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कोहरा


रात थी कोहरे भरी‌ 

देख कर आंखें रूकीं

कुछ बात थी कोहरे में 

चला मैं कोहरे में कुछ ढुढने 

राहों में बादल थे भरे पड़े 

यूं लगा मेरे कदम आसमान पर पड़ रहे 

आसमां जमीन पर उतर आया 

राहों ने ओढ़ी कोहरे की चादर ‌

गुम हुआ वादियों में कहीं 

दुसरी दुनियां हो शायद कोई

मानों तिलस्मी दुनिया की सैर पर  

कुछ हसीन सपने सजाने 

कुछ रहस्यमयी पाने‌

कोहरे की कहानी 

अदृश्यता की निशानी 

ज्यों अंखियों में रुका पानी 

मैं भी गुम हुआ आंखों में धुआं हुआ 

कोहरे के अश्रु मेरे संग आ गये मेरे वस्त्रों को सिराहाना बना गये ।।











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लेखक

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