भाव सागर चल रही है, कश्तियां संसार की
लहरें सागर उठ रही, भीतरी एहसास की
लहरों की ऊचाईयां, या,अरमानों की उठापटक
दिल का दरिया बह रहा, समुंदर सा हो रहा।
कोई समझने वाला ही नहीं, भीतरी एहसास है
तूफान तो आयेगा, भीतर ज्वाला धधक रही
समाज की बेड़ियों में सिसक वो कराह रही
चीखों पुकार है, कैसा यह उद्गार है..
सिसकियों में कह रहा, तूफान की आहट हुई
भीतर जो उद्गार है.. वधिक में व्यक्त है
घाव था ना जो भरा, हाल उसका है बुरा
अंतिम दौर है, कराह का शोर है,आह! सब और है।
Comments
Post a Comment