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वंशज


एक हैं सब एक हैं, लहू सबका एक है 

रंग भेद हो भला आकार सबका एक सा 

एक वृक्ष की शाखायें हम 

टहनियाँ विकास है  वंशज हम एक के - - - 

पुष्प उपजते प्यारे - प्यारे.. एक से बड़ते रहे 

अनेक हम होते रहे... 

एक की संतान हम फिर क्यों मतभेद हुये 

जात-पात में फंस गये हम आपस में लहूलुहान हुये

एकत्व से अनेकत्व बने जड़ें सभी की एक हैं 

शाश्वत जन्म की कहानी, फिर क्यों उलझती

जिन्दगानी, मन का पंछी सपनों की उड़ान भरने में

व्यस्त रहा, एक दिन आ टिका धरती पर.. 

नजरें थम गयीं, मन रुक गया 

वसुंधरा थी कह रही - - बोली

धरती पर रुको हाल मेरा भी 

 लिखो, हाल मेरा बेहाल है 

हालात देखो तो जरा सब लहूलुहान है 

पपड़ियाँ है उतर रही, छीलती अब खाल है 

सपनों के महल बनाता मनुष्य 

किया मुझे बेहाल है  

सपनों की उड़ान  नहीं -  

धरती पर जीवन की सच्चाई लिखो 

पेट सपनों से नहीं  भरते 

मेहनत की बिबाई लिखो

पेट की आग को दौड़ धूप तो लिखो 

मेहनत की कशमकश लिखो


धरती पर रहते हो  

धरती के लोगों की बात करो.. 

धरा पर मनुष्यों के संघर्ष और हालात लिखो 

जिन्दगी की भागदौड़ और हालात लिखो

प्रतिस्पर्द्धा की दौड़ में आगे रहने का संघर्ष लिखो

स्वयं को भुला चूल्हे - चौके का दर्द लिखो

ईधंन पर मंहगाई की मार लिखो

सरकारी राशन का व्यापार लिखो

घी में मिलावट का बाजार लिखो 

विद्यालय बना कारोबार लिखो

धर्म के नाम पर बंटता यह संसार है 

लहू सबका लाल तन का आकार भी एकसार है

फिर कहाँ से बंट गये, दिलों में नफरत के कंटीले झाड़ अटक गये... एक हैं सब एक हैं 

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