ज्योति जली, प्रकाश की उपस्थिति निश्चित थी
चहूं और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही - -
जल-जल के स्वाहा होती रही - -
ज्योति के भव्य प्रकाश से
सबके नेत्र चुंधयाने लगे
ज्योति थी, तो प्रकाश की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश में गुमनाम अंधेरों ने
धीमे-धीमे दस्तक देनी प्रारम्भ कर दी
उजाले के आकर्षण में सब इस कदर व्यस्त थे कि,
मन के अंधेरों ने कब दस्तक देनी प्रारम्भ कर दी
की पता ही नहीं चला - - जब तक ज्योति जलती
रही, जल-जल कर स्वाहा होती रही सब व्यस्त रहे
जब बाती धुआं बनकर उडने लगी
सबकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया
ज्योति का दर्द सरेआम हो गया
सबके दिलों से आह! निकली
नेत्रों से अश्रु बहने लगे
काले धुएं ने हवाओं में अपना घर कर लिया था
जब तक प्रकाश था, सब खुश थे
प्रकाश का दर्द किसी ने ना जाना
जब प्रकाश का दर्द धुआं बनकर उड़ने लगा
तब सब उसे कोसने लगे - -
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे
आज हमारी राख से धुआं क्या उठने लगा
सब हमें कोसने लगे - - काले धुयें ने हवाओं में
अपना घर कर लिया - - जब तक उजाला था सब
चेहरो पर हंसी थी - - उजाले का दर्द किसी ने ना जाना--
बताओ यह भी कोई बात हुई -
जब तक हम जलते रहे सब खुश थे
जब हमारी राख से धुआं क्या उठने लगा..
लोग धुएं को कोसने लगे - -
आग तो सबने देखी प्रकाश भी देखा - आग की तड़फ किसी ने नहीं देखी - -
जब उसका दर्द धुआं बनकर उड़ने लगा सबके दिलों से आह! निकली - - -
मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गयामैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाला की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।
उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला
दर्द सरेआम हो गया , आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर लिया
जब तक उजाला था सब खुश थे ।
उजाले के दर्द को किसी ने नहीं जाना
जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।
बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे ।
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे ।
दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।
चिराग था फितरत से
मैं जलता रहा पिघलता रहा
जग में उजाला करता रहा
मैं होले_होले पिघलता रहा
जग को रोशन करता रहा *****
मैं तो चिराग था ,फितरत से
मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
कोई मुझको देख कर जलने लगा
स्वयं को ही जलाने लगा
इसमें मेरा क्या कसूर"
**चल बन जा , तू भी चिराग बन
थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा
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