परत का सच होता है ,उसे हटाकर देखना चाहिए असली फल तभी ंनजर आता है   *




(9) 

 परिक्षायें किसकी ..... बेटी की या मां की ?

इतने दिनों से मैं तेरी परिक्षाओं के कारण घर में कैद हूं कई जरुरी काम रुके हुए हैं मेरे ......
बेटी अपनी मां से....मां आप बताओ परीक्षायें मेरी थी या आपकी .......
मां बेटी से ,माना की परीक्षाएं तुम्हारी थी , किन्तु मेरी भी परीक्षाएं ही थी ।
बेटी ,वो कैसे ?
मां बेटी से ,अच्छा बेटा जी ,परीक्षाओं के समय तुम्हें सब कुछ एक जगह बैठे बिठाए कौन देता था ,थोड़ी भी देर मैं ‌इधर उधर जाती तो तुम मुझे पुकारने लगती । तुम्हारा पूरा ध्यान तुम्हारी पढ़ाई पर हो इसलिए मैं यही रही तुम्हारी सेवा में हाजिर ।
बेटी ,अपनी मां से ओ मां तुम कितनी अच्छी हो .....
मां अच्छा चल अब ज्यादा मक्खन ना लगा । पहले मैं बाज़ार जाऊंगी ,फिर मीना मौसी के यहां कब से नहीं आती उससे मिलने हम ही तो हैं उसके अपने .....
बेटी मां से ,बेचारी मीना मौसी कितने अच्छे परिवार में की थी उनके मां बापू ने उनकी शादी ,‌पर शादी जो आप लोगो के लिए सब कुछ है ,आज मीना मौसी ,कल किसी और के साथ भी कुछ भी हो सकता है ,इससे अच्छा तो अगर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर कोई काम करने देते यानि वो कोई अपना काम या सर्विस कर रही होती तो उन्हें इस तरह अकेलेपन और मोहताजगी की जिंदगी ना झेलनी पड़ती ।
मां निशब्द थी मानों आंखों ही आंखों में कह गयी थी जी लेना बेटी तू अपनी मन मर्जी से  ....तुझे कोई नहीं रोकेगा..... जिससे कल तुझे किसी का मोहताज ना होना पड़े.... बेटी तुम अपनी जिंदगी के फैंसले स्वतंत्रता से लेना सीखना... 
  



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